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असुरक्षित असहाय और बेइज्जत पुलिस का काला युग

न जाने कितने आम पुलिसकर्मी हैं जिन को रोज़ हडकाया जाता है, फटकारा जाता है, और बेइज्जत होकर भी वह मजबूरी में अपनी नौकरी करते रहते हैं। इन मामलों को देखते हुए एक गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। पूरी व्यवस्था को सोचना होगा पूरे समाज को सोचना होगा। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को सोचना होगा कि इस तरह से यदि पुलिस की साख पर बट्टा लगता रहा। तो आमजन के बीच में से पुलिस का विश्वास उठ जाएगा।

जब भी किसी सड़क चौराहे से आप आपका परिवार खासकर आपकी बच्ची निकलती और यदि उस जगह पर कोई एक पुलिसकर्मी भी खाकी वर्दी पहने हुए खड़ा हो तो सहज ही एक सुरक्षा का भाव अंदर जाग उठता है कि यहां कुछ गलत नहीं होने वाला। यकीन मानिए पुलिस ने यह भरोसा कमाया है। यह भरोसा कमाया है इसके कई उदाहरण भी हैं जहां पुलिसकर्मियों अपनी जान पर खेलकर आम नागरिकों की रक्षा की है। किसी दूसरे के ऊपर बीते उदाहरण से बेहतर है। मैं आपको अपना उदाहरण साझा करूं। गुजरात गुजरात दंगे के दौरान में अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरा और उतरकर बाहर पहुंचा। वहां ऑटो चालकों ने मुझे डरा ही दिया। मै नजदीकी पुलिस चौकी पहुंचा। वहां बहुत ही सहज पुलिसकर्मी थे। उनसे मैंने पूछा मुझे जिस क्षेत्र में जाना है वहाँ दंगा चल रहा है। अब मुझे क्या करना चाहिए। उन्होंने मुझे भरोसा दिया। क्या ऐसी कोई बात नहीं है। वहाँ सब शांत है। हम आपको अपनी गाड़ी में वहाँ भेज देते हैं। ऐसा उदाहरण आप में से हर व्यक्ति के पास जरूर होंगे। पुलिस की नकारात्मक छवि भले ही हो लेकिन जब सुरक्षा की जरूरत होती है तो हम सबसे पहले पुलिस को ही याद करते हैं।

पिछले कुछ दिनों में जिस तरह की घटनाएँ जगह जगह से निकलकर आ रही हैं। उसने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जिस पुलिस पर आम लोग यह भरोसा करते हैं की यह पुलिस आम लोगों की सुरक्षा करेगी। उनके साथ कुछ गलत नहीं होने देगी, आम जन के साथ उनकी उपस्थिति में अन्याय नहीं होगा। वह पुलिस खुद आज अन्याय का दंश भोग रही है। जगह जगह से जो खबरें आ रही हैं उसमें पुलिस कर्मी हिंसा का शिकार होते अन्याय सहते बेइज्जत। होते और अपनी छवि धूमिल कराते नज़र आ रहे हैं। और यह घटनाएं जिस तेजी से बढ़ रही है वह यह सवाल खड़ा कर रही है कि क्या पुलिस की यह छवि आम लोगों के बीच में उनका भरोसा नहीं तोड़ेगी? क्या आम लोगों के मन में यह भाव नहीं आएगा जो पुलिस खुद अन्याय सह रही है वह हमें क्या न्याय दिलाएगी? जो पुलिस खुद चौराहे पर बेइज्जत हो रही है वह हमारे सम्मान की क्या रक्षा करेगी?

अभी हाल की खबर है काशी विश्वनाथ। मंदिर की जहाँ एक दारोग़ा साहब ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभा रहे थे सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें मंदिर के कुछ पदाधिकारी जो किसी सत्ताधारी पार्टी से संबंधित भी हो सकते हैं, यह लोग बैरिकेट हटाकर जबरदस्ती प्रवेश कर रहे थे। वह ईमानदारी से अपनी बेटी निभा रहे दारोगा हरेश्वर।दुबे ने उनकी इस हरकत पर उन्हें रोका। लेकिन इन पदाधिकारियों को दरोगा की रोकने की बात नागवार गुजरी। और वे। लोग दरोगा से बदतमीजी करने लगे खुलेआम आम नागरिकों के सामने दरोगा की कॉलर पकड़ी उसे बेइज्जत किया उसे धकियाया। दरोगा को पकड़कर खींचा और दूसरी तरफ ले जाया गया। इस वाकये को कतार में लगे श्रद्धालु भी देखते रहे। दरोगा के साथ दुर्व्यवहार की घटना धाम में लगे सीसी कैमरों में कैद हो गई। इसका वीडियो फुटेज अब वायरल हो रहा है। पीड़ित दरोगा का कहना है कि शिकायती पत्र भी दिया था, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी कार्रवाई की बजाय शिकायत वापस लेने का दबाव बना रहे हैं।

