ग्वालियर मध्य प्रदेश: शहर की जीवन धारा जीवन धारा इसलिए क्योंकि जीवन के लिए पानी जरूरी है पानी का शहर का एक मात्र साधन है तिघरा बाँध। भारी बारिश के चलते जब तिघरा बाँध के गेट खोले गए प्रशासन और जनता खुश होती नजर आई। इन गेटों को खोलकर जो पानी बहाया गया वह शहर की पानी सप्लाई के सात महीने के कोटे के बराबर था। हम आपको बता दें कि यह वहीं। तिघरा बांध है जहाँ गर्मियों में जलस्तर इतना नीचा चला जाता है कि शहर में पानी की किल्लत हो जाती है, और जिम्मेदार उस समय जल संकट से निपटने के लिए अपना स्तर खुजाने लगते हैं। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए यह सवाल खड़ा होता है कि जो 7 महीने की पानी सप्लाई का कीमती पानी बहा। दिया गया।क्या उसे रोका जा सकता था?
जल ही जीवन है पानी बचाना जरूरी है। आप देखिए हर साल अप्रैल मई का महीना आते ही शासन। प्रशासन और तमाम मीडिया हाउस की जल संरक्षण मुहिम शुरू हो जाती हैं। वह ऐसा प्रतीत होता है जैसे लो।प्यास लगने पर कुआं खोद रहे हो। गर्मी के मौसम में जल संकट गहरा जाता है और उसी समय सभी को पानी बचाने की याद आती है। हालात इतने बदतर हो जाते हैं के कई क्षेत्रों में तो कई दिनों तक जल आपूर्ति हो ही नहीं पाती टैंकरों का सहारा लेना पड़ता है। और यह हकीकत किसी से छुपी नहीं है उसके बाद भी जब तिघरा के गेट खोलकर 7 महीने का पानी बहाया जाता है तो पता नहीं क्यों ताली पीटी जाती हैं? अभी सितंबर में जिस पानी को बहाकर खुशियां मना रहे हैं कुछ महीने बाद उसी पानी के लिए तरसेंगे। और इस प्रकार की व्यवस्था साफ दर्शाती है कि प्रशासन वॉटर मैनेजमेंट में पूरी तरह फेल हो चुका है।
जो कीमती पानी बहा दिया गया उसे रोकने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए थे उसे बहाने से पहले प्रशासन के सामने गर्मी के मौसम के जल। संकट की वह दृश्य चिंतन के लिए होने चाहिए थे। जल संसाधन विभाग का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि तिगरा के गेट चालीस घंटे तक लगातार खोले गए हों। और सात महीने का पानी बहा दिया गया हो। यदि तिगरा के नीचे एक और छोटा बाँध बना दिया जाता तो यह कीमती पानी बचाया जा सकता था। सूत्र बताते हैं कि पिछले 25 साल से तिगरा जलाशय में भरी हुई गाद को निकाला नहीं गया है जितना वॉल्यूम पानी बहाया गया है यदि गाद हटा दी जाती तो उसमें से कितना वॉल्यूम पानी बहाने की जरूरत नहीं होती यह जांच भी की जानी चाहिए।
आपको बता दें की तत्कालीन सिंधिया स्टेट टाइम पर माधव महाराज द्वारा तिगरा बांध बनाया गया था जो आज भी शहर में पेयजल का मुख्य साधन है। और अन्य जितने भी बाँध हैं वह भी सिंधिया स्टेट टाइम के ही हैं। मध्य प्रदेश मे ऐसी कोई भी सरकार नहीं आई जिसने ग्वालियर को आने वाले जल। संकट से रोकने के लिए को जल स्रोत उपलब्ध कराया हो। मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया को उन दिनों बांध बनाने के मामले में दुनिया सर्वश्रेष्ठ इंजीनियर थे। उस समय के ग्वालियर स्टेट के तत्कालीन महाराज माधौ महाराज ने उन्हें बांध बनाने की जिम्मेदारी दी। सर्वे के बाद तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे सांक नदी के क्षेत्र को बांध के लिए चुना गया। बांध 1916 में बन कर तैयार हो गया। करीब 24 मीटर ऊंचे और 1341 मीटर लंबे इस बांध की क्षमता 4.8 मिलियन क्यूबिक फीट है। इसमें विश्वेश्वरैया ने स्वयं की तकनीक से विकसित किये गए फ्लड गेट लगाए थे, जिन्हे बाद में विश्वेश्वरैया गेट के नाम से पेटेंट भी कराया गया था। तिघरा बांध में 108 साल पहले लगे ये गेट आज भी कारगर साबित हो रहे हैं। कम से कम इतिहास से सबक लेकर ही आज के इंजीनियर्स और प्रशासनिक अधिकारियों को जल संकट से शहर को उबारने के लिए कोई रास्ता निकालना चाहिए।