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पराली ने भड़काई प्रशासनिक फ्रस्ट्रेशन की आग, प्रदूषण का घाव छुपाने किसानों पर जुर्माने का नमक

और हाँ, जनसंपर्क द्वारा दिए गए प्रेस नोट में अंतिम पैराग्राफ सराहनीय है। जिसे साल भर अभियान के रूप में चलाया जाना चाहिए। निश्चित ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। 

पहले जनसंपर्क विभाग द्वारा दो दिन पूर्व जारी वह प्रेस नोट पढ़ लीजिए जिसमें प्रशासन द्वारा मजबूर किसानों पर की गई कार्यवाही के कसीदे पढ़े गए थे

पराली जलाना भारी पड़ा, पराली जलाने वाले 17 किसानों पर लगाया अर्थदण्ड

चीनौर, भितरवार व घाटीगाँव तहसील के विभिन्न ग्रामों में हुई यह कार्रवाई 

फसल अवशेष न जलाने के लिये जागरूक करने के साथ-साथ, अर्थदण्ड की कार्रवाई भी जारी 

ग्वालियर 28 नवम्बर 2024/ जिले में पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से धान की पराली एवं गेहूँ सहित अन्य फसलों के अवशेष जलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी श्रीमती रुचिका चौहान द्वारा प्रतिबंधात्मक आदेश लागू किया गया है। इस आदेश का उल्लंघन कर पराली जलाना चीनौर, भितरवार व घाटीगाँव तहसील के विभिन्न ग्रामों में निवासरत 17 किसानों को भारी पड़ा है। संबंधित एसडीएम की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा इन किसानों पर 2500 – 2500 रूपए प्रति घटना के हिसाब से अर्थदण्ड लगाया है। जिले में किसानों को फसल अवशेष न जलाने के लिये लगातार जागरूक किया जा रहा है। इसके बाबजूद जो किसान प्रतिबंधात्मक आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं, उन पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई की जा रही है। 

राज्य शासन के पर्यावरण विभाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी श्रीमती चौहान ने प्रतिबंधात्मक आदेश जारी कर स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा खेत में फसल अवशेष जलाने की कोशिश की तो उसे अर्थदण्ड भुगतना होगा। इसी परिपालन में अनुविभागीय दण्डाधिकारी भितरवार श्री डी एन सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा पराली जलाने वाले एक दर्जन किसानों पर जुर्माना लगाया गया है। 

पराली जलाने वाले इन लोगों पर लगाया गया है जुर्माना 

एसडीएम भितरवार श्री डी एन सिंह ने बताया कि पराली जलाने वाले जिन किसानों पर जुर्माना लगाया गया है, उनमें चीनौर तहसील के ग्राम लदवाया निवासी कुसुम पत्नी कुँवर सिंह, बडेराभारस निवासी प्रीतम सिंह, चीनौर के राममोहन, घरसौंदी के मनीराम व पिपरौआ निवासी मानसिंह शामिल हैं। इन सभी पर 2500 – 2500 रूपए का जुर्माना लगाया गया है। इसी तरह भितरवार तहसील के ग्राम मस्तुरा निवासी कृषकगण नरेश, राकेश, नजर खाँ, चाँदनी, भरोसी, राजेश व बलराम पर पराली जलाने के दण्ड स्वरूप यह जुर्माना अधिरोपित किया गया है। 

इनके अलावा ग्राम बड़ागांव के गुरपाल सिंह व अनूप शर्मा, मोहना के मनोज राठौर, हुकुमगढ़ के कप्तान सिंह व आरोन के गजेन्द्र सिंह के ऊपर भी पराली जलाने पर 2500 – 2500 रूपए का जुर्माना लगाया गया है। 

इस दर से वसूला जायेगा जुर्माना 

प्रतिबंधात्मक आदेश में स्पष्ट किया गया था कि दो एकड़ या उससे कम जमीन में नरवाई (फसल अवशेष) जलाने पर खेत मालिक को 2500 रूपए प्रति घटना अर्थदण्ड देना होगा। इसी तरह दो एकड़ से अधिक एवं पाँच एकड़ से कम जमीन में नरवाई जलाने पर खेत मालिक को पाँच हजार रूपए प्रति घटना और पाँच एकड़ से अधिक जमीन पर नरवाई जलाने पर 15 हजार रूपए प्रति घटना जुर्माना भुगतना होगा। 

पराली जलाने से पर्यावरण क्षति के साथ-साथ खेत के पोषक तत्व खत्म होते हैं 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है, बल्कि खेत के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। किसान भाई धान के खेत में सुपर सीडर के जरिए बोनी कर धन व समय बचाने के साथ-साथ खेत की उत्पादक क्षमता बरकरार रख सकते हैं। कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी श्रीमती रुचिका चौहान ने कृषकों से अपील की है कि वे पराली व नरवाई जलाने के स्थान पर उसे भूसा बनाकर पशु चारे के लिए उपयोग करें।  

