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पड़ोसी देशों में तख्ता पलट, यह भारत के खिलाफ एक साजिश तो नहीं?

एशियाई देशों में लोकतांत्रिक शक्तियों को लगातार कमजोर किया जा रहा है। अफगानिस्तान म्यांमार श्रीलंका और अब बांग्लादेश में तख्ता पलट कर सेना सत्ता में आई है।लगातार पड़ोसी देशों की यह घटनाएं भारत में भी लोकतंत्र को प्रभावित कर सकती हैं।

बांग्लादेश में हुए वर्तमान घटनाक्रम कि भारत और पूरे एशिया पर होने वाले प्रभाव को समझने के लिए थोड़ा हम इतिहास में चलते हैं और बांग्लादेश में हुए उस पहले तख्ता पलट की घटना का जिक्र करते हैं। 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ जूनियर अधिकारियों ने शेख मुजीब के घर पर टैंक से हमला कर दिया। इस हमले में मुजीब सहित उनका परिवार और सुरक्षा स्टाफ मारे गए। 1975 में जब मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई तो अगले डेढ़ दशक तक बांग्लादेशी सेना ने सत्ता संभाली। 1978 और 1979 के बीच राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव पूर्व सेना प्रमुख जियाउर रहमान के नेतृत्व में हुए, लेकिन धांधली के आरोपों से ये भी नहीं बच सके.  साल 1981 में, जियाउर रहमान की हत्या के बाद, उनके डिप्टी अब्दुस सत्तार ने 15 नवंबर को आम चुनाव कराए. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने फिर से 65 प्रतिशत वोट के साथ जीत हासिल की. सेना प्रमुख रहे हुसैन मुहम्मद इरशाद ने 1982 में तख्तापलट करके सत्ता संभाली। यह घटना हम आपको इसलिए याद दिला रहे हैं क्योंकि वर्तमान में भी बांग्लादेश में कुछ इसी तरह के हालात हैं। हालांकि इस बार बांग्लादेश में जो तख्ता पलट हुआ है वह छात्रों के आरक्षण विरोधी आंदोलन के चलते हुआ है लेकिन आखिरी मैं कमान तो सेना ने ही संभाली है। यह साफ इशारा करता है कि छात्र आंदोलन के पीछे कोई बड़ी छुपी हुई शक्ति काम कर रही है।जिन्होंने छात्र आंदोलन की बहती गंगा में अपने हाथ धोए हैं।  सोमवार को एक बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम के बीच बांग्लादेश की पीएम रहीं शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और नौबत यह आ गई कि उन्हें आनन-फानन में देश छोड़कर भागना पड़ा. इस पूरे सियासी घटनाक्रम की वजह बना छात्रों का विरोध प्रदर्शन, जो बीते जुलाई से वहां हो रहा था. एक समय तो पुलिस प्रशासन इस हिंसक प्रदर्शन को दबाने में कामयाब रहा था, लेकिन ये कामयाबी बड़े तूफान से पहले की शांति के ही जैसी थी। इसके बाद आने वाली तबाही पर शायद बांग्लादेश की सत्ता ध्यान नहीं दे पाई और स्थिति इस कदर बिगड़ गई, जिसकी परिणति सोमवार को हुई घटनाक्रम के तौर पर हुई। 

इसी तरह का तख्ता पलट जुलाई।दो हजार बाईस में हुआ जब  श्रीलंका में भारी जनाक्रोश फैला और तख्तापलट की इबारत लिख दी गई। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का आखिरी दाव विफल हो गया। बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद अपने परिवार को बचाने में लगे गोटबाया ने रानिल विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन वह देश को वित्तीय संकट से उबारने में असफल सिद्ध हुए। श्रीलंका अभूतपूर्व राजनीतिक संकट से गुजर रहा था और गोटबाया और विक्रमसिंघे के इस्तीफे का ऐलान हो चुका था और अब संसद को तय करना है कि तुरंत सत्ता कौन संभालेगा या चुनाव कराए जाएं। प्रमुख विपक्षी दल समाजी जन बलगेवाया (एस.जे.बी.) पर सबकी निगाहें टिकी हैं, जिसने शुरू से इस उग्र आंदोलन का समर्थन किया था। उस समय आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका में जनता जिस तरह से सड़कों पर उतरी और लूटपाट हुई और प्रधानमंत्री के निवास तक लोग पहुंच गए वह दृश्य भी ठीक इसी तरह के हैं जो आज बांग्लादेश में दिखाई दे रहे हैं।

