श्रावण माह आते ही देश के विभिन्न शहरों के विभिन्न शिवालयों में भक्तों। की लंबी कता लग जाती है आम दिनों में जिन। शिवालयों पर गिने चुने भक्त आते हैं। वहीं यहाँ आने वाले शिवभक्तों की संख्या हजारों और लाखों तक पहुंच जाती है। देश में जितने भी प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं वहां तो शिवभक्तों की संख्या सारे रिकॉर्ड तोड़ देती है। पूरे श्रावण मास में हर सोमवार को शिवालयों पर शिवभक्तों का इतनी बड़ी संख्या में दर्शन के लिए जाना कहीं दंग गई। आपके मन में यह विचार आता होगा। कि इस श्रावण मास का ऐसा क्या महत्व है के इसी में शिवालयों में ज्यादातर भक्तगण शिव दर्शन के लिए जाते हैं?
कुछ लोग तो सावन माह में शिव पूजा का महत्व जानते हैं लेकिन आज के समय में तमाम ऐसे लोग हैं जिनको? केवल यह पता है कि सावन। माह में शिवजी की पूजा करनी चाहिए लेकिन क्यों करना चाहिए? इसका, क्या महत्व है? इसकी पीछे के कारण क्या है? इसके पीछे ऐसी कौन सी पौराणिक कथाएं हैं जिनकी वजह से श्रावण माह में शिव पूजन का महत्व बढ जाता है? यह ऐसे कई सवाल हैं जो तमाम शिवभक्तों के मन मस्तिष्क में कभी न कभी तो उठते ही हैं। और कभी उन्हें इसका सही कारण पता चलता है और कभी नहीं भी चलता। सनातन हमें यही सिखाता है कि हर क्रिया का। कोई न कोई प्रयोजन जरूर होता है तो फिर श्रावण माह में शिव पूजन किए जाने कभी कोई न कोई विशेष महत्व तो होना ही चाहिए।
श्रावण माह में शिवालयों में शिव पूजन हजारों साल से किया जा रहा है यह एक निरंतर लंबे समय से चली आ रही प्रक्रिया है। श्रावण माह के महत्व और इस माह में शिव पूजन के बारे में विभिन्न धर्मगुरु और पुजारियों उसे जानकारी जुटाने पर तमाम सारे तथ्य सामने आए। श्रावण माह में शिव पूजन से संबंधित तमाम पौराणिक कथाएं और उदाहरण हैं जो धर्मगुरुओं से चर्चा के दौरान निकलकर आए। तमाम प्रयोजनों में से कुछ खास जो आपको जानना आवश्यक है उन्हें हम यहां सूचीबद्ध कर रहे हैं और आपको संक्षिप्त में श्रावण माह में शिव पूजन का महत्व समझाने के लिए हम यहाँ पांच उदाहरण आपको बता रहे हैं।
1. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
2. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
3. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
4. ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
5. शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
श्रावण माह के महत्व के बारे में और इस माह में शिव पूजन के बारे में तमाम तथ्य निकलकर आए थे लेकिन जो सबसे आवश्यक और प्रमाणिक लगे उन्हें हमने आपके साथ साझा किया है। इसके अतिरिक्त अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से भी अलग-अलग किवदंतियां और पौराणिक प्रमाण मिलते हैं। उत्तर भारत में ही श्रावण माह में शिव पूजन के तमाम प्रमाण मिलते हैं। दक्षिण भारत मैं भी शिव पूजन के महत्व। के बारे में कई अलग अलग कथाएं हैं। सामान्यत तो शिव भक्त यही मानते हैं के कारण हो। या न हो लेकिन उन्हें तो शिव भक्ति। में लीन रहना है लेकिन फिर भी हम यह मानते हैं की श्रावण माह में यदि शिव पूजन का विशेष महत्व है तो उस महत्व को शिव भक्तों को अवश्य समझना चाहिए।
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