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गोलियों से गूंजता ग्वालियर, माननीयों की माँद में पुलिस, और बढ़ते अपराध की दोषी मीडिया?

कोलकाता दुष्कर्म कांड तो आपको याद ही होगा होगा? हो सकता है भूल भी गए हों, क्योंकि महीनों हो चुके और कोई भी बड़ी घटना हों उन्हें जल्द ही भूल जाना आज हम भारतीयों की आदत बन चुकी है। जब तक मीडिया में खबरें चलती हैं तब तक ही जनता भी याद रखती है। कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की दिल दहलाने वाली घटना होती है। घटना के कुछ दिनों बाद बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए थे। देर रात भीड़ उग्र हो गई और अस्पताल के भीतर घुस गई। प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ परिसर में खड़ी गाड़ियों के साथ तोड़फोड़ की बल्कि अस्पताल के भीतर इमरजेंसी वॉर्ड को भी तहस-नहस कर दिया। ऐसा बताया गया कि उग्र भीड़ तृणमूल कांग्रेस के द्वारा भेजी गई थी, जिसका काम साक्ष्यों को मिटाना था। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया, जिसमें कई लोगों के घायल हुए। इस पूरी घटना के लिए कोलकाता पुलिस कमिश्नर ने गलत मीडिया कैंपेन को जिम्मेदार ठहराया है। पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार वहां की मुख्यमंत्री और वहां के पुलिस ने इस।मामले में तमाम लीपापोती की। और शायद यही उजागर करना वहां की सरकार और पुलिस को नागवार गुजरा और शायद यही वजह रही कि पुलिस कमिश्नर मनोज वर्मा ने मीडिया को ही दोषी ठहरा दिया। खैर खैर जनता की आवाज उठाने वाली मीडिया को अब यह आदत डाल लेनी चाहिए की कुछ भी छापने पर दोष तो उनके माथे मढ़ा ही जाएगा। 

आइए अब बात कर लेते हैं अपने शहर ग्वालियर की। सुबह उठ कर शहर हाल चाल जानने के लिए एक आम नागरिक समाचार पत्र उठाता है और देखता कि समाचार पत्र तो शहर के अपराध की घटनाओं से भरा पड़ा है। अपराध भी छोटे मोटे नहीं और छोटे मोटे अपराध तो थानों में पंजीबद्ध भी नहीं होते हैं। जो खबरें जनता पढ़ती है। रोज जिन खबरों से जनता को रूबरू होना होता है वह है हत्या और लूट के संगीन अपराध की खबरें। शहर में खुलेआम गोलियां चल रही हैं। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं अपराधियों के मन में पुलिस का ख़ौफ़ खतम हो चुका है। एक परिवार का मुखिया एक व्यापारी जब घर से बाहर निकलता है तो उसका परिवार इस डर के साए में ही जीता है कि क्या उसका मुखिया सकुशल शाम को वापस घर लौटेगा? बीते कुछ महीनों से ग्वालियर शहर अपराध का ग़ढ़ बन गया है। आए दिन खुलेआम गोलियां चल जाती हैं, बैखौफ़ बदमाश कहीं पर भी गोलियां चलाते बन्दूक लहराते नजर आ जाते हैं। पिछले एक महीने में ही 7 हत्या, एक दर्जन से ज्यादा लूट और फायरिंग की घटनाएं हुई। कनाडा में बैठे बदमाशों ने भी पंजाब से बदमाश भेज ग्वालियर में कांट्रेक्ट किलिग करवा दी और हत्यारे सभी पुलिस बाधाओं को पार कर सुरक्षित वापस पंजाब पहुंच गए बढ़ते अपराध के पीछे पुलिस की कई कमजोरियां जिम्मेदार हैं। अधिकांश जगहों पर सीसीटीवी कैमरे बंद होना, पुलिस का मुखबिर तंत्र फेल होना और अनुभवी अफसरों की कमी सहित कई खामियां है। इन सब के बावजूद ग्वालियर के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट डबरा हत्याकांड के खुलासे पर पुलिस की पीठ थपथपाते नजर आए। सही मायने में कहें तो अपने सरकार की नाकाम पुलिस को बढ़ते अपराध के बीच एक उपलब्धि को महिमा मंडित करना उनकी जवाबदेही भी बनती है। ताकि लचर कानून व्यवस्था के लिए उनकी सरकार पर जनता उंगली उठाए। उससे पहले उनकी वाहवाही कि इन खबरों के नीचे पुलिस तंत्र के असल फेलियर को दबा दिया जाए। 

ग्वालियर में बीते कुछ महीनो से अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।  सरेआम हत्या लूट और फायरिंग की घटनाएं ग्वालियर में अब आम हो गई है।  इन परिस्थितियों को देखकर लगता है कि अपराधियों में ग्वालियर पुलिस का खौफ खत्म हो गया है। बीते दिनों ग्वालियर में हुए कुछ बड़े अपराध जो बड़ी खबरें बनीं जिन्होंने आमजन को झंझकोर कर रख दिया, आइए उन पर नजर डालते हैं।

