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“गार्डन होम्स” नहीं “नर्क ग्रह” है ऐसी पॉश कॉलोनी जहाँ संगीन वारदात पर भी किसी पड़ोसी की संवेदना नहीं जागती!

देश और समाज में लगातार बढ़ रहा पॉश कॉलोनी कल्चर जिसकी चकाचौंध और छद्म ग्लैमर लोगों को खूब आकर्षित कर रहा है। लेकिन पॉश कॉलोनी कल्चर के साइड इफेक्ट समय समय पर हमें देखने को मिलते रहते हैं और ऐसा ही एक प्रणाम अभी हाल ही में ग्वालियर में उस समय नजर आया। जब एक फ्लैट में मां बेटी की हत्या कर दी गई और पड़ोसियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, मानो उन्हें कुछ पता ही न चला हो। इसके बाद जब फ्लैट से माँ बेटी के शव को नीची उतार कर पोस्टमार्टम के लिए ले जाना था तब भी। इस पॉश कालोनी से कोई भी निकल कर। बाहर नहीं आया। जो इनके शव को उतारने में पुलिस की मदद कर सके। यह घटनाक्रम साफ बता रहा है। की पॉश कॉलोनी कल्चर। हमें मानवीय संवेदनशून्यता की ओर ले जा रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्वालियर के सिटी सेंटर। के अल्कापुरी क्षेत्र में गार्डन होम्स सोसाइटी है जो पूरी तरह सुरक्षित और गेट बंद। कही जाती है। इसी पॉश कालोनी के फ्लैट नंबर 322 मे सोमवार रात 10 बजे छप्पन वर्षीय रीना भल्ला और उनकी अस्सी वर्षीय मां इंदु पुरी की हत्या कर दी जाती है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट अखिलेश भार्गव बताते हैं कि जिस तरह का सीन उस बेडरूम में था। जिसमें इन माँ-बेटी के शव पड़े हुए थे उसमें स्पष्ट समझ में आ रहा था। रीना भल्ला ने हत्यारों से बचने के लिए काफी देर तक संघर्ष किया। वह चिखी चिल्लाई भी होंगी। और इधर-उधर का सामान भी। तितर-बितर पड़ा है, उसकी भी आवाज हुई होगी। साथ ही रात का वक्त होने के चलते यह भी हकीकत है। ये आवाज और ज्यादा दूर तक और तेज सुनाई देती हैं। इन सब के बावजूद रात को मां बेटी और हत्यारों के बीच का संघर्ष पड़ोस के किसी फ्लैट तक। नहीं पहुंचा, कोई भी उनकी आवाज नहीं सुन सका किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. यह सब बातें यह सवाल खड़ा करती हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पॉश कॉलोनी कल्चर में अब यह चलन बन चुका है कि पास के व्यक्ति पर आने वाली विपदा पर अड़ोस पड़ोस के लोग खामोश हो जाते हैं। और विरोध करने के बजाय खुद बचकर अपने दडबों में छुप जाते हैं। 

मानवता को तार तार करने वाला एक और भयावह दृश्य इस घटना के बाद सुबह उस समय नजर आया। जब पुलिस फ्लैट नंबर 322 में पहुंच इस हत्या के मामले की जाँच कर रही थी। उस समय भी पड़ोसियों का रवैया संवेदनशून्य नजर आया। इसके बाद हद तो तब हो गई जब मां बेटी के शव को चौथी मंजिल से उतारकर नीचे सब वाहिका में रखना था। ताकि उन्हें पोस्टमार्टम हाउस ले जाया जा सके। इसके लिए पुलिस ने आजु बाजू चार लोगों को ढूँढ़ने की कोशिश की। ताकि उनकी मदद से शवों को नीचे लाया जा सके। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद वहां उपस्थित पुलिस टीम को मदद करने वाले चार।लोग तक नहीं मिले, यह घटना साफ बताती है कि पॉश कॉलोनी में रहने वाले इंसान किस तरह संवेदनशून्य होते हैं। उन्हें किसी दूसरे की विपत्ति में मदद करने के बजाय उससे बचने का विकल्प ही बेहतर नजर आता है। 

तमाम पॉश कालोनी के हालात आज कल यही है कि वहां पड़ोसी कौन है? क्या करता है? कौन किस तकलीफ में है? इस तरह की बातों से किसी को कोई मतलब नहीं है। एक पड़ोसी के साथ कुछ भी घटनाक्रम होता रहे दूसरा उसका विरोध। नहीं करता है। पॉश कालोनी कल्चर में मीठे मीठे के सब साथी होते हैं और कड़वा होने पर थू थू कर देते हैं। इन पॉश कालोनी में उपलब्ध द प्लेक्स और फ्लैट का जब। विज्ञापन किया जाता है। इनकी सुरक्षा इंतजाम। और गेट बंद होने की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं। और पॉश कॉलोनी कल्चर के नशे में डूबे लोग इन्हें ही सुरक्षा की मजबूत मापदंड मान लेते हैं। जबकि हकीकत यह है इस तरह की सीसीटीवी छाप सुरक्षा केवल घटना के बाद मदद कर सकती है। जबकि पुरानी भारतीय परंपरा जिसमें मोहल्लों में लोग रहा करते थे वहाँ चौराहे और सड़क पर बैठे लोग घर आने जाने वाले पर नजर रखते हैं, और किसी के घर से भी कोई भी आवाज आए तो सब निकलकर उस और मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं। मोहल्ला कल्चर की यह व्यवस्था आज भी छोटे शहरों में और बड़े शहरों के भी छोटे मोहल्लों में देखी जा सकती है। यह अन्तर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है के पॉश कॉलोनी कल्चर के ग्लैमर की ओर ऐसी दौड़ का क्या फायदा जो हमारे मानवीय संवेदनाओं को शून्य कर दे? आइये अपने मानवीय संवेदनाओं का आदर्श उदाहरण मोहल्ला कल्चर की ओर लौट चलें….

Gajendra Ingle

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