मध्य प्रदेश के दमोह के जिला अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी के दौरान 4 महिलाओं की मौत हो गई। दो महिलाओं की मौत तो अस्पताल में उसी समय हो गई थी जबकि दो अन्य महिलाओं ने कुछ दिन बाद जबलपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान दम। तोड़ दिया।पूरा मामला 4 जुलाई का है। और सबसे बड़ी हकीकत जो सामने आ रही है वह ये है कि 4 जुलाई को ही 24 सीजेरियन डिलिवरी दमोह के जिला अस्पताल में की गई थी जो एक बहुत बड़ा आंकड़ा है। इस पूरे मामले में जिला अस्पताल की बड़ी लापरवाही सामने आ रही है।
प्राप्त जानकारी। के अनुसार, 29 वर्षीय लक्ष्मी चौरसिया, 30 वर्षीय हर्षना कोरी, निशा परवीन (28) और हुमा खान (30) को चार जुलाई को डिलीवरी के लिए दमोह जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लक्ष्मी चौरसिया के परिजनों ने दावा किया कि डॉक्टर्स ने उन्हें नॉर्मल डिलीवरी करवाने का आश्वासन दिया था, लेकिन फिर सी-सेक्शन से बच्चा डिलीवर कराया। वहीं, महिला के पति ने अस्पताल स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाया और कहा कि जन्म देने के बाद उनकी पत्नी को पेट में तेज दर्द हुआ और 4 जुलाई की रात को उसकी मौत हो गई।
दूसरी मृत महिला हर्षना कोरी के परिवार के सदस्यों ने बताया कि हर्षना को डिलीवरी सामान्य हो गई थी और बाद में उसे अस्पताल के ICU में भर्ती कराया गया था और अगली सुबह उसकी मौत हो गई। मृतक निशा परवीन के एक रिश्तेदार ने बताया, ‘‘हमने मिठाइयां बांटीं, लेकिन कुछ घंटों के बाद उसने शिकायत की कि उसे पेशाब नहीं आ रहा है। बाद में डॉक्टर्स ने बताया कि उसकी किडनी फेल हो गई है। उसे जबलपुर मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल ले जाया गया और डायलिसिस किया गया। दो दिन पहले उसकी मौत हो गई।
दमोह के बकायन गांव के सचिन चौरसिया की पत्नी लक्ष्मी चौरसिया हाईकोर्ट जबलपुर में पदस्थ थीं। जिला अस्पताल दमोह में नॉर्मल डिलीवरी के लिए आई थीं। रात होते-होते कहा गया कि सीजर होगा। सब ठीक से हो गया। बेटे को जन्म दिया, वह भी स्वस्थ था। कुछ देर बाद लक्ष्मी को पेट में तेज दर्द हुआ और चंद मिनट में लक्ष्मी की सांसें थम गईं।
दमोह के ही हिंडोरिया गांव की निशा परवीन ने सीजर से बेटे को जन्म दिया। परिवार अस्पताल में लोगों का मुंह मीठा करवाने लगा। कुछ घंटों बाद बताया गया कि निशा की यूरिन पास होना बंद हो गई। किडनी फेल हो गई है। गंभीर हालत में निशा को जबलपुर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, जहां डायलिसिस कराया। 18 दिन बाद निशा ने दम तोड़ दिया।
आपको बता दे कि इन चारों परिवार में इन महिलाओं की यह पहली डिलीवरी थी और इनको पहला बच्चा हुआ था। लेकिन अस्पताल की इस लापरवाही ने इन दुधमुंही बच्चों से इनकी मां का साया छीन लिया। इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी सिविल सर्जन डॉक्टर राम देव। पूरे मामले में पर्दा डालने में लगे हुए हैं और वह किसी भी तरह की लापरवाही से इनकार कर रहे हैं। लेकिन कहते हैं न जिसका मरता है उसपे ही बीतती है तो यह दुखी परिवार अपने सामने लापरवाही को देखकर चुप नहीं रहे और इन्होंने इस लापरवाही के विरोध में मुख्यमंत्री के नाम जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया। हंगामा बढ़ता देख जिला प्रशासन ने भी जांच कर एक सप्ताह के अंदर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दे दिया।
फिलहाल तो दमोह कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर भी मान रहे हैं कि गंभीर लापरवाही हुई है। उन्होंने अस्पताल को नोटिस भी दिया है। और जांच कमेटी भी बिठाई है लेकिन अब देखना होगा कि यह जांच कमिटी डॉक्टर्स पर या लापरवाही करने वाले गैर। जिम्मेदार स्टाफ पर क्या कार्रवाई कर पाती है क्योंकि हम उस देश में रहते हैं जहां पर मेडिकल नेग्लिजेंसी को भी छोटी सी मिस्टेक बताकर डॉक्टर्स अपना पल्ला मामले से झाड़ लेते हैं और यहां सरकार की भी यह मजबूरी रहती है के डॉक्टर्स?की कमी की वजह से वह डॉक्टर्स पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पाती। इस घटना ने मध्य प्रदेश के एक शहर के जिला अस्पताल की स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत की पोल खोलकर रख। दी है। इसी तरह कई जिले के जिला अस्पतालों में बदतर हालात हैं। लेकिन मरीज़ो कि सुनने वाला कोई नहीं है। दोषियों पर मेडिकल लिजेंसी के तहत कार्रवाई न होना इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति का एक बहुत बड़ा कारण है।
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