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सेप्टिक टैंक में ‘ बस्तर  जंक्शन, पत्रकार मुकेश चन्द्राकार की हत्या पर चिंतन


लिखते हुए हाथ कांपते नहीं हैं ,दिल में सिहरन जरूर होती है, ‘हमपेशा’ मुकेश चंद्राकर के बारे में सोचकर।  33  साल के मुकेश चंद्राकर बस्तर के रवीश कुमार थे, हालाँकि उन्हें कोई रमन मेग्सेसे पुरस्कार नहीं मिला था।  उन्हें सच लिखने का ईनाम मिला ,लेकिन मौत की शक्ल में।  मुकेश चंद्राकर  की हत्या कर उनका शव एक सेप्टिक टेंक में डाल दिया गया। लेकिन मुकेश की हत्या लाख कोशिशों के बाद भी छिपाई नहीं जा सकी ,हाँ  अब  मुकेश के हत्यारे को बचाने की कवायद और राजनीति  जरूर हो रही है।
बस्तर में चंद्राकर ही चंद्राकर के कातिल हो सकते हैं ,इसकी कल्पना करना आसान नहीं है ,लेकिन ऐसा हुआ ,क्योंकि सभी चंद्राकर एक जैसे नहीं होते।  सभी चंद्राकर चंदूलाल चंद्राकर नहीं होते,सभी मुकेश चंद्राकर नहीं होते।  मै चंदूलाल चंद्राकर को जानता था।  वे अपने जमाने के एक शालीन पत्रकार थे और हिंदुस्तान जैसे अखबार के सम्पादक रहे ।  कांग्रेसी थे ,लेकिन जमीन से जुड़े थे ,उनकी वजह से ही पृथक छत्तीसगढ़ की नीव पड़ी। इसी छत्तीसगढ़ में मुकेश चंद्राकर भी हुए। वे अपने सीमित साधनों से बस्तर में भय,भ्र्ष्टाचार  और कुशासन के खिलाफ अलख जगाये हुए थे।
मुकेश चंद्राकर 2025 की  पहली रात से ही अपने घर से लापता थे। मुकेश ने  स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर एक नेशनल टीवी चैनल  के लिए काम शुरू किया और साथ में ही वे  यूट्यूब पर अपना   चैनल ‘बस्तर जंक्शन’ का  संचालन भी करते थे।  इस चैनल पर  बस्तर की अंदरूनी ख़बरें प्रसारित होती थीं,  इसीलिए ये चैनल  लोकप्रिय.भी था। मुकेश केवल पत्रकार ही नहीं थे बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। वे उग्रवादियों में भी विश्वसनीय थे ,ग्रामीणों में भी और पुलिस में भी ,लेकिन वे अलोकप्रिय थे भ्रष्ट नेताओं में ,अफसरों में। और उनका यही रूप उनकी जान का दुश्मन बन गया। मुझे किसी ने बताया कि बस्तर में माओवादियों की ओर से अपह्रत पुलिसकर्मियों या ग्रामीणों की रिहाई में मुकेश ने कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मुकेश की हत्या का आरोप उनके ही सजातीय ठेकेदार .सुरेश चंद्रकार पर है।  वो कांग्रेस का नेता है ,इसलिए भाजपा के लिए मुकेश की हत्या राजनीति  का औजार बन गयी। मुकेश चंद्राकर के भाई की शिकायत के बाद से ही पुलिस की विशेष टीम बना कर जांच की जा रही थी शुक्रवार की शाम चट्टान पारा बस्ती में ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के परिसर में एक सेप्टिक टैंक से मुकेश चंद्राकर का शव बरामद किया गया। पुलिस का कहना है कि पत्रकार मुकेश चंद्राकर के मोबाइल के अंतिम लोकेशन और फोन कॉल के आधार पर जांच चल रही थी।

मुकेश की हत्या के पीछे कांग्रेस है या भाजपा ,मै इस फेर में नहीं पड़ता ।  मुकेश चंद्राकर की हत्या के  तमाम पहलुओं के बारे में लिखा जा चुका है ,इसलिए मेरे पास इस विषय में आपको चौंकाने वाला कोई शिगूफा नहीं है ,लेकिन मै इतना जानता हूं कि  छत्तीसगढ़ में दो तरह के पत्रकार हैं। एक वे जो मुकेश चंद्राकर जैसे हैं और दूसरे वे जो मुकेश चंद्राकर जैसे नहीं हैं।  छत्तीसगढ़ लुटेरों  की राजधानी है ।  यहां नेता,अफसर,ठेकेदार  और पत्रकार मिलकर संसाधनों की लूट कर रहे है।  पृथक छत्तीसगढ़ बनने के बाद मध्यप्रदेश के ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र तक के अनेक पत्रकार छत्तीसगढ़ पहुंचकर पत्रकारिता करने लगे ।  जिन्हें हमारे यहां ‘ चुकटिया ‘ पत्रकार कहते थे वे छत्तीसगढ़ में जाकर सेठ बन गए।
मुकेश की हत्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नेता,अफसर,ठेकेदार और पत्रकारों के नापाक गठबंधन का हमला है।  इसके खिलाफ लोग खड़े हुए हैं लेकिन वैसे नहीं खड़े हुए जैसे निर्भया के मामले में हुए थे ,क्योंकि कोई मुकेश को पत्रकार ही नहीं मान रहा  तो कोई उसे ब्लैक मेलर कहकर लांछित करने से नहीं हिचक रहा। लेकिन हकीकत केवल ऊपर वाला जानता है।  मुकेश यदि झुनझुना बजाने वाला पत्रकार होता तो शायद नहीं मारा जाता।  मारने वाला मुकेश का सजातीय ही नहीं बल्कि दूर का रिश्तेदार भी है।  हत्यारा उसे खरीद सकता था ,किन्तु ऐसा नहीं हुआ। मुकेश को मार दिया गया क्योंकि मुकेश अकेले ठेकेदार सुरेंद्र चंद्राकर के लिए खतरा नहीं था ,बल्कि पूरी व्यवस्था के लिए खतरा था। मुकेश जैसे लोग खतरनाक ही होते हैं ,ऐसे लोगों को कोई बर्दाश्त नहीं करता।

मुकेश की शहादत पर मुझे गर्व है। कभी-कभी मुझे लगता है कि  मै सत्ता प्रतिष्ठान के लिए मुकेश की तरह खतरनाक नहीं बन पाया अन्यथा मुझे भी मुकेश गति प्राप्त हो सकती थी। मुकेश के हत्यारे सजा पाएंगे या छोड़ दिए जायेंगे ये भविष्य के गर्त में है ,लेकिन ये छत्तीसगढ़ के उन असंख्य पत्रकारों के लिए मौक़ा है कि  वे मुकेश के हत्यारों को उनके अंजाम तक पहुँचाने की कोशिश करें ,अन्यथा या तो वे टुकड़खोर कहे जायेंगे या एक दिन मुकेश गति को प्राप्त होंगे। मुकेश के प्रति मेरा मन शृद्धा से भरा है। वो मेरे बच्चों की उम्र का था। वो जहाँ भी रहे ,सच की लड़ाई लड़ता रहे। मुकेश के परिजनों पर क्याबीत रही होगी ,इसकी कल्पना यदि छतीसगढ़ और देश के पत्रकार कर पाएंगे तो वे मुकेश के पीछे खड़े होने में संकोच नहीं करेंगे।


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