आपको याद होगा कि 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान का कंट्रोल आने के बाद पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को भी देश छोड़कर भागना पड़ा था. जिसके बाद वो संयुक्त अरब अमीरात जा पहुंचे थे. इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके बताया था कि उन्होंने मानवीय आधार पर राष्ट्रपति ग़नी और उनके परिवार का अपने देश में स्वागत किया है।

म्यांमार में तख्तापलट 1 फरवरी 2021 की सुबह शुरू हुआ, जब देश की सत्तारूढ़ पार्टी , नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सदस्यों को तात्माडॉ – म्यांमार की सेना – द्वारा अपदस्थ कर दिया गया, जिसने फिर एक विद्रोही समूह को सत्ता सौंप दी।

यहाँ हम पाकिस्तान का ज़िक्र नहीं कर रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान में भी कई बार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का तख्ता पलट कर के सेना ने सत्ता अपने हाथों में ली है। लेकिन पाकिस्तान की यह हकीकत भी किसी से छुपी नहीं है कि वहां तो हमेशा ही सेना शक्ति। के केंद्र के रूप में रहती है। और चुनी हुई सरकार एक कठपुतली के रूप में कार्य करती है। इसलिए पाकिस्तान में तो तख्ता पलट होना न होना एक जैसा ही है। 

पड़ोसी देशों में लगातार हो रही तख्ता पलट। की घटनाएं भारत के लिए एक चिंता का विषय है। यह भारत की आंतरिक और वह सुरक्षा से संबंधित बडा।मुद्दा है। आपको बता दें कि पड़ोस के जिन देशों में भी तख्ता पलटकर सेना ने सत्ता अपने हाथों में ली है उससे पूर्व की चुनी हुई सरकारों। के साथ भारत के मजबूत संबंध रहे हैं और भारत की उपस्थिति उन। देशों में मजबूत हुई है। बांग्लादेश की बात करें तो शेख हसीना के कार्यकाल में बांग्लादेश के साथ संबंध काफी अच्छी स्थिति में। थे और बेहतरी के तरफ बढ रहे थे। इसी तरह की स्थिति म्यांमार श्रीलंका और अफगानिस्तान के साथ रही। लेकिन जिस तरीके के हालात में तख्ता पलट किया गया वह साफ दर्शाता है कि कहीं ना कहीं भारत विरोधी कोई शक्ति इन देशों को मजबूत कर भारत के विरोध में उपयोग करने में लगी हुई है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना और विकास के लिए भारत सतत् प्रयत्न करता है। और इन्हीं लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना पड़ोसी देशों में हो सके इसके लिए भी प्रयासरत रहता है। 

बांग्लादेश में जिस तरह से एक सामान्य आरक्षण विरोधी छात्र आंदोलन इतना उग्र हो गया वह साह दर्शाता है कि इस आंदोलन के पीछे कोई बड़ी अ लोकतांत्रिक शक्ति काम कर रही थी। और प्रधानमंत्री शेख हसीना के भागने के बाद सत्ता का सेना के हाथ में आना साफ बताता है। पूरे आंदोलन के पीछे कोई न कोई बड़ा षड्यंत्र काम कर रहा है।अब इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस संयंत्र में भारत विरोधी शक्तियां भी काम कर रही हों। यदि इन पड़ोसी देशों में इस तरह की तख्ता पलट की घटनाएं हो रही हैं लोकतंत्र के मूल्यों का हनन हो रहा है तो इसका सीधा प्रभाव भारत पर पड़ेगा। लगातार हो रही पड़ोसी देशों की इस तरह की घटनाओं को भारत के विदेश मंत्रालय को गंभीरता से लेना चाहिए और भारत के खुफिया विभाग को भी इन सभी घटनाक्रमों को पूर्ण रूप से अध्ययन कर अपनी नीति बनानी चाहिए। 

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