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रेलवे की बड़ी कवायद; अब दो स्टेशन के बीच एक साथ 4 या 5 ट्रेन चलाने की तैयारी

एक तरह पिछले कुछ समय से लगातार हो रही ट्रेन दुर्घटनाओं ने रेलवे को सुर्खियों में बनाए रखा है।वहीं दूसरी ओर इन सभी घटनाओं के बीच रेलवे अब एक साथ ट्रेनों की संख्या और गति बढ़ाने के लिए रेल ट्रैक का विस्तार करने के साथ आधुनिक सिग्नल लगाना शुरू कर दिया है। इटारसी से जबलपुर होकर मानिकपुर तक लगभग 510 किमी लंबे रेलवे ट्रैक पर आटोमैटिक सिग्नल सिस्टम लगाए जाएंगे। इन सिग्नलों की मदद से दो रेलवे स्टेशन के बीच एक साथ चार से पांच ट्रेनें चलाना आसान होगा। वर्तमान में मैन्युअल और पूर्ण ब्लाक सिग्नल सिस्टम लगाए गए हैं, जिससे दो स्टेशनों के बीच दो ट्रेनें ही चलाई जा सकती हैं, पर आटोमैटिक सिग्नल की मदद ट्रेनों की संख्या और गति, दोनों में इजाफा होगा।

इसकी संख्या 600 से ज्यादा होगी।
दरअसल रेलवे लगातार यात्री ट्रेनों की संख्या में इजाफा कर रही है, ताकि अधिक से अधिक यात्रियों काे कंफर्म सीट दी जा सके, लेकिन रेलवे के पास निर्धारित ट्रैक है, जिसकी क्षमता बढ़ाने के लिए सिग्नल का आधुनिकरण करना जरूरी हो गया है। यही वजह है कि इटारसी-मानिकपुर के बीच लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा सिग्नल लगाए गए हैं, पर आटोमैटिक सिग्नल लगने की बाद इनकी संख्या 600 से ज्यादा हो जाएगी।

क्या होता है आटोमैटिक सिग्नल सिस्टम।
ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम, यानी स्वचालित ब्लॉक सिग्नलिंग प्रणाली होती है, जो रेलवे ट्रैक पर लगी एक पूरी तरह से कंप्यूटराइज़्ड प्रणाली है। इसमें दो स्टेशनों के बीच एक किलोमीटर की दूरी पर सिग्नल लगाए जाते हैं। स्टेशन यार्ड से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर एडवांस स्टार्टर सिग्नल लगा होता है। जब कोई ट्रेन स्टेशन यार्ड में प्रवेश करती है तो सिग्नल के ज़रिए स्टेशन मास्टर को सूचना मिल जाती है। इसके बाद, सिग्नल के सहारे ट्रेनें एक-दूसरे के पीछे चलती रहती हैं।सिग्नल ग्रीन होते ही ट्रेनें एक के पीछे एक चलती हैं।

ट्रेनों की रफ्तार 130 किलोमीटर प्रति घंटे।
जबलपुर रेल मंडल में मैन्युअली सिग्नल होने की वजह से ट्रेनों को सीमित गति से चलाया जा रहा है। वर्तमान में इस ट्रैक की गति 110 किमी प्रति घंटे है, लेकिन आटोमैटिक सिग्नल सिस्टल की मदद से ट्रेनों की रफ्तार 130 किमी प्रति घंटे तक हो जाएगा। इटारसी-जबलपुर-कटनी-मानिकपुर के बीच लगभग 24 घंटे में 120 से ज्यादा ट्रेनें चलाई जा रही है। नए आधुनिक सिग्नल की मदद से इनकी संख्या 160 तक की जा सकेगी। इसका सीधा फायदा यात्रियों को मिलेगा, वहीं रेलवे भी आसानी से ट्रेनों की संख्या बढ़ा सकेगा।

जो ट्रेनें जहां होंगी, वहीं रुक जाएंगी. इससे दुर्घटना की होने की संभावना कम होगी।
यदि किसी कारण सिग्नल में तकनीकी खामी आती है तो पीछे चल रही ट्रेनों को इसकी सूचना मिल जाती है, इससे जो ट्रेनें जहां होंगी, वहीं रुक जाएंगी. इससे दुर्घटना की संभावना काफी कम हो जाती है। आटोमेटिक सिग्नल सिस्टम की मदद से ट्रेनों की रफ़्तार में इजाफा होता है। इसकी लागत कम आती है। इसमें ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल लगाती है, जिससे इनकी लागत कम आती है और यह चोरी नहीं।

Gajendra Ingle

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