सुनो, सुनो, सुनो! सितंबर 2025 से होने वाले हिंदू राष्ट्र में जातिगत जनगणना शुरू होने वाली है। और मुँह में हमेशा दही जमाए बैठे रहने वाली आम जनता भी सुन ले, इस जातिगत जनगणना के बाद उनको भी कोई बहुत बड़ा बंपर लाभ नहीं मिलने वाला है जो झुनझुना उनको हमेशा से मिलता रहा है वह इसे भी वही झुनझुना समझें। तो फिर जातिगत जनगणना हो क्यों रही है पूरी मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर छोटे से पनवाड़ी से लेकर बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों के दफ्तरों तक इसका शोर क्यों है? जातिगत जनगणना से किसको फायदा? किसको नुकसान आइए समझते हैं।
जातिगत जनगणना का मुद्दा लंबे समय तक चल रहा था और इस पर भाजपा और केंद्र सरकार लंबे समय से मौन थी। लेकिन अचानक अपना मौन तोड़ते हुए और जातिगत जनगणना की घोषणा करते हुए केंद्र सरकार ने सबको चौंका दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना के साथ। जाति।की गिनती कराने का फैसला किया है। अब सरकार घर घर जाकर जाति पूछेगी। और अब भाजपा और सहयोगी दल इसे ऐतिहासिक फैसला बता रहे हैं। सत्ता के चापलूस इसे ऐतिहासिक फैसला बता रहे सत्ता। के चापलूस मतलब आप गोदी मीडिया भी समझ सकते हैं और सत्ता की हर हमें हां। मिलाने वाले कुछ मौका परस्त भी!
इस कैबिनेट फैसले के बाद सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव। ने जो कुछ कहा वह बहुत ग़ौर करने वाली बात है। उनका कहना था कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है। लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वे के नाम पर गैर। पारदर्शी तरीके से जाती गणना कराई, जिससे समाज में संदेह पैदा हुआ। अष्टमी वैष्णव की इस बात से आप असली वजह तो समझ ही गए होंगें। इन्हें चिंता जाति की है न जनता की है। इन्हें चिंता उस वोट बैंक की है। जो अन्य पार्टियों द्वारा सर्वे कराया गया उसकी वजह से पिछले लोकसभा चुनाव में जो निराशाजनक परिणाम मिले जो हांफते हांफते जीत हुई, शायद उसी का परिणाम है कि जातिगत जनगणना जातियों की आवश्यकता नहीं, देश की आवश्यकता नहीं बल्कि भाजपा सरकार की मजबूरी बन गई।

भारत में पहली जनगणना 1872 में लॉर्ड मेयो के शासनकाल में हुई थी, लेकिन इसे गैर-वैज्ञानिक तरीके से किया गया था. पहली समकालिक और वैज्ञानिक तरीके से जनगणना 1881 में लॉर्ड रिपन के शासनकाल में आयोजित की गई थी। इसके बाद हर दस वर्ष में यह जनगणना होती रही। भारत में आखरी बार जनगणना 2011 में हुई थी। और 2021 में कोविड। के चलते जनगणना नहीं हो सकी थी। उन्नीस सौ सैंतालीस के बाद आजाद भारत में कभी भी जातिगत जनगणना नहीं हुई। हर 10 वर्ष में जनगणना के बाद ही हर क्षेत्र राज्य राज्य में संख्या और उनके लिए आवश्यकताओं के आंकड़े इकट्ठा होते थे। इसी आधार पर आगे जनता की बेहतरी के लिए योजनाएं बनती आई हैं।
यदि दो हजार पच्चीस सितंबर में। जनगणना शुरू होती है। जिसमें जातियों के आधार पर भी जनसंख्या का आंकड़ा इकट्ठी किया जाएगा। तो यह उन्नीस सौ सैंतालीस के बाद आजाद भारत में पहली बार होगा। वैसे लोगों मन में अभी यह भी स्पष्ट नहीं है। कि जातिगत जनगणना मुद्दा किस पार्टी का है। हालांकि इसकी घोषणा केंद्र की मोदी सरकार ने की है और अब भाजपा इसका श्रेय ले रही है। लेकिन सबसे पहले जातिगत जनगणना का विचार पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 2010 में रखा था उस समय कई दल तत्कालीन प्रधानमंत्री के इस विचार से सहमत थे। लेकिन इसके बावजूद भी 2011 में जातिगत जनगणना नहीं हो सकी थी। उसके पीछे मूल वजह इस विचार के आने और जनगणना के समय के बीच का कम फ़ासला माना जा सकता है।
