मुम्बई महाराष्ट्र जब भी कोई पीड़ित किसी थाने में पहुंचता है मोबाइल तो हाथ में होता है लेकिन उसे इस बात का डर होता है। क्या ऐसा कोई कानून है जो उसे वीडियो बनाने की अनुमति देता हो? या ऐसा कोई कानून है जो उसे वीडियो बनाने की इजाजत न। देता हूं इस गफलत में कई बार वहां चल रही हकीकत का वीडियो नहीं बनाता। तो आईए हम आपकी ग़फ़लत का आज अंत कर देते हैं क्योंकि बॉम्बे हाई। कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया है और वह फैसला आपकी इस। दुविधा को खत्म करने लिए पर्याप्त है
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने फैसला सुनाया कि पुलिस स्टेशन के अंदर वीडियो रिकॉर्ड करना आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत नहीं आता है, जो जासूसी से संबंधित है। यह फैसला जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और एसजी चपलगांवकर की बेंच ने मुंबई पुलिस कांस्टेबल संतोष अथारे के खिलाफ अधिनियम के तहत दायर आरोपों को खारिज करते हुए सुनाया।
अहमदनगर जिले के पाथर्डी पुलिस स्टेशन में दर्ज मामले में अथारे और उनके भाई सुभाष शामिल थे। पुलिस ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का हवाला दिया था, लेकिन अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 2(8) में “निषिद्ध स्थानों” को परिभाषित किया गया है, और पुलिस स्टेशन उस परिभाषा में शामिल नहीं हैं।
तो अब आप कभी भी किसी थाने में जाते हैं और वहां कोई अव्यवस्था? देखते हैं तो बाकायदा वहाँ उस घटना का वीडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं और यह वीडियो आपके पास में एक पर्याप्त साक्ष्य होगा। कि थाने में आपकी सुनवाई हुई या नहीं हुई।इस वीडियो बनाने को किसी भी तरह से कोई अपराध नहीं माना जाएगा।
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