Tuesday, September 17, 2024
29.1 C
Delhi
Tuesday, September 17, 2024
HomeExclusiveयह कैसा भगवान जो हड़ताल पर जाता है? पीड़ितों को काल भरोसे...

यह कैसा भगवान जो हड़ताल पर जाता है? पीड़ितों को काल भरोसे छोड़ जाता है?

मैं अपनी सर्वोत्तम क्षमता और विवेक से इस वाचा को पूरा करने की शपथ लेता हूँ:

मैं उन चिकित्सकों की कठिन परिश्रम से अर्जित वैज्ञानिक उपलब्धियों का सम्मान करूंगा जिनके पदचिह्नों पर मैं चलता हूं, तथा अपने ज्ञान को अपने अनुयायियों के साथ खुशी-खुशी साझा करूंगा।

मैं बीमारों के लाभ के लिए सभी आवश्यक उपाय लागू करूंगा, तथा अति उपचार और  उपचारात्मक शून्यवाद।के दोहरे जाल से बचूंगा ।

मैं याद रखूंगा कि चिकित्सा में विज्ञान के साथ-साथ कला भी है, तथा गर्मजोशी, सहानुभूति और समझदारी, सर्जन के चाकू या केमिस्ट की दवा से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।

मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं होगी कि “मुझे नहीं पता”, और न ही मैं अपने सहकर्मियों को बुलाने से चूकूंगा जब किसी मरीज के ठीक होने के लिए किसी अन्य के कौशल की आवश्यकता होगी।

मैं अपने मरीजों की निजता का सम्मान करूंगा, क्योंकि उनकी समस्याओं का खुलासा मुझे नहीं करना चाहिए ताकि दुनिया को पता चल जाए। सबसे खास बात यह है कि मुझे जीवन और मृत्यु के मामलों में सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए। अगर मुझे किसी की जान बचाने का काम दिया जाता है, तो शुक्रिया। लेकिन हो सकता है कि मेरी शक्ति में किसी की जान लेने की भी शक्ति हो; इस बड़ी जिम्मेदारी का सामना मुझे बहुत विनम्रता और अपनी खुद की कमजोरी के प्रति जागरूकता के साथ करना चाहिए। सबसे बढ़कर, मुझे भगवान के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।

मैं याद रखूँगा कि मैं बुखार के चार्ट, कैंसर के विकास का इलाज नहीं करता, बल्कि एक बीमार इंसान का इलाज करता हूँ, जिसकी बीमारी उस व्यक्ति के परिवार और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। अगर मुझे बीमारों की उचित देखभाल करनी है, तो मेरी ज़िम्मेदारी में ये संबंधित समस्याएँ भी शामिल हैं।

मैं जब भी संभव होगा बीमारी को रोकूंगा, क्योंकि रोकथाम इलाज से बेहतर है।

मैं याद रखूंगा कि मैं समाज का एक सदस्य हूं, तथा मेरे सभी साथी मनुष्यों के प्रति मेरी विशेष जिम्मेदारी है, चाहे वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हों या अशक्त।

अगर मैं इस शपथ का उल्लंघन नहीं करता, तो मैं जीवन और कला का आनंद ले सकता हूँ, जब तक मैं जीवित रहूँ, सम्मान पाऊँ और उसके बाद स्नेह से याद किया जाऊँ। मैं हमेशा अपने पेशे की बेहतरीन परंपराओं को बनाए रखने के लिए काम करूँ और जो लोग मेरी मदद चाहते हैं, उन्हें ठीक करने का आनंद लंबे समय तक अनुभव करूँ।

प्राप्त जानकारी के अनुसार यह वह शपथ है। यह एक आम आदमी भगवान बनने से पहले लेता है मतलब डॉक्टर बनने से पहले मरीजों की सेवा के लिए इस तरह कि शब्दावली के साथ इस शपथ को भी आत्मसात किया जाता है। लेकिन जिस तरह से हड़ताल धरना प्रदर्शन के चक्कर में देश भर में मरीज बेहाल हैं। इलाज के लिए तरस रहे हैं। मिन्नतें कर रहे हैं। माननीय उच्च न्यायालय को भी कहना पड़ता है। यदि हड़ताल से किसी की जान चली जाती है तो यह बहुत चिंता की बात होगी। यदि आपके साथ अन्याय होता है तो उसका विरोध जरूरी है। आवाज़ उठाना जरूरी है लेकिन के विरोध के चक्कर में किसी और के साथ अन्याय न हो यह नैतिक जवाबदेही भी आपकी है। आज देश भर में तमाम डॉक्टर्स जब हड़ताल पे हैं तो उनके हाथ में एक तख्ती दिखाई देती है। जिस पर लिखा हुआ है “We want justice”… लेकिन इस तरह की हड़ताल आपके इस स्लोगन को “We do injustice” में बदल देती है। भगवान तो छोड़िए मैं तो कहता हूँ इंसान भी वही होता है जो खुद पे हुए अन्याय। का विरोध करने के लिए दूसरों पर अन्याय न करें। और यदि आपको भगवान का दर्जा दिया जाता है तो आपकी नैतिक जवाबदेही और समर्पण भाव भी भगवान तुल्य हो जाना चाहिए जो आजकल कहीं भी दिखाई नहीं देता है। 

