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क्यों मनाते हैं मकर संक्रान्ति, क्या है इसका महत्व और जीवन पर प्रभाव

आज मकर संक्रांति है और मकर संक्रांति पर्व के आते ही कई लोगों को तो इसकी जानकारी तक नहीं होती के इस पर्व को मनाने के पीछे का वैज्ञानिक महत्व क्या है। आज की युवा पीढी हर उत्सव को केवल मौज मस्ती के लिए ही मनाती है जबकि सनातन परंपरा के अनुसार हर पर्व को मनाने के पीछे के वैज्ञानिक कारण होते हैं। इसी तरह आज के दिन पूरे देश में मकर संक्रांति मनाई जा रही है। संभवतः कुछ अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नाम से भी मनाया जाता है। लेकिन सभी के पीछे की कोई न कोई वजह जरूर होती है। तो आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति पर्व के आयोजन के पीछे का क्या वैज्ञानिक महत्व है और हमारे जीवन में इसका क्या प्रभाव पड़ता है। 

यह पर्व सूर्य के उत्तरायण (उत्तर की ओर यात्रा) होने का प्रतीक है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। उत्तरायण को कई मायनों में शुभ और पवित्र समय माना जाता है। मकर संक्रांति कृषि आधारित समाज के लिए नई फसलों की शुरुआत का उत्सव है। मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि –

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

इस श्लोक के अर्थ के अनुसार, माघ मास (हिंदू कैलेंडर के अनुसार जनवरी-फरवरी का समय) में जो व्यक्ति भगवान महादेव को घी और कम्बल का दान करता है, वह इस लोक में सभी प्रकार के भौतिक सुखों का आनंद लेता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है। यह श्लोक माघ मास में दान की महिमा का वर्णन करता है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में दान-पुण्य, तप और ध्यान का विशेष महत्व है। इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।

मकर संक्रांति में प्रयागराज एवं गंगा में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। इस पर्व का पौराणिक मान्यताओं में बहुत महत्व है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर गए थे। चूँकि, शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाभारत में भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के दिन स्वेच्छा से शरीर त्यागा था।

सूर्य ही पूरे धरती पर ऊर्जा का। मुख्य स्रोत है सूर्य से प्राप्त ऊर्जा ही अलग अलग रूप में हमारे तक पहुंचती है।इस तरह यदि हम देखें तो सूर्य की गति में या दिशा में परिवर्तित होने का कोई न कोई प्रभाव हमारे जीवन पर अवश्य पड़ता है। यदि पूरे विधि विधान से और नियम कायदों के साथ मकर संक्रांति के पर्व को मनाया जाता है तो निश्चित ही आपके जीवन में इसका लाभ प्राप्त होता है। 

Gajendra Ingle

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