निस्संदेह मध्य प्रदेश में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। और ग्वालियर चंबल की हालत तो और भी ज्यादा भयावह है। ग्वालियर में भी पराली नरवाई जलाने के मामले लगातार बड़े हैं। पराली नरवाई जलाना किसानों का शौक नहीं उनकी मजबूरी है। मजबूरी इसलिए है क्योंकि उनको इसके विकल्प का ज्ञान नहीं। गरीबी से जूझ रहे किसान के लिए पराली और नरवाई को काट कर दूसरी जगह स्थानांतरित करना एक महंगा सौदा है। हालांकि कर्ज में डूबा किसान और कर्ज लेकर इसकी व्यवस्था कर भी सकता है। लेकिन जब यही कर्ज में। डूबा किसान कहीं फांसी पर झूलता नजर आएगा तो उसके उसके परिवार की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं होगा। में यहां पर पराली और नरवई जलाने का समर्थन कतई नहीं कर रहा हूँ। लेकिन बड़ा सवाल यह है। क्या साल भर शासन? प्रशासन ऐसे अभियान चलाता है। जिसमें किसानों को पराली और नरवाई जलाने के विकल्प के बारे में सुझाव दे सके। जब चुनाव के समय दूर दराज के एक-एक। किसान तक प्रचार अभियान पहुंच सकता है तो फिर पराली और नरवाई जलाने उस दुष्प्रभाव उस किसान तक ले जाने में यह सिस्टम फेलक्यों हो जाता है?

सैटेलाइट इमेज की मानें तो पूरे प्रदेश मे इन अवशेषों को जलाने के बारह हजार से ऊपर मामले हैं और ग्वालियर में इन की संख्या 750 के लगभग है। बढ़ते प्रदूषण पर लगातार छप रही खबरों से प्रशासन की किरकिरी हो रही थी। क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण का घाव प्रशासन के लिए नासूर बनता जा रहा था। और इस घाव पर मरहम लगाने के लिए और अपनी नाक बचाने के लिए उन मजबूर ग़रीब किसानों पर प्रशासन ने जुर्माने की कार्यवाही कर दी। में किसी तरह के जुर्माने की कार्यवाई का विरोध नहीं कर रहा हूं लेकिन सवाल यह उठता है ही नगर निगम सीमा क्षेत्र में ही कई जगह पर कचरा जलाया जाता है। बरा में तो जलता हुआ कचरा स्वयं ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर देख चुके हैं। क्या नगर निगम पर शहरी क्षेत्र में कचरा जलाकर वायु प्रदूषण बढ़ाने के चलते कोई जुर्माने की कार्यवाही जिला प्रशासन ने की या किसी जिम्मेदार को निलंबित किया? ऐसा समझा नहीं जाता बल्कि हकीकत बन चुकी है के प्रशासनिक डंडे का शिकार हमेशा कमजोर वर्ग होता है। जिन किसानों पर जुर्माने की कार्रवाई की गई हैं जिन पर आगे की जाएगी उनको जागरूक करने के लिए क्या पहले से कोई मुनादी उन क्षेत्रों में कराई गई थी। क्या इन किसानों को कोई चेतावनी दी गई थी? जब आप का सिस्टम स्वंय ही जागरूकता अभियान चलाने में पूरी तरह विफल हो चुका हो तो ऐसी स्थिति में किसानों पर की गई इस तरह की जुर्माने की कार्रवाई कुछ हद तक गलत है। 

किसान के पास जो सरल विकल्प होता है वह उसे चुनता किसान। के पास इतना अतिरिक्त पैसा नहीं होता कि वह पराली या नरबाई के निस्तारण की व्यवस्था कर सके। हाँ यदि शासन प्रशासन काम में सफल हो जाए। की किसानों को पराली और नरवाई भी फायदे का सौदा दिखने लगे तो वह इसे कतई नहीं जलाएंगे। पराली नरवाई एकत्र करने और विक्रय करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।  पराली और नरवाई को यदि किसी लाभ की योजना से जोड़ दिया जाए  तो निश्चित ही इस समस्या का स्थाई समाधान मिल सकता है। कुछ किसानों पर जुर्माने की कार्रवाई करके अपना फ्रस्टेशन निकाल लेना, इस समस्या का समाधान कतई नहीं है। यक्ष प्रश्न केवल इतना है कि क्या किसानों पर जुर्माने की कार्रवाई उचित है?

और हाँ, जनसंपर्क द्वारा दिए गए प्रेस नोट में अंतिम पैराग्राफ सराहनीय है। जिसे साल भर अभियान के रूप में चलाया जाना चाहिए। निश्चित ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। 

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