इंदौर में बीच सड़क पर पुलिसकर्मियों को दौड़ाकर पीटने का मामला तो बहुत ही शर्मनाक है। पुलिस का दोष इतना ही था कि उन्होंने एक व्यवसाय की शिकायत पर वकीलों पर मामला दर्ज कर लिया था जिसके विरोध में वकीलों ने थाना घेरा, जमकर नारेबाजी की। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के चलते पुलिस की किरकिरी हुई अब मामले ने तूल पकड़ा है। तृतीय श्रेणी पुलिसकर्मी ने अपने वॉट्सएप पर ब्लैक डीपी लगाई है। दवाओं में आकर पुलिसकर्मियों को ही निलंबित किया गया। हालांकि एक राहगीर की शिकायत पर पुलिस ने दो। सौ वकीलों के खिलाफ जाम लगाने मारपीट की एफआईआर दर्ज की है। लेकिन यह घटना भी एक बड़ा सवाल छोड़ जाती है कि जिस पुलिस के ऊपर आम जनों की सुरक्षा का जिम्मा है। वह पुलिस खुद ही सुरक्षित नहीं है और यदि वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को इस तरह से भीड़ में मरने छोड़ दिया था। तो इस तरह की अराजकता का दोषी किसे माना जाए? इन पुलिसकर्मियों का भी परिवार था। क्या ऐसी परिस्थिति है इनका परिवार अपने पुलिस विभाग में काम करने वाले सदस्य को सुरक्षित महसूस कर पाएगा?

मध्य प्रदेश के मऊगंज में शनिवार को बड़ा बवाल हुआ, जिले के गड़रा गांव में आदिवासियों की उग्र भीड़ ने एक युवक की हत्या के बाद एएसआई का भी मर्डर कर दिया। हनुमना तहसीलदार की हालत गंभीर है जबकि कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हैं। घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया है। दरअसल, आदिवासियों ने एक ब्राम्हण परिवार के युवक को बंधक बना लिया। जिसकी सूचना पर पुलिस टीम मौके पर पहुंची। जिसके बाद आरोपियों ने पुलिस टीम पर भी जानलेवा हमला कर दिया। ए एस आई राम चरण गौतम की मौत का दोषी कौन है? भले ही बात हो रही है कि आदिवासियों ने एएसआई की हत्या की है लेकिन यह नौबत आई क्यू? एएसआई के भाई रामजी गौतम का कहना है कि पुलिस समय पर गंभीरता समझ जाती तो उनके भाई जीवित होते। मतलब साफ है कि कहीं ना कहीं चूक हुई है। और जिसकी भेंट एएस आई राम चरण गौतम चढ़ गए हैं।

ऐसे ही न जाने कितने आम पुलिसकर्मी हैं जिन को रोज़ हडकाया जाता है, फटकारा जाता है, और बेइज्जत होकर भी वह मजबूरी में अपनी नौकरी करते रहते हैं। इन मामलों को देखते हुए एक गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। पूरी व्यवस्था को सोचना होगा पूरे समाज को सोचना होगा। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को सोचना होगा कि इस तरह से यदि पुलिस की साख पर बट्टा लगता रहा। तो आमजन के बीच में से पुलिस का विश्वास उठ जाएगा। कहीं आने वाले समय में ऐसी घटनाएँ न होने लगे। पुलिस के सामने ही। किसी बच्ची को छेड़ा। जाए वो पुलिसकर्मी कोई कदम न उठाए। पुलिसकर्मी के सामने ही किसी को लूट लिया जाए किसी की हत्या कर दी जाए और बदमाश बीर बन कर खड़ा रहे। और वह ऐसा करे भी क्यों? हर व्यक्ति का अपना स्वयं का जीवन भी अनमोल होता है। और जब उसे पता हो कि ड्यूटी निभाते वक्त यदि वह मर जाता है। तो न तो उसके विभाग के वरिष्ठ लोगों को कोई फर्क पड़ने वाला है न उस प्रदेश की सत्ता को। उसकी मौत की एक कीमत उसके परिवार को दे दी जाएगी।

आईए चिंतन करते हैं कि जैसे आम जन के बीच में पुलिस का विश्वास और मजबूत हो कैसे पुलिस आम जन की सुरक्षा में और मजबूती से खड़ी रहे। कैसे पुलिस के मन में भी यह भाव आए के जिस कानून का उपयोग वह दूसरों की सुरक्षा में करते हैं वह कानून उनकी खुद की भी सुरक्षा कर पाए…..

Gajendra Ingle
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