भोपाल /ग्वालियर मध्य प्रदेश: प्रदेश में रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों के खुलासे का सिलसिला थम नहीं रहा है। लगातार कहीं न कहीं लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई में कोई न कोई भ्रष्टाचारी दानव का मामला सामने आ रहा है। लगभग हर दूसरे दिन कहीं न कहीं लोकायुक्त रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़ रही है लेकिन इसके बावजूद रिश्वतखोर बाज आते नजर नहीं आ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में प्रदेश के तमाम जिलों से भ्रष्टाचार पर हो रही जिन कार्रवाई की खबरें सुर्खियों में रही, उनमें सबसे ज्यादा मामले पटवारियों के देखने को मिले जहां किसी न किसी काम को कराने के एवज में पटवारियों ने मोटी रकम रिश्वत के रूप में मांगी थी और शिकायतकर्ता की शिकायत पर लोकायुक्त की टीम ने उन्हें रंगे हाथों धर दबोचा है।
ताजा मामला 8 जनवरी का मध्यप्रदेश के दमोह जिले का है जहां एक पटवारी को लोकायुक्त की टीम ने 20 हजार रूपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़ा है। हैरानी की बात ये है कि पटवारी कलेक्टर के निर्देश को दरकिनार कर रिश्वत ले रहा था। दमोह में सागर लोकायुक्त की टीम ने बुधवार को गीतेश दुबे नाम के पटवारी को 20 हजार रूपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़ा है। रिश्वतखोर पटवारी गीतेश दुबे अभाना तहसील दमोह की रहने वाली फरियादी रामसखी पटेल से उसके पुस्तैनी मकान में जाने का रास्ता खुलवाने के नाम पर 30 हजार रुपए रिश्वत मांग रहा था। जिसकी शिकायत फरियादी रामसखी पटेल ने सागर लोकायुक्त से की थी। लोकायुक्त टीम ने शिकायत की जांच की और शिकायत सही पाए जाने पर बुधवार को जाल बिछाकर रिश्वतखोर पटवारी गीतेश दुबे को ग्राम पंचायत भवन में 20 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों धर दबोचा।
ग्वालियर लोकायुक्त की टीम ने भी मुरैना में एक किसान की शिकायत पर लोकायुक्त ने एक पटवारी को 2 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया. पटवारी सुनील शर्मा अम्बाह तहसील के सिहोनिया मौजे में पदस्थ था। उसने नामांतरण के नाम पर किसान से 8 हजार रुपये की डिमांड की थी. जिसमें से 6 हजार रुपये पटवारी पहले ही ले चुका था। लोकायुक्त ने कागजी कार्रवाई पूरी कर पटवारी को जमानत पर छोड़ दिया है।
भिंड जिले की गोहद तहसील में रहने वाले राममोहन गुर्जर ने कुछ दिन पहले ग्वालियर लोकायुक्त एसपी को एक शिकायती आवेदन दिया था. फरियादी राममोहन गुर्जर ने बताया कि “उसके पिता ने मुरैना जिले की अम्बाह तहसील के अंतर्गत आने वाले सिहोनिया मौजे में जमीन खरीदी है। जमीन का नामांतरण करवाने के लिए वह पिछले कई महीनों से चक्कर लगा रहा था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी. उसने हल्का नंबर 33 में पदस्थ मौजा पटवारी सुनील शर्मा से बातचीत की तो उसने नामांतरण करने के एवज में 8 हजार रुपये की डिमांड की थी, इसमें से वह 6 हजार रुपये पहले ही दे चुका है।
अब आप समझिए कि पटवारियों के मामलों में भ्रष्टाचार की शिकायतें क्यों बढ़ रही है? स्वाभाविक है कि शिकायत इसलिए बढ़ रही है क्योंकि पटवारियों से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पूरे मध्यप्रदेश में जमीनों को खुद बुर्द करना सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करना आंकड़ों में फेरबदल करना बड़े तेजी से चल रहा है। और इन सभी कामों को करने के लिए पटवारी सबसे अहम् किरदार निभाता है बड़े बड़े ज़मीनों के खेल में पटवारी अपना हिस्सा लेकर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। यही कारण है कि जब कोई सामान्य किसान या आम नागरिक भी इन पटवारियों के चंगुल में फंसता है तो इनकी उम्मीद उनसे भी रिश्वत के रूप में मोटी रकम वसूलने की रहती है। ज्यादातर मामलों में काम बिना किसी परेशानी के हो जाए। इस भावना के चलते लोग पटवारियों को आसानी से रिश्वत दे। देते हैं।