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नेता कितना खाते हैं? लो हो गया बड़ा खुलासा!

नेताओं की बात हो और जनता का इंटरेस्ट न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता तो वही हाल यहां है कि जैसे ही आपने पढ़ा होगा कि नेताओं के खाने की बात आपको पता चलने वाली है तो आप चले आए इस खबर पर अब आ ही गए हैं तो आपका स्वागत है और हम आपको यहां बताएंगे कि नेता कितना खाते हैं? वैसे यह एक ऐसा मामला है जिसके बारे में आप हमेशा ही जानना चाहते हैं। तरह तरह के प्रयास किए जाते हैं कि पता चल जाए कि नेता कब कहां और क्या खाते हैं? लेकिन बाकी जो भी काम नेता करते हैं वह तो पता चलता है लेकिन जब मामला उनके खाने का होता है तो इसका खुलासा कम ही हो पाता है। वैसे भी खाना भी उसी तरीके से निजता का मामला है। जैसे खाने के बाद अंतिम क्रिया का होता है। अब किसी की निजता का हनन तो आप कर नहीं सकते। और बात जब नेता की हो जो देश चलाते हों। तो उनकी निजता तो सर्वोपरि है। यह कोई आम आदमी तो है नहीं जिनके  लिए उनकी वास्तविक निजता को भी ताक पर रखा जा सकता है। चलिए निजता को छोड़िए वापस विषय पर आते हैं और जो विषय है वह है खाने से संबंधित कहा कब कौन क्या कह रहा है चलिए इस बारे में थोड़ा खुलासा कर लेते हैं।

अब जैसे ही बात चल रही होगी नेता के खाने। की तो आप कह रहे नेता तो बहुत खाते हैं। इतना खाते हैं कि खाने की इंतहा मचा रखी है। अब इतना खाते हैं यह बात तो सही है। आपकी इस बात से आप स्वयं। क्या ज्यादातर देश के नागरिक सहमत हैं? नेताओं को बहुत खाने की आदत है। अब बात यह है कि इतना खाते हैं तो पचा कैसे लेते हैं तो उसकी व्यवस्था शहर में और शहर के बाहर हाईवे पर दिखाई दे ही जाती है, जी नहीं मैं शौचालय की बात नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि जो शौचालय बनने थे उनको तो खुद नेता खा गए। खैर छोड़िए शौचालय की बात मुद्दा है खाने का बात पहुँच गई जाने पर अभी खा तो लेने दो देखी जाएगी।कहीं निकालना है कि नहीं। तो जो व्यवस्था कर रखी है वह है गड्ढों वाली सड़क हिचकोले मारते हुए चलिए, फिर आपने चाहे जितना खा रखा हो सब हजम हो ही जाना है। अब नितिन गडकरी जी कहते है कि एक पत्रकार नहीं कह सकता कि भ्रष्टाचार हुआ है??? भाई कहेगा तो आप उसको खरीद लोगे या किसी न किसी हथकंडे को अपनाकर सेट कर लोगे? पैसों की कमी है नहीं जोर जोर से बोलते हैं जनाब लेकिन आज निस्संदेह हाईवे तो तमाम बने हैं लेकिन तमाम हाईवे की गुणवत्ता भी आप देख लीजिए कई जगह गड्ढे और खुदी हुई ऊबड़ खाबड़ सड़कें ऐसी हालत में है कि जान पर बनाई है। पांच सौ करोड़ हजार करोड़ में से कितने लगे और कितने गए यह अब नितिन गडकरी जी से कौन पूछे? उत्तराखण्ड के सिक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में फंसने से इकतालीस मजदूरों की जान पर बन आई थी। खेल वहाँ भी खाने का था। लेकिन मामला कहां दब गया कुछ पता नहीं चला। खैर छोड़िए भाई साहब को पानी से गाड़ी चलाकर हवाबाजी करने दीजिए भ्रष्टाचार पर आंख बंद करके बैठे रहने दीजिए और कौन क्या खा रहा है? बिल्कुल मत पूछिए।

