ग्वालियर मध्य प्रदेश; हाइवे से लगी वन विभाग की बेश कीमती करोड़ों की दो बीघा से अधिक जमीन को खुलेआम अतिक्रमण कर होटल बना लिया गया और उस जमीन को छुड़ाने के लिए वन विभाग को पांच साल लग गए। 5 साल बाद भी मुख्यमंत्री की सक्रियता और 1 विभाग के मुख्य 1 संरक्षक शुखरंजन जैन के प्रयास की बदौलत ही यह संभव हो सका। यह अतिक्रमण मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों और थानों में रहे टीआई। ने कर रखा था और यह जमीन उनकी पत्नी के नाम थी जिस पर होटल संचालित हो रहा था। सूत्रों की मानें तो कार्यवाही के दिन भी टीआई महोदय ने अपने रसूख और एप्रोच लगाकर यह कार्रवाई रुकवाने की हर।संभव कोशिश की, लेकिन मामला मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के संज्ञान में था। इसलिए कोई रसूख कोई जुगाड़ यहां काम नहीं आई।
मामला में मध्यप्रदेश के जिला ग्वालियर के घाटी गांव ब्लॉक का है, जहां ग्राम दौरार का है जहां वन विभाग की भूमि सर्वे क्रमांक 1221 कि करोड़ों की दो बीघा छह विश्वा वन भूमि पर अवैध रूप से कब्जा करके होटल मधुबन बना लिया गया था। जो पिछले पांच सालों से संचालित था। इस अभेद अतिक्रमण को हटाने के लिए तत्कालीन डीएफओ ओम प्रकाश उचारिया ने भी हर संभव प्रयास किया था। उन्होंने तत्कालीन ग्वालियर कलेक्टर को पत्र भी लिखा था और जिस समय टीआई विनय शर्मा गुना में पदस्थ थे तब गुना एसपी को भी पत्र के माध्यम से अवगत कराया था। यहाँ गंभीर बात यह रही कि इन पत्रों। के बाद भी जिला प्रशासन ने और पुलिस विभाग ने इस अवैध कारनामे पर कोई संज्ञान नहीं लिया और वन विभाग की किसी भी तरह से मदद नहीं की। यह रहे तत्कालीन डीएफओ ओमप्रकाश उचारिया के पत्र
इस पूरी कार्रवाई में आरटीआई एक्टिवेस्ट अधिवक्ता संकेत साहू की अहम भूमिका रही जो लगातार इस। मामले की शिकायत विभिन्न विभागों तक करते रहे। यह मामला कोर्ट में भी अवैध अतिक्रमणकर्ता प्रियंका शर्मा द्वारा ले। जाया गया था और कोर्ट में भी गलत दस्तावेज प्रस्तुत कर भूमि को अपना बता दिया गया था। हालांकि कोर्ट से भी प्रियंका शर्मा को कोई राहत नहीं मिली थी। और कहीं से भी उन्हें किसी तरह की कार्रवाई की उम्मीद दिखाई नहीं दी तब उन्होंने मुख्यमंत्री को मेल पर पूरे मामले से अवगत कराया। मुख्यमंत्री ने मामले का संज्ञान लेते हुए मध्यप्रदेश मुख्य 1। संरक्षक शुभरंजन जैन को पत्र लिखा। मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद शुभरंजन जैन ने भी 9 अगस्त, 2024। को डीएफओ ग्वालियर को पत्र लिखकर कार्यवाही के लिए आदेशित किया। जिसमें उन्होंने कहा कि टास्क फोर्स के माध्यम से जिला प्रशासन और पुलिस की सहायता लेकर अतिक्रमण हटाने और माननीय न्यायालय के आदेश का पालन सुनिश्चित किया जाए। मुख्य वन संरक्षक शुभरंजन जैन का वह पत्र जिसमें पूरे मामले की इबारत है।
डी एफफो ग्वालियर अंकित पांडेय ने बताया कि पिछले कई समय से 1 विभाग मुख्यालय से इस। कार्रवाई के लिए इंतजार कर रहे थे और आदेश मिलते ही राजस्व और पुलिस के सहयोग से अतिक्रमण स्थल पर पहुंचकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई। इस कार्रवाई में करोड़ों रुपए की दो बीघा छह विश्वास जमीन मुक्त कराई गई। अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान अतिक्रमण स्थल पर दर्जनों युवा इकट्ठे हो गए थे जिन्होंने कार्रवाई का विरोध भी किया लेकिन प्रशासन पुलिस के साथ साथ 1 विभाग के भी तमाम रेंजर लगभग 40 वाहनों से पूरी तैयारी के साथ अतिक्रमण स्थल पहुंचे थे। इसलिए वहां उपस्थित हुड़दंगी युवक ज्यादा विरोध नहीं कर सके।
सूत्रों की मानें तो टीआई विनय शर्मा का कई माननीयों से भी काफी करीबी नाता है और ऐसी जानकारी भी है कि अतिक्रमण हटाने के लिए उन्होंने तमाम जगह संपर्क किया। डी एफ ओ अंकित पांडेय पर भी कार्रवाई रोकने के लिए लगातार दबाव आता रहा। लेकिन शायद दबाव बनाने वालों को यह नहीं पता था। कि न्यायालय के आदेश के बाद यह मामला मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव के संज्ञान में भी पहुंच चुका है और डॉक्टर मोहन यादव के निर्देश पर ही यह कार्यवाही हो रही है। पुलिस या दबंगई और राजनीतिक रसूख के चलते वन विभाग 5 साल तक यह कार्रवाई कराने के लिए प्रयास करता रहा और अंत में सभी हथकंडों पर वन विभाग का बुलडोजर भारी पड़ गया।
वन विभाग की हाइवे से लगी यह बेशकीमती जगह तो अतिक्रमण मुक्त करा ली गई लेकिन पूरे क्षेत्र में कई जगह पर वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण है। इस मामले में 2019 में पदस्थ तत्कालीन डीएफओ ओम प्रकाश उच्चारिया और वर्तमान डीएफओ अंकित पांडेय की सक्रिय भूमिका भी सराहनीय है जिन्होंने इतने बड़े मामले में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं की और लगातार प्रयास करते हुए इस कार्यवाही को अंजाम दिया। इस कार्रवाई में शिकायतकर्ता संकेत साहू की भूमिका भी सराहनी रही जो लगातार विभिन्न माध्यम से इस। मामले को उठाते रहे और मुख्यमंत्री कार्यालय तक शिकायत की। अब सवाल यह उठता है के जहां अन्य क्षेत्रों में वन विभाग की भूमि पर कब्जा है उसे मुक्त कराने के लिए वन विभाग कब सक्रिय होगा?