ग्वालियर मध्य प्रदेश: जब से शिक्षा विभाग का एक ऑडियो वायरल हुआ है जिसमें बीआरसीसी और एक निजी स्कूल संचालक के बीच में बहुत ही अंडर्स्टैंडिंग के साथ बातचीत हो रही है। तब से यही चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया है की क्या शिक्षा विभाग इसी तरह निजी स्कूलों की जांच करता है और उन्हें उनके गलत कामों के लिए संरक्षण भी देता है। यदि इस ऑडियो में चल रही बातों में हकीकत है। तो यकीन मान।कर चलिए कि इसी तरीके से शिक्षा विभाग तमाम निजी स्कूलों को नियम।कायदों को दरकिनार करते हुए भी संरक्षण दे रहा है। और यह सब शिक्षा विभाग के मुखिया जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार जानकारी में न हो या उनकी मंजूरी के बिना हो रहा हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। निजी स्कूलों के साथ साथ सरकारी स्कूलों का बेड़ा करने में भी जिला शिक्षा अधिकारी की भूमिका उजागर हुई है। ग्रामीण क्षेत्र के तमाम सरकारी स्कूल जर्जर हालत में हैं। और ऐसी जानकारी मिली है कि उनके मरम्मत के नाम पर शिक्षा विभाग द्वारा 50 लाख रुपए का खेल कर दिया गया और जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार इस बारे में जानकारी देने से बचते नजर आए।
सूत्रों से जानकारी मिली है कि जर्जर सरकारी स्कूल भवनों के मरम्मत में हुए गबन की जांच आर्थिक अपराध शाखा में लंबित है। यह जानकारी मिली है कि इस संबंध में आप आर्थिक अपराध शाखा ने जिला शिक्षा अधिकारी से संबंधित दस्तावेज माँगने के लिए कई बार पत्र लिखे थे। लेकिन आर्थिक अपराध शाखा को कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए थे। जिस तरह से जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार जानकारी देने से बचते नजर आ रहे थे। उससे साफ है। स्कूलों के मरम्मत कार्य में किए गए इस गबन में उनकी भूमिका संदिग्ध है। वित्तीय वर्ष 2023 में समग्र शिक्षा अभियान के तहत ग्वालियर जिले के सौ स्कूलों को मरम्मत कार्य के लिए चिह्नित किया गया था। इसके लिये अनुरक्षण अनुरक्षण मद से प्रति स्कूल ₹3 लाख राशि स्वीकृत की गई थी। इस हिसाब से कुल राशि तीन करोड़ रुपए होती है। इस मामले में नियमों को ताक पर रखकर मनमाने तरीके से जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार के संरक्षण में जहां जरूरत जरूरत थी वहां छोड़कर जहां नहीं थी वहाँ खाना पूर्ति के मरम्मत कार्य कराए गए। इस मामले में ऐसे आरोप लगाए गए की पचास लाख रुपये की राशि की बंदर वाट विभाग के अधिकारियों ने की जिसकी पूरी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार को भी है और उनकी भी संलिप्तता का अंदेशा इसमें पाया गया।
इस मामले में गड़बड़ झाला कैसे हुआ। क्या नियम ताक पर रखे गए। उसके लिए पहले यह समझना ज़रूरी है कि काम किस तरीके से होना था और किस तरीके से। गड़बड़ किया गया। जिन स्कूलों को मरम्मत कार्य के लिए। चिह्नित किया गया था। उन्हें सबसे पहले एक ठेकेदार तय करना था जिसे पूरे स्कूल का निरीक्षण कराना था। ठेकेदार को स्कूल का पूरा काम देखकर उसका ब्यौरा एसएमडीसी समिति को सौंपना था। आपको बता दें कि एसएमडीसी कमिटी हर स्कूल में होती है जिसमें स्कूल का प्राचार्य शिक्षक और कुछ छात्रों के अभिभावक शामिल होते हैं। इस समिति द्वारा किए जा रहे काम की स्वीकृति के बाद ही मरम्मत का। काम शुरू होता है और जिसका निरीक्षण भी इसी समिति द्वारा किया जाता है कि जो काम बताया गया है वही हो रहा है कि नहीं। स्कूल में जो भी मरम्मत कार्य किया गया उसका पूरा बिल एसएमडीसी समिति द्वारा ही शिक्षा विभाग में भेजा जाता है। और शिक्षा विभाग का इंजीनियर किए गए कार्य की गुणवत्ता की जांच करता है। इसके बाद शिक्षा विभाग बिल का भुगतान करता है। इसलिए इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग के इंजीनियर की भूमिका भी संदिग्ध है। अब आप समझिए कि किस तरह इन सारे नियमों को दरकिनार किया गया व अपने हिसाब से मरम्मत कार्य कराया गया। तीन करोड़ के इस मरम्मत कार्य में जिला शिक्षा विभाग द्वारा चुना गया ठेकेदार स्कूलों में मरम्मत के लिए गया। एसएमडीसी समिति की जगह निरीक्षण रिपोर्ट लेकर सभी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी को सीधे दी गई। ठेकेदार ने भी एस एमडीसी समिति को न बताते मरम्मत पूरा होने की जानकारी सीधे शिक्षा विभाग में दी और वहीं से बिलों का भुगतान भी करा लिया।
इस तरह मरम्मत के लिए सारे नियम ताक पर रखकर शिक्षा विभाग ने अपने स्तर पर ही ठेकेदार नियुक्त कर अपने स्तर पर ही पूरा काम तय कर और काम को पूरा बता भुगतान भी कर दिया। इसके बावजूद भी इस सूची के शो में से तमाम स्कूल आज भी जर्जर हालत में है। ठेकेदार ने वहां वह कार्य किया ही नहीं जो किया जाना था। इस पूरे मामले में जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार की भूमिका संदेह के घेरे में है। साथ ही शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारियों की संलिप्तता से भी इनकार नहीं किया जा सकता। अब इस पूरे मामले की शिकायत आर्थिक अपराध शाखा में चल रही है। लेकिन ऐसी जानकारी है कि संबंधित मरम्मत कार्य के दस्तावेज आर्थिक अपराध शाखा को उपलब्ध नहीं कराए जा रहे। यदि इस मामले में दस्तावेजों की उपलब्धता के बाद ईओडब्ल्यू की जांच आगे बढ़ती है, तो शिक्षा विभाग के कई अधिकारी निपट सकते हैं।