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न्यायाधीशों को ही नहीं मिला 3 साल में न्याय! न्यायाधीशों से मारपीट के मामले में देढ साल से नहीं हो पाई गवाही!

ग्वालियर मध्य प्रदेश: न्याय विशेषज्ञों और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा कई बार। त्वरित न्याय को लेकर चर्चा की जाती है लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था में ट्रायल कितनी धीमी गति? से चलता है। उसमें पक्षकारों का कितना समय बर्बाद होता है इस को दरकिनार करते हुए यह कोट प्रोसीडिंग अपनी कछुआ गति से आगे बढती रहती है। इसमें सुधार की गुंजाइश तो है लेकिन सुधार हो नहीं पाता। अब तो स्वयं न्यायाधीश भी इस धीमी प्रक्रिया शिकार होते नजर आ रहे हैं। 28 मार्च 2021 को ग्वालियर में दो न्यायाधीशों के साथ मारपीट की घटना हुई थी। न्यायाधीश सचिन जैन और न्यायाधीश राम मनोहर दांगी अपने घर के बाहर टहल रहे थे तभी एक चार पहिया वाहन तेज़ गति से निकला और जब उसे लापरवाही से गाड़ी चलाने पर। न्यायाधीशों ने टोका। तो कार सवार युवकों ने। न्यायाधीशों के साथ मारपीट कर दी। और एक न्यायाधीश की तो सोने की चेन भी लूट ली। हालांकि मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मात्र अड़तालीस घंटे में आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन उसके बाद धीरे न्याय प्रक्रिया के चलते अभी तक न्यायालय में यह केस चल रहा है। 

 घटना को अब 3 साल हो चुके हैं और उस घटना के अधिकांश आरोपियों को जेल से एक साल बाद बेल मिल गई थी। मार्च 2023 तक आरोप तय और ट्रायल प्रोग्राम तैयार कर लिया गया था। इसके बाद से लगातार फाइल गवाही के लिए लग रही है। सबसे पहले अभियोजन ने पीड़ित पक्ष यानी दोनों न्यायाधीशों को गवाही के लिए बुलाया, उन्हें इस मामले में लेटर ऑफ रिक्वेस्ट भेज कर बुलाया गया हालांकि अभी तक किसी के भी बयान दर्ज नहीं हो पाए हैं। कोर्ट की प्रक्रिया के अनुसार पीड़ित पक्ष के बयान के बाद ही अन्य गवाहों को बुलाया जाएगा।

जिन दो न्यायाधीशों के साथ यह मारपीट की घटना 2021 में हुई थी।अब वे अन्य जिलों में पदस्थ है। अपनी कार्य व्यस्तता को छोड़ इतने दूर आना अब उनके लिए भी थोड़ा मुश्किल है। न्यायाधीशों के साथ होने वाली यह घटना हैरान करने वाली थी। इस मामले में सुधीर कमरिया धर्मेन्द्र सिंह गौतम गौतम, आनंद बरेठा अजय सिंह गुर्जर, शिवम यादव, उत्कर्ष मिश्रा,  अभिषेक दुबे अब जमानत पर है। यहां बड़ा सवाल यह है कि जब न्यायाधीशों से जुड़े मामले में ही न्याय प्रक्रिया इतनी धीमी गति से चल रही है। तो एक आम पक्षकार को न्यायालय में कितना समय खराब करना पड़ता होगा। 

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