  • 16  अक्टूबर-  गार्डन होम सोसाइटी में मां बेटी की हत्या
  • 17  अक्टूबर- आंतरी में राजेश माहौर नाम के व्यक्ति की गला दबाकर हत्या।
  • 21  अक्टूबर-  हिस्ट्रीशीटर इरफान खान की हत्या हुई
  • 07  नवंबर – डबरा में जसवंत सरदार की कनाडा से सुपारी देकर हत्या कराई गई। हत्या के बाद बदमाश भाग निकले।
  • 10 नवंबर – बेलगढ़ा थाना क्षेत्र में 68 साल की महिला की हत्या। आरोपी का सुराग नही
  • 11 नवंबर- प्रॉपर्टी डीलर सुनील गुर्जर की गोली मारकर हत्या। हत्या के बाद आरोपी फरार हो गए
  • इनके अलावा डेढ़ दर्जन से ज्यादा फायरिंग और लूट की घटनाएं हुई

शहर में सुरक्षा के लिए लगे स्मार्टसिटी और पुलिस के अधिकांश CCTV बंद पड़े है कई महत्वपूर्ण जगहों पर CCTV ही नही है, जिसके चलते वारदात के फौरन बाद पुलिस आरोपियों की घेराबंदी में नाकाम होती है। जिससे अपराधी वारदात कर आसानी निकल जाते हैं। यहाँ यक्ष प्रश्न यह है कि जो सीसीटीवी कैमरे आम नागरिक की गाड़ी का नम्बर ट्रेस कर उसके घर पर चालान पहुंचा देते हैं और सड़क के तमाम चौराहों पर चैकिंग के लिए खड़ी जो पुलिस वाहन चेकिंग का आडंबर रचाती है। इन दोनों से ही यह अपराधी किस तरह बच निकलते हैं? जिस तरह से अपराधी खुले आम अपराध करके पुलिस से बच निकलते हैं। ऐसा लगता है कि वह भी पुलिस को चुनौती दे रहे हैं। और उन्हें भी पता है कि पुलिस इस कदर लापरवाह है कि वह अपराध के बाद ही आसानी से बचन निकलेंगे। टशन और रौब दिखाने के लिए बन्दूक लहराते गोली चलाते रील्स भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। सड़क पर स्टंट करते वाहन चालक भी खूब नजर आ रहे हैं। और यह सब भी पुलिस को शायद चुनौती देते नजर आते हैं और साथ ही यह हकीकत भी बयां कर रहे हैं कि उनकी नजर में देश के कानून का न तो कोई डर है न कानून के लिए कोई सम्मान। 

इन सबके बावजूद भी तमाम थाना प्रमुख से लेकर पुलिस कप्तान तक किसी भी तरह की किसी कार्रवाई के भय से मुक्त हैं, मानों उन्हें राजनीतिक संरक्षण का बूस्टर डोज लगा हो। ऐसी चर्चाएं खूब चलती हैं कि हर पुलिस अधिकारी की पोस्टिंग उसके क्षेत्र के अनुसार उस क्षेत्र के माननीय की अनुशंसा पर होती है। उन माननीय की कृपा इस कदर होती है कि क्षेत्र में लॉ एंड ऑर्डर ताक पर बना रहे अपराध सर उठाए अति मचाए हो, आम जन के बीच हाहाकार मचा हो, लेकिन मजाल है ऐसे किसी पुलिस अधिकारी पर उसकी जनता की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी न निभाने के चलते कोई कार्यवाही हो जाए। इन माननियों की माँद लापरवाही के बावजूद इन गैर ज़िम्मेदार अधिकारियों के हौसले बुलंद करती है। जिस तरह से लगातार संगीन अपराध रोज घटित हो रहे हैं और जिस तरह से सही खबरों के माध्यम से पुलिस की किरकिरी हो रही है वह दिन दूर नहीं जब कोलकाता पुलिस की तरह ही ग्वालियर पुलिस के साहब भी अपनी नाकामी पर मीडिया को कोसते नजर आएं? बढ़ते अपराध के लिए मीडिया कैंपेन को ही दोषी ठहरा दें? फिर भी मीडिया का काम तो है जनता की आवाज बनना। जनता की बात कुंभकर्णिय नींद में सोए जिम्मेदारों तक पहुंचाना। इस उम्मीद में ही कुछ का तो जमीर जाग जाए। कुछ तो माननियों की माँद से निकल “देशभक्ति जनसेवा” का अपना असली लक्ष्य प्राप्त करने की ओर आगे बढ़ें और इस बढ़ते अपराध पर अंकुश लगाने में अपना योगदान दें।

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