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अपराध के विरोध में धरना प्रदर्शन, कहीं न्याय प्रणाली पर कम होता विश्वास तो नहीं?

कहीं पर भी कोई अपराध घटित होता है तो तो उसमें अपराधी को दंड देने के लिए और पीड़ित को न्याय। दिलाने के लिए हमारे देश में एक समुचित न्याय प्रणाली है। और इतिहास गवाह है इसी न्याय प्रणाली के माध्यम से ही कई छोटे बड़े अपराध मैं लिप्त आरोपियों पर आरोप भी तय हुए हैं और उन्हें सजा भी हुई है। हाँ यह अवश्य देखा जाता है कि यदि अपराध लाइमलाइट में ना आए तो शायद वह अपराध कहीं तब कर रह जाता है। पुलिस भी संसाधनों के अभाव में कुछ माह बाद जांच बंद कर देती है। हालांकि कुछ ऐसे ऐतिहासिक मामले भी रहे हैं जहां सालों बाद भी अपराध का खुलासा हुआ है मुंबई का चर्चित शीना बोरा त्याकांड भी उन्हीं में से एक है। 

अभी हाल ही में महिला चिकित्सक कि दुष्कर्म कर हत्या करने का मामला पूरे देश में गरमाया हुआ है। हालांकि यह घटना कोलकाता के एक अस्पताल में हुई लेकिन घटना के बाद ही जब इसकी खबर आग। की तरह पूरे देश में फैली तो पूरे देश के डॉक्टर आक्रोशित हो उठे। और उसी दिन से लगातार इस हत्याकांड के विरोध में प्रदर्शन जारी है। और यह प्रदर्शन सांकेतिक ही नहीं हैं बल्कि डॉक्टर हड़ताल पर भी गए हैं जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। घटना निस्संदेह जघन्य है और उस महिला चिकित्सक को न्याय भी मिलना चाहिए। लेकिन ऐसे देश में जहां स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही लचर हैं चिकित्सकों की कमी है अस्पतालों में मरीजों की लंबी लंबी पंक्तियां हैं वहां पर यदि सभी डॉक्टर हड़ताल पर चले जाते हैं तो यह भी तो उचित नहीं है। डॉक्टर्स को प्रबुद्ध व शिक्षित माना जाता है। इसलिए उनसे यह अपेक्षा की जा सकती है वह भारत की न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखते हुए केवल कानूनी रास्ता अपनाते हुए उस महिला चिकित्सक को न्याय दिलाने का प्रयास करें। जहां तक विरोध प्रदर्शन की बात है वह कई अन्य देशों मैं जिस तरीके से काली पट्टी बांधकर विरोध किया जाता है वह भी अपनाया जा सकता है। लेकिन इस तरह सड़कों पर विरोध करना कहीं न कहीं यह सवाल भी कड़े करता है क्या पढ़े? लिखे प्रबुद्ध चिकित्सकों को भारत की न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है?

किसी भी शहर में कहीं पर भी जब कोई अपराध हो जाता है तो नजदीकी सड़क पर पहुंच कर चक्का जाम करना रोड घेर लेना, जन जीवन को प्रभावित करना अपने खुद के न्याय दिलाने के लिए दूसरे सैकड़ों लोगों के साथ अन्याय करने का प्रचलन देश में आम हो गया है। संभवत देश के किसी न किसी कोने में रोज। दो चार ऐसी घटनाएं तो होती ही होंगी जहाँ घटना के बाद न्याय प्राप्ति के लिए परिजन और मित्रगण सड़क जाम कर देते हैं। कई बार तो यह भी देखा गया है के पीड़ित के परिवारजन पुलिस व। प्रशासन पर दबाव डालते हैं और त्वरित नाय के लिए बात करते हैं जबकि भारत की न्याय व्यवस्था में पुलिस का। काम संबंधित धाराओं में मामला दर्ज करना आरोपी को गिरफ्तार करना और उसे संबंधित न्यायालय के समक्ष। पेश करना है। और इसके बाद आप यकीन मानिए यदि किसी भी मामले में साक्ष्य और गवाह मजबूत होते हैं तो हमारे देश की न्यायपालिका ने कड़ी से कड़ी सजा भी दी है। 

जिस तरह से पीड़ित के समर्थन में लोग विरोध प्रदर्शन धरना और हड़ताल करते हैं उससे यह प्रतीत होता है कहीं ना कहीं या। तो उन्हें न्याय प्रणाली का पूरा ज्ञान नहीं है या फिर उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली पर विश्वास भी नहीं है। आपको बता दें कि अभी तक भारत में अंग्रेजों। के समय की बनी भारतीय न्याय संहिता आधार पर व्यवस्था संचालित थी लेकिन कुछ माह पूर्व ही एक जुलाई से भारत में नई कानून व्यवस्था भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गए हैं। नई न्याय प्रणाली में इस बात की व्यवस्था की गई है कि पीड़ित को समुचित व त्वरित न्याय मिले। इसके अलावा भी यदि किसी सुधार की आवश्यकता है तो देश का प्रबुद्ध व शिक्षित वर्ग लगातार पत्राचार के माध्यम से भारतीय न्याय आयोग को इस संबंध में अवगत करा सकता है। क्योंकि अपनी बात संबंधित पटल पर न पहुंचाते हुए सड़क पर विरोध करना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय प्रणाली कहीं न कहीं पूर्ण रूप से विश्वास नहीं कर रहे हैं।

Gajendra Ingle

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