Thursday, September 19, 2024
29.1 C
Delhi
Thursday, September 19, 2024
HomeEditors deskदुकानों पर दुकानदारों के नाम और समाज पर पड़ने वाला इसका प्रभाव

दुकानों पर दुकानदारों के नाम और समाज पर पड़ने वाला इसका प्रभाव

जब भी मैं बस से कहीं लंबी यात्रा करता हूँ तो यात्रा करते समय बस की स्कंतव्य स्थान तक पहुंची। जिस कस्बे शहर में से निकल रही है जिस मार्केट में से निकल रही है वह कौन सी जगह है उस क्षेत्र का नाम क्या है उस कस्बे? का नाम क्या है यह सब? जानकारी। सड़क के दोनों तरफ के दुकानों पर लगे साइन बोर्ड से मिल जाया करती थीं क्योंकि बोर्ड पर दुकान संचालक। के नाम के साथ पूरा पोस्टल एक्ट्रेस भी हुआ करता था। लेकिन धीरे धीरे समय बदला और अब कोड पर यह नाम पोस्टल एड्रेस लिखने की परंपरा खत्म सी। हो गई है। हालांकि गिनती के बोर्डों पर आज भी यह दिखाई दे जाता है।

आज कल तमाम राराज्यों की सरकारें भी सड़क किनारे की दुकानों पर लगे दुकान के साइन बोर्ड पर दुकानदारों के नाम की अनिवार्यता नियम लागू कर रही है। इसकी शुरुआत कॉवर यात्रियों की निकासी वाली सड़क किए दुकानदारों से उत्तर प्रदेश में हो चुकी है। अन्य राज्यों की सरकारें और जनप्रतिनिधि भी इस नियम का अनुसरण ऐसे करने लगे की मानो यही जनहित का सबसे बड़ा मुद्दा हो। वैसे मेरा व्यक्तिगत मानना यह है हर दुकान पर दुकानदार का नाम और पोस्टल एड्रेस होना ही चाहिए। ऐसा होने में कोई बुराई नहीं बल्कि तमाम तरीके फायदे हैं लेकिन यहाँ। प्रश्न यह है यह नियम किस नीयत से लागू किया जा रहा है। इससे समाज में सुधार की संभावना है या किसी विसंगति के बढ़ने की।

अब आगे मैं जो लिखने जा रहा हूँ उससे पहले मैं आपको बता। दूं मे जातिवाद मैं बिल्कुल विश्वास नहीं करता। मेरा खुद का उठना बैठना खाना पीना।सभी जाति वर्ग के लोगों के साथ बड़े ही सामान्य रूप से होता है। अब जो दुकान पर नाम लिखने की परंपरा की शुरूआत हो रही है उसका समाज पर कहीं कहीं कहीं उल्टा प्रवाह तो नहीं पड़ेगा? यह बड़ा प्रश्न है मुझे याद आता है के मेरे कार्यालय पर ऑफिस बॉय के रूप में युवक कार्यकर्ता था। शुरुआत के कुछ दिनों में वह सब काम तो करता था। लेकिन न तो पीने का पानी भरता था न ही किसी को पीने के लिए पानी देता था। कुछ दिनों बाद जब मैंने उससे पूछा कि पानी क्यों नहीं देते तो उस में बड़े ही डरे हुए मन से बताया की सर मै बाल्मीकि हूँ, और पहले भी जहाँ काम करता था वहाँ मुझे पानी नहीं छूने देते थे। मैंने उसको बोला कि मैं इस तरह का भेदभाव नहीं मानता। तुम यहां निसंकोच होके काम करो खुद भी पानी पियो और हमें भी पानी पिलाओ। लेकिन इस सामाजिक ताने बाने को देखते हुए मैंने उससे यह भी कहा कि एक बात याद रखना ही अपने यहां आने वाले या स्टाफ के अन्य किसी व्यक्ति को यह सच मत बताना। मतलब मैंने जो उससे कहा उसका अभिप्राय यही था कि अपने गले में अपने नाम का पट्टा डाल के मत घूमना अन्यथा लोग हमारी दुकान यानी तुम्हारी नौकरी बंद करवा देंगे।