जैसे ही केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा की मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर तरह तरह की चर्चाओं की बाढ़ आ गई। अब आप समझिए ही केंद्र सरकार को किस मजबूरी में यह फैसला लेना पड़ा। बिहार में कुछ समय में चुनाव होने वाले हैं और आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में यह बात निकल कर भी आ रही है कि बिहार की जनता जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं। जबकि भाजपा इस मुद्दे पर पूरी तरह खामोश है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो राहुल गाँधी? पिछले लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग उठाते रहे हैं वह हर सभा में कहते हैं जिसकी जितनी संख्या उसको उतना लाभ मिलेगा। कांग्रेस की सरकार आती है तो जातिगत जनगणना कराएगी। और पिछले आम चुनाव में सब कुछ भाजपा के पक्ष में होते हुए भी भाजपा को अपेक्षित सीटें नहीं मिलीं। और उसका मूल कारण राहुल गाँधी के जातिगत जनगणना के मुद्दे को भी माना गया।

अब सवाल यह भी उठता है कि यदि जातिगत जनगणना होती है तो आगामी आम चुनाव दो हजार उन्नीस में और अन्य चुनाव में इसका राजनीतिक लाभ किसको मिलेगा? क्योंकि जनगणना के मुद्दे का यह खेल सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए है यकीन मानिए। के अन्य मुद्दे और घोषणाओं की तरह आखिरी में आम जनता के लिए यह एक झुनझुना ही साबित होगा। कल तक भाजपा नेता, भाजपा समर्थित और भाजपा पोषित लोग कांग्रेस के जातीय जनगणना के मुद्दे को देश बाँटने वाला बताकर राहुल गाँधी की किरकिरी करने के तमाम प्रयास कर रहे थे। और आज वे ही लोग मेंढक सेबी तेज तरीके से गुलाटी मारकर जातिगत जनगणना के मोदी सरकार के निर्णय किए प्रशंसा करते नज़र आ रहे हैं । इसे आप तमाम न्यूज चैनल की बहस में और सोशल मीडिया पर देख सकते हैं।
जातिगत जनगणना का मुद्दा राहुल गांधी ने उठाया और कांग्रेस को कुछ हद तक इसका लाभ भी मिला। लेकिन जैसे हर मुद्दा कांग्रेस भुना नहीं पाती है लंबे समय तक पकड़ के नहीं रख पाती है जनता तक यह संदेश नहीं पहुंचा पाती है यह मुद्दा तो उनका रहा है। वही हश्र जातिगत जनगणना के मुद्दे का होता दिखाई दे रहा है। क्योंकि मुद्दा राजनीतिक पार्टियां अपने हितों के लिए उठाती हैं उन मुद्दों पर घोषणाएं दी अपने निस्वार्थ को ध्यान में रखते हुए करती हैं और वैसा ही कुछ जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर हुआ है। देश की राजनीति राजनीति वैसे ही देश में जातिगत भेद भाव बढ़ा रही है। आज जातियों के बीच की दरार दिन पे दिन बढ़ती जा रही है।
ऐसे लोग जो हिंदू राष्ट्र निर्माण का विचार मन में लिए बैठे हैं और उनकी इच्छा यही है कि सब लोग सभी तरह की भेदभाव छोड़कर हिंदू राष्ट्र के निर्माण में योगदान दें सब मिलकर हिन्दू कहलाएँ किसी भी तरह का जातिगत भेदभाव उनके बीच न हो। ऐसे लोगों के ऐसे विचार पर। यह जातिगत जनगणना एक बहुत बड़ा आघात साबित होने वाली है। देश में होने वाले हर चुनाव में हर पार्टी अपने प्रत्याशी क्षेत्र में जातिगत वोट बैंक के आधार पर चुनती है। दो हजार पच्चीस की जातिगत जनगणना के परिणाम दो हजार सत्ताईस तक सामने होंगे और दो हजार उन्नीस का आम चुनाव उसी के आधार पर होगा। तो फिर क्या यह अपने नि स्वार्थ हमेशा से भुनाने वाली राजनीतिक पार्टियां जातिगत जनगणना के आंकड़ों का उपयोग जातिगत भेदभाव को और बढ़ाकर हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना पर आघात नहीं करेंगी? जातिगत जनगणना का खंजर कहीं हिन्दू राष्ट्र के विचार सीने में तो नहीं उतारा जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि आने वाला आम चुनाव अन्य मुद्दों पर न लड़ा जाकर केवल जातिगत जनगणना पर लड़ा जाए और वह एक कास्ट वॉर बन जाए?