ग्वालियर मध्य प्रदेश: झुंडपुरा में जीवाजी विश्वविद्यालय ने ऐसा झंडा फहराया है कि इसकी फेर और लहर जैसे जैसे लोगों तक पहुंच रही है और परतें खुलती जा रही हैं बड़े बड़े खुलासे हो रहे हैं। और आगे और भी बड़े चौंकाने वाले खुलासे होने की पूरी संभावना है। लेकिन यह एक मात्र झुंड पुरा नहीं है। ऐसे न जाने कितने ही झुंडपुरा जीवाजी विश्वविद्यालय की अलमारियो में कैद हैं? जीवाजी विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों की जेब में कुदालें मार रहे हैं। और जिस तरह से प्रशासनिक जांच दल जगह जगह कॉलेजों का फिजिकल वेरिफिकेशन कर रहे हैं। और हक़ीक़त सामने आ रही है वह साफ बता रही है के जीवाजी विश्वविद्यालय ने पूरे ग्वालियर चंबल संभाग की शिक्षा व्यवस्था को झुण्डपुरा बना रखा है।
चलिए सबसे पहले बात उस शिव शक्ति कॉलेज झुण्डुपुरा की कर लेते हैं जिसके चलते जीवाजी विश्वविद्यालय के काले कारनामें पूरे देश में सुर्खियों में हैं। वह तो भला हो एक जुझारू शिक्षक डॉ। अरुण शर्मा का जिन्हें जब पता चला कि उनके नाम का दुरुपयोग कर उन्हें झुंडपुरा के शिक्शक्ति कॉलेज मैं प्रिंसिपल बनाया हुआ है जबकि वे स्वयं झुंडपुरा के ही निवासी हैं इसके बावजूद उन्हें इसकी कोई जानकारी तक नहीं थी। और उन्होंने यह पाया कि झुंडपुरा में जमीन पर शिवशक्ति। नाम का कोई कॉलेज है ही नहीं। यह कॉलेज तो केवल इस। कॉलेज के संचालक और जीवाजी विश्वविद्यालय की मिलीभगत से कागजों पर ही चल रहा था। इसमें कागजों पर ही विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया था। कागजों पर ही शिक्षक नियुक्त किए गए थे और कागजों पर ही अरुण शर्मा को प्रिंसिपल बना दिया गया था। और इन सभी स्टाफ को बैंक खाते खुलवाकर उसमें सैलेरी भी डाली जा रही थी और ये सभी बैंक खाते, कॉलेज संचालक स्वयं ही संचालित कर रहा था।
अब आप सोचेंगे कि इस तरह कागज पर कॉलेज चलाकर और स्टाफ रख कर उनके बैंक खाते खुलवाकर उनको पैसा देकर कॉलेज संचालक का क्या लाभ? तो यह पूरा खेल है छात्रवृत्ति का भारत सरकार ने पिछड़े वर्ग अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के शैक्षणिक विकास के लिए छात्रवृत्ति का प्रावधान किया हुआ है। लेकिन इन वर्गों का विकास इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि इनके नाम पर दी जाने वाली छात्रवृति को इस तरह से। संचालित फर्जी कॉलेज डकार जाते हैं। बात झुण्डपुरा शिवशक्ति कॉलेज की करें तो यहां पर बीएससी में 180 बी.ए. में 120 और बीकॉम में 140 छात्रों के प्रवेश की अनुमति जीवाजी विश्वविद्यालय ने दे रखी थी। अरररर.. माफ कीजिए हकीकत में नहीं कागजों में दे रही थी। और इन्हीं छात्रों की कागजों में उपस्थिति और प्रवेश दिखा कर इनके नाम पर करोड़ों की छात्रवृति यह कॉलेज संचालक डकार रहा था। और इसका पर्याप्त हिस्सा जीवाजी विश्वविद्यालय के निकृष्ट और भ्रष्ट जिम्मेदारों को भी पहुँच रहा था।
जुणपुरा काशीश शक्ति कॉलेज बारह साल से कागजों पर संचालित होता रहा। हालाँकि अब अरुण शर्मा के प्रयासों के चलते इस मामले में जीवाजी विश्वविद्यालय के उन तमाम जिम्मेदार भ्रष्ट निकृष्ट अधिकारियों पर ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज हो गया है जो इस कॉलेज को कागजों पर ही मान्यता देकर उसका हर।साल वेरिफिकेशन भी करते रहे। आप समझिए कि जनसंख्या बार देखें तो इस कॉलेज में हर साल 450 छात्रों को प्रवेश दिया जाता था। इनमें से अधिकतर छात्र छात्रवृत्ति के आधार पर ही प्रवेश दिए जाते थे। और तीन वर्षीय पाठ्यक्रम में यह छात्र तीन साल तक छात्रवृत्ति उगाने का जरिया होते थे। इस तरह यदि इस कालेज के बारह साल की काली कमाई का अंदाजा लगाएँ तो आप समझिए कि क्या आंकड़ा निकल कर आएगा। जीवाजी विश्वविद्यालय के ही पूर्व प्रोफेसर का कहना है कि केवल झुंडपुरा कॉलेज ही 500 करोड़ रुपये का घोटाला हो सकता है!