कुछ एक मामले ही हैं जो उजागर होते हैं। पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश में तमाम जिलों में पटवारियों को जिस तरह लोकायुक्त ने रंगे हाथों पकड़ा है लोकायुक्त की इस कार्रवाई ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि ज्यादातर पटवारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
कोई पटवारी कितना पैसा कमा सकता है। कितना उड़ा सकता है। इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगाइए जब अभी हाल ही में ग्वालियर में एक पटवारी संदीप राजावत। ने किसी कार्य के लिए दान स्वरूप इक्यावन हजार।रुपए की राशि दी। अब आप ही बताइए कि 51000 रुपये एक पटवारी के मासिक वेतन का कितना हिस्सा होता होगा? क्या कोई ईमानदार पटवारी अपने वेतन का इतना बड़ा हिस्सा दान के रूप में दे सकता है? यह आंकड़ा चौंकाने वाला इसलिए और नजर आता है कि उसी कार्यक्रम में ग्वालियर जिले की कलेक्टर साहिबा ने दान के रूप में मात्र ग्यारह हजार रुपये की राशि दी थी। जब एक कलेक्टर ग्यारह हजार रुपए दान स्वरूप दें जो संभवतः उनके लिए अधिकतम हो ऐसी स्थिति में यदि। कोई पटवारी ₹51000 दान में दे तो यह सवाल खड़ा होता है कि क्या यह पटवारी कहीं ना कहीं ज़मीनों के खेल में लिप्त तो नहीं है? दमोह में बीस हजार रिश्वत लेते पकड़े गए पटवारी गीतेश दुबे, जिस तरह कलेक्टर के आदेश को दरकिनार करते हुए रिश्वत ली वह साफ इशारा कर रहा है कि ज़मीनों के मामले में एक पटवारी कलेक्टर पर भारी है।
जिस मध्यप्रदेश में एक अदना सा परिवहन विभाग का सिपाही करोड़ों रुपए उगल रहा हो। जिसकी नौकरी केवल सात साल की रही हो उसी मध्यदेश में यदि कोई पटवारी कई सालों से नौकरी में हो और सबसे बड़ी बात। काफी लंबे समय से एक ही क्षेत्र में पदस्थ हो तो यह सवाल उठना वाजिब है। ऐसे पटवारियों को प्रशासन एक ही जगह क्यों रखे हुए हैं? समय समय पर इन का स्थानांतरण क्यों नहीं हो रहा है? ग्वालियर जिले में ऐसे तमाम पटवारी हैं। जो कई सालों से एक ही स्थान पर पदस्थ हैं और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उस क्षेत्र के भूमाफियाओं से उनका गहरा गठबंधन है। साथ ही यदि नियम विरुद्ध लंबे समय तक कोई पटवारी किसी क्षेत्र में पदस्थ है और उसका स्थानांतरण नहीं हो रहा है तो इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी न। किसी माननीय का संरक्षण ऐसे पटवारी को जरूर मिल रहा होगा।
पूरे मध्य प्रदेश के किसी भी जिले की बात कर लें। वहां वस्तुस्थिति यही है कि कुछ पटवारी भूमाफियाओं के साथ मिलकर जमीनों के खेल में पूरी तरह लिप्त हैं। पटवारी होना तो उनके लिए मात्र एक साइड बिज़नेस है। मुख्य व्यवसाय तो उनके लिए ज़मीन का खेल ही है। जब अब इस तरह से किसी न किसी पटवारी को लोकायुक्त टीम द्वारा रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ने की घटना सामने आती है तो साफ समझ आता है कि जो पटवारी इन छोटे कामों के लिए भी एक मोटी रकम रिश्वत। के रूप में लेते हैं और जब इन्हीं पटवारियों को कोई सरकारी जमीन कोई चरनोई की भूमि खुर्द। -बुर्द करने खतरे खतौनी बदलने का काम मिलता होगा उसके एवज में कितनी बड़ी रकम लेते होंगे?
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