क्या आपने कभी सुना है कि बेरोजगारी कम करने के आंकड़े बताने के लिए बेरोजगारों को ही लापता कर दिया जाए? जी हां ऐसा मामला हुआ है। मध्यप्रदेश में वही मध्य प्रदेश जिसको बोला जाता है कि एमपी गजब है हो यह है जो आंकड़े सामने आए हैं यह तो वास्तव में बता रहे हैं। के एमपी गजब ही है।
दरअसल सोमवार को विधानसभा में बेरोजगारी से संबंधित प्रश्नों पर जिम्मेदार सरकार द्वारा दो अलग-अलग जवाब पेश किए गए। कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने पूछा था कि प्रदेश में बेरोजगारों की क्या स्थिति है जिसका जवाब कौशल विकास और रोजगार विभाग के राज्यमंत्री गौतम टेटवाल ने दिया था। मन्त्री जी ने बताया कि 31 मई, 2000 को मध्यप्रदेश में 3216064 बेरोजगार पंजीकृत थे और 31 मई, 2022 को 2708229 रह गए। इस तरह यही संख्या 31 मई, 2024 तक घटकर 258259 रह गई । मतलब बेरोजगारों की संख्या में लगभग बारह लाख की कमी आई है।
पिछले 3 साल में मध्यप्रदेश में कितनी नौकरी दी गई के जवाब में मंत्री जी ने बताया कि पिछले 3 साल में 232000 लोगों को निजी क्षेत्र में नौकरी दी गई है करो अब सवाल यह उठता है कि जब नौकरी 201000 लोगों को दी गई और बेरोजगारों की संख्या में। लगभग बारह लाख की कमी आई है तो फिर बाकी के दस लाख बेरोजगार कहाँ गायब हो गए। जो कि बडा सवाल यह है कि यह आंकड़े जिम्मेदार मंत्री जी द्वारा विधानसभा में जारी किए गए हैं यह कोई किसी विपक्षी दल का या किसी विश्लेषक का अंदाजा नहीं है।
अब विधानसभा में दिए गए मंत्री जीके जवाब ने ही सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिरकार यह 10 लाख बेरोजगार गए कहां। जो आंकडे पेश किए गए हैं उसके अनुसार की लगभग 2 लाख लोगों को दी गई है जबकि बेरोजगारों की संख्या में 12 लाख की कमी आई है। इस तरह की गड़बड़ साफ इशारा कर रही है है कि विधानसभा में दिए गए आंकड़ों में बड़े स्तर पर घालमेल किया गया है।