मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं सदी में बनी भोजशाला पर हिंदू और मुस्लिम अलग-अलग धावे को फ़ोन करो करते आए हैं। हिंदू इसे वाग्देवी (सरस्वती देवी) का मंदिर मानते हैं, वहीं मुस्लिम इसे कमाल मौलाना मस्जिद बताते हैं। भोजशाला को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। हिंदू फॉर जस्टिस नामक संगठन ने करीब एक वर्ष पहले हाईकोर्ट में नई याचिका दायर कर भोजशाला परिसर में प्रत्येक शुक्रवार को होने वाली नमाज रोकने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि हिंदू धर्मावलंबी मंगलवार को भोजशाला में पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम समाज के लोग शुक्रवार को परिसर में नमाज कर उसे अपवित्र कर देते हैं। इस याचिका पर हाई कोर्ट ने इसी वर्ष 11 मार्च को एएसआई को आदेश दिया था कि वह वाराणसी स्थित ज्ञानवापी की तरह भोजशाला का भी वैज्ञानिक सर्वे कर रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
भोजशाला में 22 मार्च से 27 जून तक 98 दिन चले वैज्ञानिक सर्वे और इसमें मिले पुरातत्व महत्व के अवशेषों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सोमवार को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में करीब दो हजार पन्नों की रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। रिपोर्ट की छह प्रतियां सौंपी गई हैं। इनमें दो प्रति कोर्ट के लिए, एक याचिकाकर्ता के लिए और तीन अन्य पक्षकारों के लिए है। रिपोर्ट में 10 खंड हैं। जिन पक्षकारों को सर्वे रिपोर्ट सौंपी गई है, एएसआई को भोजशाला में मंदिर के पुख्ता प्रमाण मिले हैं, हर संरचना को किस तरह बदला गया है इसके ऐसे प्रमाण मिले हैं जो आपको चौंका देंगे। रिपोर्ट में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि वर्तमान संरचना (कमाल मौला दरगाह) का निर्माण करने में यहां पहले से मौजूद मंदिर के ही हिस्सों का उपयोग किया गया था। एएसआई के वकील हिमांशु जोशी ने बताया कि सर्वे के दौरान पुरावशेषों की कार्बन डेटिंग भी कराई गई। की हकीकत को साक्ष्य सहित सामने लाने के लिए 1700 से ज्यादा प्रमाण और खोदाई में मिले अवशेषों का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्ष 151 पन्नों में संकलित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में मिले स्तंभों और उसकी कला व वास्तुकला से यह कहा जा सकता है ये स्तंभ पहले मंदिर का हिस्सा थे, बाद में मस्जिद के स्तंभ बनाते समय उनका पुन: उपयोग किया गया। मौजूदा संरचना में चारों दिशाओं में खड़े 106 और आड़े 82 (कुल 188) स्तंभ मिले हैं। इनकी वास्तुकला से पुष्टि होती है कि ये स्तंभ मंदिरों का ही हिस्सा थे।
उन्हें वर्तमान संरचना (कमाल मौला दरगाह) बनाने के लिए उन पर उकेरी गई देवताओं और मनुष्यों की आकृतियों को विकृत कर दिया गया। मानव और जानवरों की कई आकृतियां, जिन्हें मस्जिदों में रखने की अनुमति नहीं है, उन्हें छेनी जैसी वस्तु का इस्तेमाल कर विकृत किया गया। मौजूदा संरचना में संस्कृत और प्राकृत भाषा में लिखे कई शिलालेख मिले हैं। ये भोजशाला के ऐतिहासिक, साहित्यिक और शैक्षिक महत्व को उजागर करते हैं। सर्वे में एक ऐसा शिलालेख भी मिला, जिस पर राजा नरवर्मन परमार (1097-1134) का उल्लेख है।
मालवा के परमार वंशीय शासकों में से एक नरवर्मन ने यहां शासन किया था। भोजशाला के पश्चिम क्षेत्र में कई स्तंभों पर उकेरे गए ‘कीर्तिमुख’, मानव, पशु और मिश्रित चेहरों वाली सजावटी सामग्री को मस्जिद-दरगाह बनाते समय नष्ट नहीं किया गया था। – दीवारों में खिड़की के फ्रेम पर उकेरी गई देवताओं की छोटी-छोटी आकृतियां मिली हैं, जिनकी हालत अन्य आर्टिकल के मुकाबले बहुत अच्छी है। – दो स्तंभ ऐसे मिले हैं, जिन पर ‘ऊं सरस्वतै नम:’ लिखा है।
भोजशाला को राजा भोज द्वारा बनाने के प्रमाण भी सामने आए हैं।- 94 ऐसी मूर्तियां मिली हैं, जिन पर महीन नक्काशी की गई है। कई अन्य आर्टिकल मिले हैं, जो मंदिर होने की ओर संकेत कर रहे हैं। – उकेरी छवियों में गणेश, अपनी पत्नियों के साथ ब्रह्मा, नृसिंह, भैरव, देवी-देवता, मानव और पशु आकृतियां शामिल थीं। जानवरों की छवियों में शेर, हाथी, घोड़ा, श्वान, बंदर, सांप, कछुआ, हंस और पक्षी शामिल हैं। – 30 सिक्के मिले हैं। ये चांदी, तांबा और अन्य धातुओं के हैं और परमारकालीन हैं।- खोदाई में बहुमंजिला संरचना के पुख्ता प्रमाण सामने आए हैं।