नेताओं के खाने की बात से याद आया कि अभी अभी कुछ दिनों पहले हमारे देश की एक पहलवान विनेश फोगट  ने इतना खा लिया कि उसका वजन बढ़ गया। शुकर मनाओ कि इस पर देशद्रोह का केस नहीं चला??? क्योंकि देश को सोने कई तमगा मिल सकता था और यह देश का नुकसान केवल इस वजह से हुआ क्योंकि विनेश कुछ ज्यादा ही खा गई। विदेश में थोड़ी भी देशभक्ति होती तो वह उस रात भूखी सो लेती। यह बिनेश फोगट ने तो अपने खाने के चक्कर में देश का कितना बड़ा नुकसान कर दिया।इसकी खाने की बीमारी ने पहले भी भारतीय कुश्ती संघ ने घमासान मचा दिया था। इस दिनेश फोगट के ज्यादा खाने की वजह से देश को एक सोने के तमगा का नुकसान हो गया। अभी सोने के तमगा का वजन क्या था यह तो जानकारी नहीं है। खैर इस तमगे का वजन दो सौ अट्ठाईस किलो तो होगा नहीं लेकिन दो सौ अट्ठाईस किलो सोना कौन खा गया? केदारनाथ मंदिर से दो सौ अट्ठाईस किलो सोना कहां गायब हो गया? यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ऐसा आरोप देश के एक सम्मानित व प्रतिष्ठित धर्मगुरु ने लगाए। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आरोप लगाया कि केदारनाथ से 228 किलो सोना गायब है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “केदारनाथ में सोना घोटाला हुआ है, यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया जाता? वहां घोटाला करने के बाद अब दिल्ली में केदारनाथ बनेगा? और फिर एक और घोटाला होगा। केदारनाथ से 228 किलो सोना गायब है, कोई जांच शुरू नहीं हुई है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?”

खैर ये तो धर्मगुरु की बड़ी बड़ी बातें हैं। इनको समझना और इनका पार पाना बड़ा मुश्किल है। क्या हुआ?क्यों हुआ?किसने खाया कितना खाया?? अरे खाने से याद आया। हम तो नेता कितना खाते हैं? कब खाते हैं?  क्या खाते हैं? कि बात कर रहे थे ये कहां घूम गए? अरे खाने पीने की बात तो इधर-उधर की बहुत हैं। तमाम उदाहरण हैं लेकिन ये लोग अब बिजली गुल हो गई। इसलिए अब इस चर्चा को आगे बढ़ाना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि बिजली के बिना करंट नहीं दौड़ता और करंट नहीं दौड़ेगा। तो विचार नहीं आएंगे और विचार नहीं आएंगे तो आगे हम आपको कैसे बताएंगे?कि और किस किसने? कहां? कहां? कितना खाया? ये बिजली जाने के पीछे भी बड़ा खेल है भाई अंडरग्राउंड वायरिंग है नहीं ऊपर हवा में तार लटके रहते हैं पक्षी बैठ जाते हैं हवा चल जाती है मौसम का दोष है एक्ट ऑफ गॉड है? ऐसा न समझें कि खराब इक्विपमेंट खरीद कर, घटिया सामग्री खरीद कर बिजली विभाग ने कुछ खा लिया हो? या तारों में दौड़ता करेंट पी लिया हो? भाई हर विभाग का एक मंत्री होता है और वह मंत्री भी नेता से मंत्री बड़े प्रयासों से बनता है। खैर छोड़ो बिजली और करंट गर्मी बहुत है। मामला गर्म हो गया और कोई और गर्म हो गया तो कहीं मुझ पर ही संकट न आ जाए?

चलिए चर्चा खत्म करने से पहले उस मुख्य मुद्दे पर आ।जाते हैं क्योंकि देखिए बात सीधी सीधी हम नेता के खाने की कर रहे थे नेता बहुत मेहनती होते हैं।सुबह चार बजे पांच बजे तो उन्हें उठना पड़ता है क्योंकि छह बजे तो जनता अपनी परेशानी लेकर दरवाजा खटखटाने लगते हैं। क्या करें जनसेवक हैं तो वहीं सुबह सुबह ही खाने पीने का सिलसिला शुरू हो जाता है। अब बात यूं रही कि एक दिन के तमाम कार्यक्रम थे उसमें एक नेता जो अब सम्माननीय मंत्री जी बन चुके हैं और उनके साथ उनके प्यादे के रूप में बीस पच्चीस और छुट भैये नेता जगह जगह घूम रहे थे। निस्संदेह सुबह है खा पीकर निकले उसके बाद में भी जब 12 बजे एक जगह भोज का कार्यक्रम था तो सबने बैठकर आधे घंटे तक खूब उंगलियां चाटते हुए चाव से खाया। अब उस समय तो ऐसा लगा कि लगता है 4 घंटे तक छुट्टी हो गई। कुछ खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन उसके बाद एक अन्य निजी कार्यक्रम में जाना था वहां भी नेता लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था थी। वहां भी सभी ने बैठ कर आधे घंटे तक उंगली चाटते हुए खूब चाव से खाया। तो भाई पाठकों आप अन्यथा न लें। खाने से तात्पर्य यहां भोजन करने का ही था। आप इधर उधर की सोचकर अपने दिमाग पर जोर न डालें। अब इन नेता लोगों की खाने की इस क्षमता को देखते हुए लगा कि यह तो ओलंपिक समिति का अन्याय है? भारत के खिलाफ ओलंपिक समिति का एक षड्यंत्र है? ऊल जलूल उठा पटक के खेलों की जगह यह खाने का खेल रख दें और हमारे नेताजी को बुलालें, तो मजाल है कि सोने का तमगा कोई और ले जा सके? 

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