ग्वालियर मध्य प्रदेश: ग्वालियर में अवैध कॉलोनियों का मामला उस समय से तूल पकड़ा हुआ है जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने मंच से ऐलान किया था कि अवैध कॉलोनियों पर कार्रवाई की जाएगी और अवैध कॉलोनियों के निर्माण पर रोक लगेगी। इसके बाद ही ज़िला प्रशासन ने भी सख्ती दिखाते हुए अवैध कॉलोनियों पर खानापूर्ति की कार्यवाही शुरू कर दी थी। जी हां सख्ती भी दिखाई और कार्रवाई फिर भी खानापूर्ति की ही रही। इस पूरे मामले में अवैध कोलोनाइजर्स को लाभ देने के लिए कार्यवाही की फुटबॉल को जिला प्रशासन के राजस्व अधिकारी और नगर निगम के जिम्मेदार एक दूसरे के पाले में फेंकते नजर आ रहे हैं। सबसे पहले यह समझिए कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने अवैध कॉलोनियों पर अंकुश लगाने के लिए कितनी प्रभावी योजना बनाई थी।
पिछले साल मुख्यमंत्री ने जो ऐलान किया था। उसकी मानें तो पुलिस, जिला प्रशासन और नगर निगम के अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए एक मध्य प्रदेश नगरीय क्षेत्र (कॉलोनी विकास) 2021, एक्ट में संशोधन का ड्रॉफ्ट तैयार होना था, जिससे अवैध कॉलोनाइजरों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित हो सके। अवैध कॉलोनी काटने वालों के लिए निर्धारित सजा और जुर्माने को भी कई गुना बढ़ाने की तैयारी, जिसमें दोषी साबित होने पर अब 10 साल की सजा और 50 लाख रुपये तक का जुर्माना। प्रदेश सरकार के नए ड्रॉफ्ट के अनुसार अवैध कॉलोनियों के खिलाफ थाने में शिकायत मिलने पर 90 दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य, अगर पुलिस अधिकारी इस समय सीमा का पालन नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी, ताकि दोषियों को बचने का कोई मौका न मिले।
तो यह था मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का प्लान इसमें से धरातल पर कितना आया है और कितनी कार्रवाई हुई है यह हमारे पाठक खुद ही अंदाजा लगा लें क्योंकि? रोज अखबारों में आप कार्रवाई की सूचना तो बढ़ते ही होंगे और अवैध कालोनियाँ जहाँ जहाँ बन रही हैं। उसकी भी खबरें पढ़ते होंगे। वो कितने खुलेआम बन रही हैं, और किस तरह से प्रशासन और नगर निगम? की नाक के नीचे बन रही है, यह भी आप समझते ही होंगे। मुख्यमंत्री की अवैध कॉलोनियों पर अंकुश लगाने की योजना को धरातल पर लाने के बजाय नगर निगम पुलिस और जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी इस पूरे योजना को धराशायी करने में लगे हुए हैं। अवैध कालोनियों पर कार्रवाई के नाम से अपने नाक मुँह सिकोड़ने लगते हैं। नोटिस और जांच के रटे रटाए स्टेट बैंक देकर पत्रकारों के हाथ में लाली पौप पकड़ा देते हैं। अब आइए इन जिम्मेदारों का एक और बड़ा खेल समझिए।
पिछले साल जैसे ही मुख्यमंत्री का ऐलान हुआ जिला प्रशासन ने शक्ति दिखाई और ऐसा लग रहा था। की भू माफियाओं पर गाज गिरने वाली है। अवैध कॉलोनाइजर का वायरस कोरोना की तरह ही पूरी तरह गायब हो जाएगा। हर क्षेत्र के एसडीएम स्तर पर अवैध कॉलोनियों। की सूची तैयार की गई और सूची भी टाइम लिमिट में तैयार की गई थी और ऐसा लग रहा था कि सूची में जिन लों के नाम हैं। अब उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। लेकिन ऐसे अवैध कॉलोनी बनाने वाले भूमाफियाओं ने अपनी उल्टी गिनती रोकने के लिए न। जाने क्या-क्या गिना और गिनाया होगा यह तो अंदर की बात है बाहर निकले इसकी संभावना भी कम है। अब यहाँ अवैध कालोनी के नाम पर भी बड़ा घोटाला हो चुका है। घोटाला यूँ कि कई सारी अवैध कालोनियां तो जाँच के बाद भी गायब हो चुकी हैं या तो उन्हें जमीन खा गई या आसमान निगल गया, या न जाने किसके जेब में समा गई।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जिला प्रशासन ने एसडीएम स्तर पर अवैध कॉलोनियों की जो सूची बनाई थी उसमें कुल कॉलोनियों की संख्या 1326 बताई गई थी। लेकिन अब यहाँ एक ऐसा पेंच फंसाया गया जिसका लाभ सीधे तौर पर इन भू मुमाफियाओं को मिला जो अवैध कॉलोनी काट रहे थे। नगर निगम सीमा क्षेत्र में आने वाली अवैध कालोनियों पर कार्रवाई नगर निगम को करना है। के नियम का हवाला देते हुए यह पूरी सूची नगर निगम को भेज दी गई और मामला फुटबॉल की तरह नगर निगम पहुंच गया। अब यहाँ कमाल तब हो गया जब नगर निगम ने जिला प्रशासन द्वारा जांच की गई सूची की। फिर से जांच की और जब जांच की नगर निगम को कई कॉलोनियां सूची में दो बार नजर आईं। कई कॉलोनियां नगर निगम क्षेत्र के बाहर नजर आईं और कई कॉलोनियां नजर ही नहीं आई और कुल मिलाकर अब सूचि रह गई मात्र 802 अवैध कालोनियों की। नाम न छापने की शर्त पर एक क्षेत्राधिकारी ने अवैध कॉलोनियों के फाइलों की गड्डी दिखाते हुए बताया कि पूरी पूरी सूची तैयार है पूरी फाइल तैयार है नोटिस भी दिए जा चुके हैं लेकिन अब वरिष्ठ अधिकारियों ( जिला कलक्टर नगर निगमायुक्त) उसे आगे का निर्देश मिलने पर ही हम कुछ कर सकते हैं।
अवैध कालोनियों पर कार्रवाई में जिस तरीके से फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप खेला जा रहा है उससे कई सवाल मन में उठते हैं। क्या जिला प्रशासन और नगर निगम में सामंजस्य की कमी है? जिला प्रशासन ने सूची बनाई उस पर नगर निगम को पुन जांच कर सूची बनाने की जरूरत क्या पड़ी? ज़िला प्रशासन पुलिस और नगर निगम की संयुक्त टीम ने एक ही बार में एकसाथ सूची तैयार क्यों नहीं की? मुख्यमंत्री के 90 दिन के एफआईआर के आदेश के बावजूद जिम्मेदार नोटिस नोटिस का खेल क्यों खेल रहे हैं? नगर निगम ने अवैध कालोनियों की संख्या कम करके किन भूमाफियाओं को बचाया है? क्या भूमाफियाओं को बचाने के लिए ही इस तरह की गोलमोल व्यवस्था बनाई गयी है? क्या अवैध कालोनियों पर अंकुश लग पाएगा?