क्या धरना प्रदर्शन और हड़ताल ही न्याय? का रास्ता है। क्या हमें अपनी न्याय प्रणाली पर विश्वास नहीं है जिस तरह से माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि आप अपनी समस्या लेकर हमारे पास आए हम सुनवाई करेंगे और सरकार को निर्देशित भी करेंगे यह दिखाता है कि न्यायपालिका मजबूत है और वह जब इस तरह के अन्याय को होता देखती है तो उस पर बडे फैसले भी देती है। लेकिन इसके बावजूद भी जो बहुत आवश्यक सेवा है चिकित्सकीय सेवा जिसमें कुछ लोगों की जान जोखिम में होती है एक पूरे दिन की हड़ताल क्या केवल यदि? कुछ मिनटों की देरी हो जाए।तो भी एक मरीज की जान जा सकती है। और यह हक़ीक़त डॉक्टर्स भी जानते हैं। कई बार घायल अवस्था में मरीज के अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सक यही कहते हैं कि यदि थोड़ी देर पहले ले आते तो मैं इसको बचा लेता। कहीं न कहीं मरीज को बचाने का भाव आज भी तमाम डॉक्टर्स में होता है लेकिन हर व्यवसाय में। हर तरह के लोग होते हैं यहां हडताल करने वालों में भी हो सकता है के कुछ लोगों के अपने कुछ अलग स्वार्थ हों। जिसकी वजह से वह संपूर्ण डॉक्टर फैटरनिटी को आंदोलित कर रहे हैं। जो मरीज जो परिजन एक आस लगाकर आपके सामने आये हों आपसे मदद की गुहार लगा रहे हो यदि आप उसका इलाज नहीं करते आप उसकी सहायता नहीं करते तो आप भगवान नहीं शैतान।की पदवी पाने योग्य हैं।

ऐसी तमाम आवश्यक सेवाओं में इस तरह की हड़ताल पूरी तरह से अवैध और गैर कानूनी होना चाहिए। मान लें कि आपके साथ अन्याय हुआ है। तो न्याय तो आपको न्यायपालिका से ही मिलेगा ना कि सडकों पर धरना प्रदर्शन हड़ताल करने से। अन्याय तो हमारे फौजी भाइयों के साथ भी होता है उनको भी तमाम तरह की समस्याएं आती हैं। जरा सोचिए ही यदि इस अन्याय के ख़िलाफ़ फौजी भाई भी हड़ताल कर दें और देश की सुरक्षा को ताक पर लगा दें देश की सीमाएं छोड़कर आ जाएं तो क्या स्थिति बनेगी? एक फौजी भाई के साथ हुए अन्याय। का उदाहरण मैं यहाँ पेश करूंगा जो स्थानांतरण होने के बाद अपने परिवार के साथ ग्वालियर से उड़ीसा जा रहा था। और ग्वालियर में ही जब उसके साथ ट्रंक और लगेज ज्यादा था जिसे चढ़ाने के लिए उसने चैन पुलिंग की तो उसे ग्वालियर आरपीएफ ने रोक लिया ट्रेन में चलने नहीं दिया। उस फौजी भाई का पूरा परिवार ट्रेन में आगे निकल गया और उसे घंटों थाने में बिठाल।के रखा गया। इस अन्याय के बाद भी वह फौजी अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचा और यकीन मानिए कि वह देश की सेवा में जुट गया न कि उसने हडताल और विरोध किया क्योंकि उसे पता है कि उसका विरोध उसके लिए न्याय की मांग हजारों लाखों लोगों के साथ अन्याय कर सकती है। और हाँ देश की रक्षा करने वाले देश की जनता की रक्षा करने वाले इन फौजियों को हम भगवान का दर्जा नहीं देते!

जो घटना कोलकाता में हुई वह निंदनीय है उस बेटी को न्याय। मिलना चाहिए। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होना चाहिए। ऐसे अपराधियों को खुली सड़क पर चौराहे पर सजा देने का प्रावधान होना चाहिए।मैं इस तरह के अपराधों के प्रति बहुत कड़ा रुख रखता हूँ। और मेरी संवेदना इस समय हर उस डॉक्टर के साथ है जो इस पीड़ा को सहन कर रहा है। यह गलत हुआ है। ऐसी घटनाएं हमारे समाज पर धब्बा हैं। इस महिला डॉक्टर के संग हुए जघन्य अपराध इसका विरोध किया जाना चाहिए। ऐसा विरोध किया जाना चाहिए कि सिस्टम में बदलाव आए और हर एक वह दरिंदा जो इस तरह कि। कुटिल दरिंदगी अपने अंदर रखता है। वह दहल जाए। ऐसी दरिंदगी करने वालों को उससे भी ज्यादा दरिंदगी वाली जिंदगी देना चाहिए, यातना देनी चाहिए। आप ही बतायें बलात्कार की सजा क्या होनी चाहिए? यौन उत्पीड़न की सजा क्या होनी चाहिए? एक महिला के साथ दरिंदगी की सजा क्या होना चाहिए? और वह सजा निश्चित ही हमारी न्यायपालिका इस महिला चिकित्सक। के साथ अन्याय करने वाले दरिंदों को देगी। 

“We want justice” shall not be turned into “We do injustice”

God, the saviour can not be on strike

theinglespost
theinglespost
Our vision is to spread knowledge for the betterment of society. Its a non profit portal to aware people by sharing true information on environment, cyber crime, health, education, technology and each small thing that can bring a big difference.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular