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डाक्टरों की आपसी गुंडई और विभागीय खींचतान का खामियाजा भुगत रहे मरीज, आपसी ईगो क्लेश और मरीजों की मौत!

ग्वालियर मध्य प्रदेश: ग्वालियर के गजरा राजा मेडिकल कॉलेज और उससे संबंधित जय आरोग्य अस्पताल में अलग-अलग विभागों के डॉक्टर्स को बीच में खींचतान ईगो क्लैशिस किस तरह हावी है इसकी हकीकत तो आप उन मरीजों और उनके परिजनों से पूछिए जो यहां पर इलाज कराने पहुंचते हैं और जब उनके मरीज को एक विभाग में भर्ती किया जाता है। और उनके मरीज को दूसरे विभाग के चिकित्सकीय सलाह की आवश्यकता होती है तो किस तरह दोनों विभागों के डॉक्टर्स एक दूसरे के सर पर जिम्मेदारी मरते नजर आते हैं और अपने आप को दूसरे विभाग के डॉक्टर से सुपीरियर समझते हैं। विभिन्न विभागों के डॉक्टर्स के बीच में खींचतान अब इस कदर हावी हो चुकी है कि उनकी आपसी रंजिश सड़क छाप गुंडई में बदल चुकी है। इसका उदाहरण हमें अभी हाल ही में देखने को मिला जब मेडिसिन के डॉक्टरों ने कार्डियोलॉजी के जूनियर डॉक्टर की पिटाई कर दी। हालाँकि पीड़ित की शिकायत पर कंपू पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। 

अस्पताल के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में ड्यूटी कर रहे डॉक्टर मोहित गर्ग और डॉक्टर उत्कर्ष त्रिपाठी बुधवार की रात करीब 1:30 बजे कमला राजा अस्पताल की कैंटीन में चाय पीने के लिए गए थे।  इसी दौरान मेडिसिन के जूनियर डॉक्टर हेमंत और डॉक्टर मनोज भी वहां पहुंच गए, इनके बीच पुराने किसी विवाद को लेकर बहस हो गई। बात इतनी बड़ी की जूनियर डॉक्टर हेमंत और डॉक्टर मनोज ने कार्डियोलॉजी के डॉक्टर मोहित गर्ग को पड़कर पीट दिया। इस मारपीट में डॉक्टर मोहित के सिर और सीने में चोट आई।  गुरुवार को इस मामले की शिकायत लेकर कार्डियोलॉजी के छात्रों डॉक्टर गजराराज मेडिकल कॉलेज के डीन के पास पहुंचे और मारपीट किए जाने की जानकारी दी।  इसके बाद पीड़ित डॉक्टर ने कंपू थाने पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। 

जिस तरह इस घटना में सामने निकलकर आया है कि किसी पुराने विवाद के चलते यह मारपीट हुई है। तो ऐसा क्या विवाद रहा होगी, ऐसा पुराना आपस में क्या खींचतान रही होगा जिसके चलते एक विभाग के डाक्टर दूसरे विभाग के डॉक्टर को मारने पीटने के लिए भी उतारू हो गए? डाक्टरों के आपसी विवाद का एक बहुत बड़ा कारण हम आपको बताते हैं। मान लीजिए आपके किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट हो गया है और उसे इलाज के लिए जिसे आरोग्य अस्पताल ले जाया जाता है तो सामान्यतः एक्सीडेंट वाले केस को हट्टी रोग विभाग या शल्य चिकित्सा विभाग या न्यूरो सर्जरी विभाग।मैं उसकी चोट के अनुसार भर्ती किया जाएगा। अब मान लीजिये कि आपका मरीज शल्य चिकित्सा ( surgery) विभाग में भरती है लेकिन जब इलाज के दौरान वहाँ उपस्थित चिकित्सकों को  कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या भी समझ में आती है तो वह मरीज के अटेंडर को पत्र लिख कर न्यूरोलॉजी विभाग भेजते हैं वहां से ऑन कॉल डॉक्टर को बुलाना है जो यहाँ पर आकर मरीज को जांच कर न्यूरलॉजिकल कोई समस्या हो तो उसके लिए एडवाइस दे सके। 

इसी तरह कई बार मेडिसिन विभाग में भरती मरीज को निश्चेतना या सर्जरी विभाग के चिकित्सी की है सलाह की आवश्यकता होती है। इसी तरह कई बार हड्डी रोग विभाग में भर्ती मरीज को मेडिसिन विभाग चिकित्सकीय सलाह की आवश्यकता होती है। इन सब विभाग में जब एक विभाग से किसी चिकित्सक को दूसरे विभाग में बुलाया जाता है। तो उसे ऐसा लगता है कि कोई दूसरे विभाग का चिकित्सक उसे आर्डर दे रहा हो। और इस मामले में उसका ईगो हर्ट हो जाता है। इस ईगो हठ के चलते कई बार तो एक विभाग का चिकित्सक दूसरे विभाग में मरीज की जाँच के लिए जाता ही नहीं है। या किसी मामले में यदि चाहता भी है तो इमरजेंसी के समय पर तुरंत न पहुंचते हुए घंटों बाद यह दिनों बाद पहुंचता है। ऐसे कई मामले भी आते हैं जिसमें दूसरे विभाग का डॉक्टर समय पर न पहुंचने के चलते मरीज की मौत भी हो जाती है। 

ताजा मामला मैं अपने दिवंगत माँ का भी साझा कर देता हूं। जब मैंने उन्हें आरोग्य अस्पताल में मेडिसिन विभाग में भर्ती कराया था। तो सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं कि मैं मेडिसिन विभाग के सभी चिकित्सक का धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने पृथक प्रयत्न किया और दिनरात मेरी माँ के इलाज में लगे रहे। लेकिन जैसा कि चिकित्सकों ने बताया था माँ को मल्टिपल ऑर्गन डिसॉर्डर सिंड्रोम ( MODS) है। अब ऐसी स्थिति में मेडिसन विभाग में भर्ती माँ को अन्य विभागों के चिकित्सकीय परामर्श और इलाज की भी आवश्यकता थी। वहाँ उपस्थित डॉक्टर्स पत्र लिखकर कर दूसरे विभाग से ऑन कॉल डॉक्टर्स बुलाने की सलाह देते थे। तुम्हें स्वयं वह पत्र लेकर दूसरे विभागों में जाता था। निष्चेतना रेडियोलॉजी जैसे कई विभाग से चिकित्सक को ब्लाकर उनकी चिकस्य की सलाह के अनुसार मेडिसिन विभाग चिकित्सकों ने इलाज किया। उस समय आवश्यकता न्यूरोलॉजी विभाग की भी थी जिसके लिए जब पत्र लिखा तो मैं वह पत्र लेकर स्वयं यूरोलॉजी बाद में पहुँचा और अपने हाथों से वह पत्र वहां उपस्थित डॉ दिनेश उदेनया को दिया। लेकिन कई घंटों तक न तो वह स्वयं ना ही उनका कोई असिस्टेंट चिकित्सकीय सलाह देने मेडिसिन विभाग में पहुंचा। न्यूरोलॉजी विभाग की यह लापरवाही मैंने स्वयं अनुभव की,  लेकिन मातृ शोक में कभी साझा नहीं की। 

लेकिन उन दिनों मैने उन्होंने यह अनुभव किया कि यह आरोग्य अस्पताल के विभिन्न विभागों के चिकित्सकों के बीच में समन्वय की कमी है। मरीज़ों के हित के लिए तुरंत एक विभाग से दूसरे विभाग में नहीं पहुँचते हैं। और जिस तरह की चर्चा मैंने वहां चिकित्सकों को एक-दूसरे विभाग के चिकित्सकों के लिए करते सुना वह साफ बता रहा था कि विभागों के बीच में खींचतान है। दूसरे विभाग से बुलावा उन्हें एक बोझ की तरह लग रहा है। आज जिस तरह की मारपीट घटना कार्डियोलॉजी और मेडिसिन विभाग के डॉक्टर्स के बीच में हुई है। यह न जाने कितनी बहस और तू? तू मिलने के बाद बाहर निकली होगी और न जाने कितने आपसी विवाह तो विशालकाय जय आरोग्य अस्पताल के भवन में ही दब जाते होंगे। और साथ ही चिकित्सकों के इस ईगो क्लैश में दब जाती होंगी कई मरीजों की सांसें……

Gajendra Ingle
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