Monday, February 24, 2025
24.1 C
Delhi
Monday, February 24, 2025
HomeUniqueदाताबंदी छोड़ दिवस 1 व 2 अक्टूबर को, क्या है इसे मनाने...

दाताबंदी छोड़ दिवस 1 व 2 अक्टूबर को, क्या है इसे मनाने की वजह, जानिए रोचक इतिहास

ग्वालियर मध्य प्रदेश: हर साल की तरह इस साल भी ग्वालियर किला स्थित दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारे पर दाता बंदी छोड़ दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष यह उत्सव एक और 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन विशाल कीर्तन दरबार सजाया जाएगा। इस विशाल कीर्तन कीर्तन दरबार के लिए अकाल तख्त अमृतसर से अमृतसर। 795 km की दूरी तय कर पैदल यात्रा कर जब था शबद चौकी लेकर रविवार को ग्वालियर पहुंचा। इस यात्रा में कीर्तन दरबार को तीन दिन का समय लगा। पद्मश्री बाबा सेवा सिंह की देखरेख में दाता बंदी छोड़। दिवस महोत्सव। का शुभारंभ आज तीस सितंबर को अखंड पाठ साहिब के साथ होगा। एक और 2 अक्टूबर को दीवान सजेगा अकाल तख्त। गुरुद्वारा के साथ पंजाब के विभिन्न गुरुद्वारों से रागी जत्थे आ रहे हैं। 3 अक्टूबर को शब्द चौकी यात्रा निकाली जाएगी, फूल बाग गुरुद्वारा पहुंचेगी। 

दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ग्वालियर किला के प्रबंध समिति के सेवादार सुखबीर सिंह ने बताया रविवार को मौसम में अलग-अलग क्षेत्र से आए जत्थों द्वारा कीर्तन कीर्। प्रारम्भ प्रारम्भ हो गया है। अमृतसर से आया जत्था पहले शबद चौकी लेकर फुलवा गुरुद्वारा पहुंचा जहां फुलवाग गुरुद्वारा कमिटी के पदाधिकारियों ने शबद चौकी जत्थे का स्वागत किया। 30 सितंबर को महोत्सव के शुभारंभ यही जत्था अखंड। पाठ साहिब प्रारंभ करेगा। इसके अलावा ग्वालियर चंबल अंचल के अन्य क्षेत्रों से भी नगर कीर्तन आ रहे हैं। महोत्सव के दौरान देश के कई क्षेत्रों से हजारों की संख्या में दर्शनार्थी आ रहे हैं। दाता बंदी छोड़ दिवस किला स्थित दाताबंदी छोड़ गुरुद्वारे का मुख्य कार्यक्रम है इस महोत्सव के लिए पूरे गुरुद्वारे को भव्यता के साथ सजाया गया है। और रंग बिरंगी रोशनी भी की गई है। 

हर साल दीवाली से पहले ग्वालियर किला स्थित दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारे पर दाता बंदी छोड़ दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने के पीछे एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। हिंदू मान्यता के अनुसार एक तरफ दिवाली में भगवान राम का वनवास खत्म हुआ था. वहीं सिखों में भी दिवाली का बहुत बड़ा महत्व है. दिवाली के दिन सिखों के छठे गुरु साहिब श्री हरगोबिंद साहिब जी महाराज, ग्वालियर के किले से अपने साथ 52 राजा कैदियों को रिहा कराने में सफल हुए थे। सिखों में भी दिवाली के दिन का बहुत महत्व हैं। श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी के बाद गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने बाकयदा मीरी-पीरी की दो तलवारें पहनकर श्री अकाल तख्त साहिब की रचना करके वह पर लोगों की शिकायतें सुननी शुरू कर दीं। मुगल सरकार की ओर से इन गतिविधियों को बगावत समझा गया और गुरु हरगोबिंद साहिब जी को ग्वालियर किले में नजरबंद कर दिया गया। 

रंग बिरंगी रोशनी से जगमगाया दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा।

शुरुआती वर्षों में सिख संस्था में आ रहे परिवर्तन की ओर सरकार का ध्यान न गया, पर जब गुरु जी के पैरोकारों की संख्या बढ़ने लगी तो अधिकारियों ने गुरु जी के विरुद्ध शिकायतें भेजनी शुरू कर दीं। जहांगीर ने गुरु जी की गिरफ़्तारी तथा उनकी निजी सेना में फूट डालने के आदेश जरी कर दिए। गुरु जी को एक साल या कुछ ज्यादा समय के लिए ग्वालियर किले में कैद करके रखा गया. इस किले में 52 अन्य राजा कैदियों के रूप में रखे गए थे। गुरु जी को रोजाना खर्च के लिए जो धन मिलता, उसका कड़ाह प्रसाद बनाकर सभी को खिला दिया जाता तथा स्वयं किरती सिखों की हक सच की कमाई से बना भोजन करते रब्ब की भाक्ति में लीन रहते। इसी दौरान जहांगीर को एक अजीब से मानसिक रोग ने घेर लिया. वह रात को सोते समय डर कर उठने लगा. कभी उसको यूं लगता था की जैसे शेर उसको मारने के लिए आते हों. उसने अपना पहरा सख्त कर दिया तथा कई हकीमों व वैद्यों से इलाज भी करवाया, पर इस रोग से मुक्ति न मिली. आखिर वह साई मिया मीर जी की शरण में आया. साई जी ने कहा कि रब्ब के प्यारों को तंग करने का यह फल होता है. साई जी ने विस्तार से उसको समझाया की गुरु हरगोबिंद साहिब जी रब्ब का रूप हैं. तूने पहले उनके पिता जी को शहीद करवाया और अब उनको कैद कर रखा है। जहांगीर कहने लगा की साई जी जो पहले हो गया, सो हो गया, लेकिन अब मुझे इस रोग से बचाओ और उनके कहने पर जहांगीर ने गुरु जी को रिहा करने का फैसला कर लिया। गुरु जी की रिहा की खबर सुनकर सभी राजाओ को बहुत चिंता हुई, क्योंकि उनको पता था की गुरु जी के बिना उनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं तथा यदि गुरु जी किले से चले गए तो उनका क्या हाल होगा. गुरु साहिब ने इन सभी राजाओं को कहा कि वे घबराएं नहीं। गुरु जी ने वचन दिया कि वह सभी को ही कैद में से रिहा करवाएंगे। गुरु जी ने अकेले रिहा होने से इंकार कर दिया. यह बात बादशाह को बताई गई. बादशाह सभी राजाओं को छोड़ना नहीं चाहता था। इसलिए उसने कहा कि जो भी राजा गुरु जी का दामन पकड़कर जा सकता है, उसको किले से बाहर जाने की इजाजत है। और यह सभी राजा गुरु हरगोबिन्द साहिब पल्लू पकड़कर रिहा हुए थे और उसी दिन की याद में हर साल किला स्थित दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारे पर दाता बंदी छोड़ दिवस मनाया जाता है। 

Gajendra Ingle
Gajendra Ingle
Our vision is to spread knowledge for the betterment of society. Its a non profit portal to aware people by sharing true information on environment, cyber crime, health, education, technology and each small thing that can bring a big difference.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular