दुर्घटना में मौत; एक्ट ऑफ गॉड या है सिस्टम किलिंग मशीन! जब भी कोई बड़ी दुर्घटना होती है और जिसमें किसी निर्दोष की जान चली जाती है तो उसके बाद शुरू होता है उस घटना का कारण जानने की कागजी कार्रवाई का खेल, लंबी चौड़ी जांच और कुछ लोगों को इधर से उधर शिफ्ट करने का खेल। अभी हाल ही में दिल्ली के राजेंद्र नगर में भी राउस कोचिंग में ऐसी ही घटना हुई जहां दो युवतियां और एक युवक अवैध रूप से बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी में पानी भर जाने से मौत के मुंह में समा गए। और ऐसी ही एक घटना ग्वालियर में हुई जहाँ रात में अंधेरी रोड पर लापरवाही से खुदे हुए चैंबर के गड्ढे में दो युवक गिर गए जिसमें एक की मौके पर ही मौत हो गई और दूसरा अभी भी अस्पताल में मौत से जूझ रहा है। दोनों ही घटनाओं के बाद दिल्ली से लेकर ग्वालियर तक वही गंदा खेल शुरू हो चुका है। जो हर घटना के बाद होता है। लेकिन इन घटनाओं के बाद कुछ बदलेगा इसकी उम्मीद कतई मत कीजिएगा। क्योंकि जो लोग इन घटनाओं के बाद घडियाली आंसू बहाते हैं जांच की बात करते हैं, आर्थिक सहायता का मरहम लगाते हैं वे ही असल में इन मौत के सौदागर होते हैं!
दिल्ली के राजेंद्र नगर में राउस कोचिंग की लाइब्रेरी बेसमेंट में 8 ft नीचे बनी हुई थी और शनिवार को जिस समय बेसमेंट में पानी भरना शुरू हुआ उस समय 18 युवा वहां फंसे हुए थे जिनमें से कुछ अपनी जान बचा पाए बेसमेंट का गेट ऑटोमैटिक था जो फिंगर सेन्सर से ही खुलता था। बारिश के चलते वह खराब हो गया और यह तीन युवा जो अंदर थे वह वहीं काल के गाल में समा गए। दिल्ली में चाहे राजेंद्र नगर हो या मुखर्जी नगर ऐसी तमाम कोचिंग चल रही हैं जहां सुरक्षा के नियमों को ताक पर रखकर बच्चों देश के भविष्य बनाने वाले इन बच्चों कि जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और खुलेआम चल रही इन कोचिंग की अवैध गतिविधियों को सिस्टम में बैठे नगर निगम के अधिकारियों पुलिस प्रशासन और नेताओं का भी संरक्षण प्राप्त है। ऐसा हम दावे के साथ इसलिए कह सकते हैं क्योंकि बिना संरक्षण के ऐसा अवैध काम चलना कैसे संभव है। लेकिन पालक सावधान हो जाएँ। दिल्ली की कोचिंग में आपके बच्चे को लाखों रुपये फीस देकर प्रवेश कराकर कहीं आप बच्चे के लिए मौत तो नहीं खरीद रहे? इस प्रश्न का उत्तर यदि मिले तभी किसी कोचिंग में अपने बच्चे को प्रवेश दिलाएं। क्योंकि यदि आपका आँखों का तारा किसी ऐसी लापरवाही से हुई दुर्घटना में मारा जाता है तो आपको आखिरी में मिलेगा। वहीं जांच का गंदा खेल कुछ लोगों की शिफ्टिंग और आर्थिक सहायता का मरहम।
ग्वालियर की बात करें तो अब इसे यहां के नागरिक और मीडिया भी गड्ढा लियर गड्ढा मोहल्ला गड्ढे वाला शहर कह कर सम्बोधित करने लगे हैं लेकिन नगर निगम और प्रशासन में बैठे गैर जिम्मेदार लोगों के कान पे जू तक नहीं रेंगती। यदि घटना से पहले गड्ढों की जानकारी कुर्सी तोड़ अधिकारियों पर पहुंचती है तो यह जल्द ही मामले को दिखवा कर कार्रवाई की बात करते हैं लेकिन इनका जल्द तब तक नहीं आता जब तक किसी की मौत न हो जाए। और अब जब आनंद नगर में खुले गड्ढे में गिरकर एक युवक की मौत हो गई तो तमाम तरह की प्रशासनिक बयानबाजी राजनीतिक अफसर तलाशने वाली बयानबाजी शुरू हो चुकी है। क्योंकि मैं यहां एक बार फिर से कह रहा हूँ। कि जो लोग आपको अभी पर्दे पर नौटंकी करते नजर आ रहे हैं पर्दे के पीछे कहीं न कहीं यही इन दुर्घटनाओं में होने वाली मौत के सौदागर हैं। जिस सड़क पर यह गड्ढा खुदा हुआ था वहां सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे बेरी किड्स नहीं लगाए गए थे। रिफ्लेक्टर स्ट्रिप नहीं लगाई गई थी और सबसे बड़ी बात उस पूरी सड़क पर कहीं पर भी स्ट्रीट लाइट तक नहीं है। क्षेत्र के पार्षद पीसी शर्मा का भी कहना है कि डेढ़ साल से स्ट्रीट लाइट के खंभे तो लगा दिए गए लेकिन उन पर लाइट इसलिए नहीं लगाई गई क्योंकि स्ट्रीट लाइट के खंभों के ऊपर से ही हाई टेंशन लाइन जाती है। अब आप ही बताये कि जिस समय यह खंभे लगाए गए क्या पढ़े? लिखे इंजीनियर्स को उस समय नहीं पता था कि हाई टेंशन लाइन ऊपर से है और इस वजह से आगे लाइट लगाने में परेशानी आएगी तो फिर ऐसे गैर जिम्मेदारों को हम मौत का सौदागर क्यों न कहें। शहर में कई जगह ऐसे ही खुले गड्ढे छोड़ दिए जाते हैं चाहे वह कोई टेलिकॉम कंपनी की लाइन डालने का मामला हो चाहे यह अमृत योजना की सीवर लाइन डालने का मामला हो और इसमें जो जिम्मेदार अधिकारी चाहे वे पीडब्ल्यूडी के हो नगर। निगम के हो किसी और निर्माण एजेंसी के हो वह। भौतिक निरीक्षण करके यह सुनिश्चित नहीं करते हैं कि इन गड्ढों के खोदते समय नागरिक सुरक्षा के इंतजामों की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। अब यदि यह जिम्मेदार अधिकारी ऐसी लापरवाही करते हैं तो इन्हें हम मौत का सौदागर क्यों न कहें?
यह जो माननीय अब घडियाली आँसू बहाते हैं सांत्वना देने जाते हैं आर्थिक सहायता का मरहम लगाते हैं, जांच और कार्रवाई!!! दोषी को न बख्शे जाने की बड़ी बड़ी बात करते हैं, यही जब कहीं पर शिकायत मिलने पर कार्यवाही की बात आती है तो इन्हीं के फोन से कार्रवाई रुकवा दी जाती है। इन्ही कई माननीयों के पसंदीदा या चहेते ठेकेदार ही लापरवाही वाले कामों में संलिप्त होते हैं जैसा कि उदाहरण थाटीपुर के गोल्डन टावर का है जिसको निर्माण करने वाला बिल्डर मोहन बांदिल अभी तक भूमिगत है और चर्चा है की राजनीतिक संरक्षण के चलते ही वह पुलिस और प्रशासन की पहुंच से दूर है। जनसेवा के लिए सड़क पर उतरने का दंभ भरने वाले ऐसे माननीय कभी किसी गड्ढे में क्यों नहीं गिरते। महीनों खुले पड़े गड्ढे और टूटी फूटी सड़कें इन। माननीयों के कहने पर कैसे चौबीस घंटे में ठीक हो जाती हैं? ऐसे माननीय जो पर्दे के पीछे इन। लापरवाह ठेकेदारों और अधिकारियों को संरक्षण देते हैं।तो फिर ऐसे माननीयों को हम मौत का सौदागर क्यों न कहें?
ग्वालियर में पिछले वर्ष जुलाई में ही एक युवा पत्रकार अतुल राठौर की ऐसे ही खुले चैंबर के गड्ढे में गिरने से मौत हो गई थी। उस मौत के बाद भी इसी तरीके से गड़ियाली आंसू बहाने के लिए तमाम मौत के सौदागर बाहर निकले थे और उन्होंने जांच और कागजी घोड़ों। की तमाम बातें की थीं। लेकिन इस मामले में भी किसी भी दोषी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। हाँ आर्थिक सहायता का मरहम यहां पर भी लगाया गया।
दिल्ली राऊस कोचिंग हादसे में तेलंगाना सिकंदराबाद की तान्या सोनी उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की श्रेया यादव और केरल के एर्नाकुलम के नेविन डेल्विन और ग्वालियर में अमृत योजना के खुदे हुए गड्ढे में गिरकर मरने वाले शाहिद अफरीदी की मौत की कहानी भी कुछ दिनों में ओझल हो जाएगी या उदाहरण बनेगी एक बदलाव का? इतिहास में ऐसे ही तमाम बच्चों की मौत की घटनाएं दफन है और आज इन बच्चों की मौत हुई है। तो यकीन मानिए कल आपके बच्चों का नंबर भी आ सकता है। आप जनता हैं। आप लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ हैं। आपको आवाज़ उठानी होगी। आपको विरोध करना होगा कहीं पर भी इस तरह के गड्ढे हैं। बेसमेंट में व्यवसायिक गतिविधि है, कहीं पर भी इस तरह की लापरवाही है? तो उसका विरोध करें उसका बहिष्कार करें। और घटना के बाद अपने बिलों से निकलने वाले इन रंग बदलने वाले गिरवटों से सावधान रहें क्योंकि ये कल फिर भी खेल खेलेंगे जो ये हमेशा खेलते आए हैं।