अब यदि इन पूर्व प्रोफेसर के इस बात के आधार पर जीवाजी विश्वविद्यालय से संबंधित तमाम कॉलेज की बात करें। तो फिर जो आंकड़े आएँगे, वह चौंकाने वाले होंगे। अभी हाल ही में प्रशासनिक दल जब फिजिकल वेरिफिकेशन के लिए। कई कॉलेज में पहुंचा तो कई कॉलेज में न। तो शिक्षक मिले और ना ही छात्र और मिलते भी कैसे? क्योंकि यह छात्र और शिक्षक तो जीवाजी विश्वविद्यालय की आलमारी में कैद हैं, उनकी फाइलों में ही केवल इनकी उपस्थिति है। जिस तरह से जांच आगे बढ़ रही है वह साफ बताती है कि जीवाशी विश्वविद्यालय ने ऐसे तमाम कॉलेजों को मान्यता दे रखी है जो जमीन पर कहीं नहीं है बल्कि केबल फाइलों में संचालित हैं और इन्हें फाइलों में संचालित करने वाले इन कॉलेज के संचालक की ह छात्रवृत्ति के रूप में करोड़ रुपए लेकर मध्यप्रदेश शासन को लूट रहे हैं। और इन कॉलेज संचालकों की इस लूट में जीवाजी विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों की बराबर की भागीदारी है। इस तरह यदि झुंपुराशिवशक्ति कॉलेज की तरह ही कुछ अन्य कॉलेज भी कागजों पर संचालित मिलते हैं और वहां पर भी छात्रवृत्ति के नाम पर इस तरह का करोड़ों का फर्जीवाड़ा है तो इन सब मिले जुले आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं। और हम इस बात से कतई ऐतराज नहीं कर सकते कि यह आंकड़ा दस हजार करोड़ के भी पार पहुंच जाए।
आपको बता दें कि पूरे मध्यप्रदेश स्तर पर इससे पहले भी छात्रवृत्ति के नाम पर तमाम घोटाले हो चुके हैं। जिसमें शुरुआती जांच के बाद कार्रवाई दवा दी गई थी। इसमें से एक घोटाला बि फार्मा बीएड के नाम पर फर्जी तरीके से प्रवेश देकर छात्रवृत्ति वसूलने का था तो इससे भी बड़ा छात्रवृत्ति घोटाला पीजी डीएम प्रवेश में था जब मध्यप्रदेश के कुछ कॉलेज संचालकों ने जिम्मेदारों की मिलीभगत से मैनेजमेंट का पीजीडीएम। कोर्स मध्यप्रदेश में संचालित किया था और इसकी छात्रवृत्ति साढ़े तीन लाख रुपए रखी गई थी। और उस समय छात्रवृत्ति डकारने वाले तमाम पॉलिसंचालकों ने इस पाठ्यक्रम की अनुमति लेकर कागजों पर ही सैकड़ों छात्रों का प्रवेश दिखा कर करोड़ों रुपए कि छात्रवृत्ति डकार कर मध्यप्रदेश शासन को चूना लगाया था।
अभी तक जितने भी छात्रवृति घोटाले मध्यप्रदेश में हुए हैं। उसमें जांच के बाद कोई भी कार्रवाई पूर्ण नहीं हुई है। और दोषियों को सजा नहीं मिली है। पीजीडीएम के नाम पर किया गया छात्रवृति घोटाला एक बहुत बड़ा घोटाला था जो कहीं न कहीं ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब जुन्नुपुरा जैसे तमाम कॉलेज जो कागजों पर संचालित होते रहे और वहां प्रवेश दिए गए छात्रों के नाम पर करोड़ों की छात्रवृति निकाली जाती रही यदि इस मामले में भी पूरी जांच की जाएगी तो मध्यप्रदेश का एक बड़ा छात्रवृत्ति घोटाला निकलकर आएगा। क्यों कागजों पर संचालित कॉलेजों की जांच सही तरीके से होगी? इनमें दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर इस बार भी यह मामला फाइलों में दबकर रह जाएगा यह एक यक्ष प्रश्न है।