आशा करता हूँ कि इस उदाहरण से आप समझ गए होंगे। कि मेरे मन में किस तरह की शंका है और मैं समाज में किस तरह की विसंगति पढ़ने की बात कर रहा हूँ जो। दुकानों पर दुकानदार के नाम के साथ बढ़ सकती हैं क्योंकि हमारे समाज में आज भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है जाति के नाम पर बँटा हुआ है और ऐसे लोगों को आज भी जातिगत भेदभाव के मकड़जाल ने जकड़ रखा है। इसलिए जो सड़क किनारे स्थित दुकानों पर दुकानदारों के नाम लिखने के आदेश की चर्चा हो रही है। आदेश के बारे में बहुत सोचने पर मुझे उल्टे बांस बरेली को कहावत चरितार्थ होती नजर आती है।

यहाँ पर मैं विधायक रमेश मेंदोला जी का पत्र प्रेषित कर रहा हूँ जो उन्होंने मध्यप्रदेश। के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव को लिखा है और उनसे यह मांग की है। वे मध्य प्रदेश में भी दुकानों पर दुकानदारों के नाम होनी चाहिए। इस पत्र में उन्होंने नाम के गौरव की अनुभूति करवाने की बात कही है लेकिन आप मेरी बात को अन्यथा न लें। लेकिन आज भी हमारे यहाँ तमाम लोग अपने नाम के आगे सिंह लिखकर छोड़ देते हैं और वह किसी भी जाति से आते हो लेकिन फला ठाकुर ढिका ठाकुर बंद कर गौरव की अनुभूति करते हैं। जातिगत खाई को पाठ कर हर समाज के व्यक्ति को उसके नाम पर उसके उपनाम पर गौरव की अनुभूति हो।ऐसा कराने में सरकारें असफल साबित हुई हैं। लेकिन यदि इस तरह का नियम पूरे देश में लागू हो जाता है कि हर व्यक्ति अपना नाम उपनाम खुलकर गौरव के साथ बताएगा। किसी से छिपाएगा नहीं और इसके बावजूद भी समाज में समरस्था और भाईचारा पड़ता है तो फिर इससे बेहतर कुछ नहीं। और फिर तो इस नियम को जल्द ही पूरे देश में अनिवार्य कर ही देना चाहिए।

मैं पाठकों की जानकारी के लिए बता दूँ कि उत्तर प्रदेश दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1962 के अंतर्गत दुकान या वाणिज्यिक संस्थान पर प्रमुख स्थान पर दुकान का नाम, मालिक का नाम, कर्मचारियों के नाम और पंजीयन संख्या का बोर्ड लगाना आवश्यक है। इस कानून के अनुसार यह बोर्ड पहले से ही जरूरी था, लेकिन अब प्रशासन ने इसे जोर देकर लागू कराया है। और यह नियम उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह सरकार के समय भी लागू था और दुकानों पर नाम व पंजीयन लिखे जाते थे और इसी तरह के नियम अन्य राज्यों में भी कानून के रूप में तो स्थापित हैं लेकिन जिस तरीके से अन्य कानून कागजों पर दौड़ते हैं। उसी तरह यह कानून भी कागजों तक ही सीमित है। यदि हम ग्राहक हित की बात करें तो हर ग्राहक को यह अधिकार है के उसे इस बारे में पूरी जानकारी हो जिस। दुकान से वह सामान खरीद रहा है वह किसकी है उसका पंजीयन क्या है और तमाम ऐसी जानकारी जो आगे किसी कानूनी मामले में उसे मदद कर सकती हो। अब यह देखना होगा कि यह नियम किस उद्देश्य से लागू किया जाता है और किस उद्देश्य की पूर्ति करता है।

theinglespost
theinglespost
Our vision is to spread knowledge for the betterment of society. Its a non profit portal to aware people by sharing true information on environment, cyber crime, health, education, technology and each small thing that can bring a big difference.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular