भोपाल, मध्य प्रदेश: ग्वालियर में मुरार ब्लॉक के चकरामपुरा क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालय की छत गिर जाती है, और उसमें पढ़ने वाले 19 मासूम बच्चे बाल बाल बच जाते हैं। अब ये छत गिरी तो गिरी इसमें कौन सी बड़ी बात है एक बड़े प्रदेश में ऐसी छोटी छोटी घटनाएं तो होती रहती हैं। स्कूल की छत ही तो गिरी है। कौन किसी का बच्चा मर गया! और मर भी जाता तो उसे दो चार लाख देकर आर्थिक सहायता का मरहम लगा देते। एक स्कूल की छत का गिरना ठीक उसी तरह से प्रायोजित है जिस तरह से पर्यावरण प्रेमियों का कलेक्ट्रेट कार्यालय पर जाकर वृक्षों को कटने से बचाने के लिए निवेदन करना!
गरीबों के बच्चों के लिए इस प्रायोजित मौत का इंतजाम हमारे शिक्षा विभाग ने कर रखा है क्योंकि यह कोई पहला स्कूल नहीं है जिसकी छत गिरी हो और आखिरी भी नहीं होगा। आगे भी आपको इस तरह की छत। गिरने की घटनाएं और अनहोनी होने की खबरें सुनाई देती रहेंगी। नरसिंहपुर जिले में 24 जुलाई को एक सरकारी स्कूल के एक कक्षा की छत का प्लास्टर गिर जाने से नौ छात्राएं घायल हो गईं। यहाँ सबसे अधिक बड़ी ध्यान देने वाली बात यह है कि यह घटना गोटेगांव कस्बे सी एम राइज स्कूल में हुई। इस मामले में नरसिंहपुर जिला शिक्षा अधिकारी अनिल बेहर ने जांच के आदेश दे दिए थे और उनका कहना था कि जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कोई कार्रवाई की जाएगी। 4 अगस्त को रीवा जिले के गढ़ में प्राइवेट स्कूल के करीब दीवार गिरने से 4 बच्चों की मौत हो गई। हादसे में एक महिला और कुछ बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। सरकार ने मृत बच्चों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी। अब स्कूल प्राइवेट हो या सरकारी उसकी मॉनिटरिंग। तो मध्य प्रदेश शासन के शिक्षा विभाग को ही करनी होती है और मॉनिटरिंग अपने कार्यालय में कुर्सी पर बैठे बैठे यह अधिकारी बखूबी करते हैं।
दो साल पहले भी मुरार ब्लॉक के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में तमाम सरकारी स्कूलों का कवरेज हमने किया था। उस समय भी कई स्कूलों के भवन जर्जर नजर आए थे। कई भवनों में पानी टपकराता तो कई की छत ही टपकी हुई थी। यह सब जानकारी उस समय भी जिला शिक्षा अधिकारी ग्वालियर अजय कटियार साहब को दी गई थी। उस समय भी उन्होंने कार्यवाही की बात की थी। लेकिन, क्या कार्रवाई हुई? कितनी सजगता विभाग में आई उसका परिणाम आज आप देख ही रहे हैं कि उसी ब्लॉक में एक सरकारी स्कूल कि छत?गिर जाती है। मतलब साफ है के स्कूल अच्छी स्थिति में है।यह कागजों पर दिखा दिया जाता है। या कुछ स्कूल के जिम्मेदार शिक्षक? यदि स्कूल के जर्जर भवन के मामले में पत्राचार भी करते हैं तो वह पत्राचार फाइल में सिमटकर रह जाता है क्योंकि स्कूलों की मरम्मत के लिए शायद सरकार के पास धन की कमी है।
स्कूलों की मरम्मत के लिये पर्याप्त फंड नहीं है यह हम नहीं कह रहे यह जिला शिक्षा अधिकारी महोदय का ही कहना है। जब स्कूल के भवन जर्जर हैं छत गिरने की हालत में है उसके बाद भी हमारी सरकार के पास स्कूलों के मरम्मत के लिए फंड नहीं है। तो फिर इस तरह की घटनाओं को हम प्रायोजित न कहें तो क्या कहें? प्रायोजित का तो क्या ही कहें क्योंकि जो कुछ प्राइस चल रहा है। वह तो आप देख ही चुके हैं क्योंकि ऐसे सैकड़ों स्कूल जर्जर हालत में अभी भी संचालित हैं। और शिक्षा विभाग ने उन स्कूलों के संबंधित शिक्षकों को निर्देश दे दिया है कि कुछ दिनों के लिए जब तक बारिश का मौसम है अपने स्कूल कि कक्षाओं को कहीं और प्रायोजित कर लें। मतलब अब आप देख ही रहे हैं की एक घटना हो जाने के बाद शिक्षा विभाग का जांच का और कार्रवाई का प्रायोजित कार्यक्रम शुरू हो चुका है। कई दिनों तक ऐसे पालक जिनको अपने बच्चों के जान।की चिंता होगी शायद वो अपने बच्चों को ऐसे जर्जर स्कूलों में पढ़ने भेजेंगे ही नहीं और जब बच्चे पढ़ेंगे नहीं तो बड़े होगे अपने हक की मांग करेंगे ही नहीं ये भी एक बहुत बड़ा प्रायोजित कार्यक्रम नजर आता है।
भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह के निर्देश पर सभी एसडीएम ने जर्जर इमारतों को लेकर सर्वे का काम भी शुरू किया है। जिला शिक्षा अधिकारी नरेंद्र अहिवार ने पुराने शहर के जहांगीरिया, हमीदिया-1 और हमीदिया-2 के जर्जर हिस्से को मंगलवार को सील कर कर छात्रों की आवाजाही रोक दी है। इस कार्यवाही में 20 स्कूल और 30 आंगनवाड़ियों को दूसरी जगह सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट किया जा चुका है। अभी यह सर्वे चल रहा है और ऐसा बताया जा रहा है कि पूरे भोपाल में भी सैकड़ों ऐसे जर्जर स्कूल हो सकते हैं।यहां बच्चों की जान का खतरा बना हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश के राजधानी में स्कूल शिक्षा विभाग सोया हुआ है और जर्जर भवनों में स्कूल का संचालन करा रहा है? तो इसे शिक्षा विभाग का प्रायोजित नाकारापन न कहें तो क्या कहें?
चकरामपुरा स्कूल की छत गिरने के बाद शिक्षा विभाग अपनी चिरन्निंद्रा से जाग गया है और अब जर्जर भवन वाले स्कूलों की सूची तैयार हो रही है। लेकिन यह सूची वास्तव में जमीनी स्तर पर कुछ बदलाव ला पाएगी। संयुक्त संचालक महोदय मुरैना में डेरा जमाए हुए हैं और जानकारी मिली है की दो। सौ से अधिक जर्जर स्कूलों की सूची वहां बन चुकी है। जिला शिक्षा अधिकारी ग्वालियर ने भी हायर सेकेंडरी के ऐसे पचास स्कूलों की सूची बना ली है जिनको मरम्मत की आवश्यकता है। अभी घटना गरम गरम है इसलिए शिक्षा विभाग सक्रिय नजर आएगा। कार्रवाई की बड़ी बड़ी बातें होंगी। बड़ी बड़ी सूची बनाई जाएंगी फाइलें भोपाल तक घुमाई जाएगी। लेकिन आखिरी मे वही ढाक के तीन पात! जब सरकार के पास जर्जर भवनों के मरम्मत के लिए फंड ही नहीं है तो फिर यह सब जो घटना के बाद की रस्म अदायगी है इसे प्रायोजित कार्यक्रम नहीं कहें तो क्या कहें? हमारे नौनिहाल और उनके पालक आपके “स्कूल चलें हम” अभियान को “मरने चलें हम” कहने लगे उससे पहले ही सुधार कर लो साहब!
चकरामपुरा मुरार में इस तरह गिरी स्कूल की छत
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