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खता तो जनता की ही है जो सिंधिया कप आयोजकों की छवि धूमिल कर रहे हैं!

ग्वालियर के शंकरपुर क्रिकेट स्टेडियम में आयोजित मध्य प्रदेश प्रीमियर लीग के फाइनल मैच के दौरान जो अफरा तफरी मची, उसने कई तरह की बहस की शुरुआत कर दी है। कुछ लोग इसे आयोजकों की अवस्था का कारण बता रहे हैं तो कुछ लोग इसे जनता का हुड़दंग बता रहे हैं। अब आप लोग पूरे घटनाक्रम से खुद ही अपना निर्णय लें कि मध्य प्रदेश प्रीमियर लीग के फाइनल मैच के दौरान हुई अव्यवस्था पत्थर बाजी लाठी चार्ज की वजह क्या रही।

हम आपको बता दें कि रविवार को ग्वालियर के शंकरपुर क्रिकेट स्टेडियम पर मध्य प्रदेश प्रीमियर लीग का फाइनल मैच भोपाल और जबलपुर ( टीम के साथ जानवरों के नाम नहीं लिख रहे हैं क्योंकि जानवरों जैसी प्रवृत्ति शायद नाम रखने से भी आती हो) के बीच खेला गया था। कोई भी मैच या इवेंट जनता की भीड़ के बिना सफल दिखाई नहीं देता और इस इवेंट को सफल बनाने के लिए भी पूरे शहर और आसपास के शहरों की जनता को फ्री एंट्री का प्रलोभन देकर बुलाया गया था। जितनी ज्यादा भीड़ होती उतना ही ज्यादा खेल के प्रायोजक खुश होते उतना ही ज्यादा खेल के आयोजकों को वाह वाही मिलती। इस क्रिकेट स्टेडियम की क्षमता 30000 दर्शकों की है और जानकारी के मुताबिक लगभग दुगने लोग स्टेडियम तक पहुंच गए थे। लेकिन एक जानकारी यह भी है की स्टेडियम के अंदर आधी सीट खाली पड़ी हुई थी। स्टेडियम के आठ गेट में से केवल एक गेट ही जनता की प्रवेश के लिए खोला गया था बाकी तीन गेट केवल वीआईपी के प्रवेश के लिए खोले गए थे। अब यह तो पढ़े-लिखे आयोजन ही बताएं कि एक गेट से 30000 दर्शकों का प्रवेश कैसे संभव है और यदि संभव है तो फिर इस स्टेडियम में आठ गेट बनाने की फिजूल खर्ची की ही क्यों गई है?

लेकिन खबरदार जो आयोजकों की व्यवस्था पर एक उंगली भी उठाई आयोजन मिलावटी दूध की तरह पाक साफ हैं असली दोष तो जनता का है। वह जनता जो कहीं भी भीड़ का हिस्सा बन जाती है। वह जनता जो फ्री एंट्री की लालच में कई किलोमीटर दूर भी पहुंच जाती है। वही जानता जो रविवार छुट्टी के दिन अपने बच्चों की खुशियों के लिए इतनी दूर पहुंची थी। वही जानता जिसमें अपने शहर में आयोजित इतने भव्य कार्यक्रम को लेकर हर्ष उल्लास था। वही जानता जो आयोजक राजा बाबू का दीदार करना चाहती थी। वही जनता जो स्वतंत्र भारत में भी अंग्रेजों वाली पुलिस की गुंडई झेलने के लिए पैदा होती है। वही जनता जो इस देश में सिस्टम की अवस्था का शिकार होने के लिए पैदा होती है। वही जनता जो व्यवस्था में लाठी खाने के बाद कुछ दिनों में ही सब कुछ भूल जाती है। वही जनता जो कल फिर एक भीड़ के रूप में निकलेगी और ऐसे ही आयोजकों के लिए ताली पीटेगी। दोष तो उन माताओं का है जो अपने मासूमोंको गोद मैं लेकरइस सपने के साथ वहां पहुंची कि उनके नोनीहाल भी ऐसे ही सफल खिलाड़ी बन पाएंगे!

एक समय था जब रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था आज देश के भी यही हालात हैं जनता बाहर पिट रही है और राजा बाबू अंदर ताली बजा रहे हैं। जनता केवल यह भीड़ का हिस्सा बनने की आदत छोड़ दे तो आप देखेंगे कि इन वीवीआईपी राजा बाबू को तारे जमी पर नजर आने लगेंगे।

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