नमस्कार दोस्तों मैं हूँ। आपका प्यारा रेडियो आप हर महीने के आखिरी में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को मेरे माध्यम से सुनते ही होंगे और आपको लगता होगा कि सूचना के तमाम संसाधन होने के बाद भी प्रधानमंत्री ने रेडियो को ही क्यों चुना? तो मैं आपको बता दूं कि मेरा अस्तित्व एक समय ऐसा था जिसे नकारा नहीं जा सकता था सूचना का सबसे सशक्त माध्यम में रेडियो ही था और शायद मेरी खोती हुई पहचान को वापस दिलाने के लिए ही मोदी जी ने यह प्रयास किया है। एक समय पर मैं यानी रेडियो तमाम घरों में हुआ करता था। और सूचना का मुख्य साधन था। गांव गांव तक दूरदराज तक मेरी पहुंच थी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस तरह आप एक बंदूक और वाहन रखने के लिए लाइसेंस लेते हैं उसी तरीके से पहले मुझे यानी रेडियो को रखने के लिए भी आपको सरकार से लाइसेंस लेना होता था जिसकी अच्छी खासी फीस होती थी। तो आइए मैं आपको भारत में हुई अपनी शुरुआत से लेकर अब तक की कहानी सुनाता हूँ और यकीन मानिए यह कहानी बहुत ही रोचक है और जगह जगह पर आपको न केवल आनंदित करेगी बल्कि आपको ज्ञान के ऐसे भंडार से भर देगी जो आपको भी आश्चर्य में डाल दे।
रेडियो प्रसारण के लिए प्रयोग किया गया पहला ट्रांसमिशन यूनिट
भारत में मेरा जन्म 1921 में हुआ। उस समय से पहले सूचना के ऐसे साधन नहीं हुआ करते थे केवल अखबार ही खबरों और सूचना का माध्यम था लेकिन उनकी पहुंच दूरदराज के क्षेत्रों में नहीं थी क्योंकि उस समय परिवहन के संसाधन पर्याप्त नहीं थे। इसी को देखते हुए एक मीडिया हाउस टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा अगस्त उन्नीस सौ इक्कीस में रेडियो की अन औपचारिक शुरुआत की गई थी। टाइम्स ऑफ़ इंडिया का रिकॉर्ड भी कहता है कि बीस अगस्त को उन्हीं के मुंबई स्थित इमारत की छत से रेडियो का प्रसारण पहली बार किया गया लेकिन यह प्रसारण बिना किसी शासकीय अनुमति और लाइसेंस के था। रेडियो के प्रसारण के लिए 23 फरवरी 1922 को पहली बार लाइसेंस दिया गया। यह थी मेरी शुरुआत और यह बड़ी रोमांचकारी थी इसलिए मेरी इस शुरुआत को देखते हुए कई बड़े शहरों में रेडियो क्लब की शुरुआत होने लगी। कोलकाता बॉम्बे मद्रास और लाहौर में कई लोगों ने अपने निजी शौक के लिए रेडियो क्लबों के द्वारा रेडियो प्रशासन शुरू किया। इसमें रेडियो क्लब बॉम्बे ने जून में सबसे पहले अपना कार्यक्रम प्रसारित किया था। मद्रास रेडियो क्लब ने 31 जुलाई 1924 को चालीस वॉट ट्रांसमीटर के साथ प्रसारण शुरू किया। जिसे बाद में दो सौ वाट तक बढ़ाया गया। यह रहा मेरा शानदार बचपन और बहुत ही रोमांचकारी बचपन, जिसमें मुझे सुनने के लिए लोग बेसब्री से लालायत रहते थे और सुनकर बड़े ही हैरत में पड़ जाते थे।
लेकिन उस समय तकनीक और संसाधनों को जुटाना इतना आसान नहीं था सभी वस्तुएं आयातित थी और बाहर से बहुत महंगी कीमत पर आती थी इसलिए यह जितने भी क्लब थे वह वित्तीय संकट में घिरते गए और इस कारण से उन्हें दो ही रास्ते दिखाई दिए कि या तो वह अपना प्रसारण रोक दें और या फिर उनके मन में विचार आया कि वे सभी मिलकर एकजुट हो जाएं ताकि मेरे यानी रेडियो के खूबसूरत अस्तित्व को लोगों तक पहुंचाया जा सके और बचाकर रखा जा सके। सभी क्लबों ने साथ में आकर 1927 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) का गठन किया। इसी कंपनी के अंतर्गत इसी साल बॉम्बे और कलकत्ता में रेडियो स्टेशनों का उद्घाटन हुआ। 23 जुलाई 1927 को पहली बार कार्यक्रम का प्रसारण शुरू हुआ। इस प्रसारण के लिए भारत सरकार से बाकायदा अनुबंध भी हुआ था। पहले रेडियो कार्यक्रम की शुरुआत पत्रिका इंडिया रेडियो टाइम्स 25 जुलाई 1927 को हुई और इस कार्यक्रम का नाम बाद में बदलकर “इंडिया लिसनर” किया गया।
तो मेरे प्यारे श्रोताओं मेरा जीवन का सफर इतना आसान नहीं था। रास्ते में बहुत सारी रुकावटें थी बहुत सारी तकलीफें थी और सबसे बडा था। वित्तीय संकट क्योंकि जैसा मैंने आपको बताया कि सभी संसाधन बाहर से आते थे। उनका संचालन उनकी मैकेनिज्म यह सब इतनी आसान नहीं थी कंपनी बनने के बावजूद भी वित्तीय संकट गहराता गया और एक बार फिर मेरे अस्तित्व खतरा बढा और मार्च को एक बार फिर मेरा प्रसारण बंद कर दिया गया ऐसा लगा। कि शायद यह मेरा अंत था। लेकिन कुछ ही सालों में मेरी ख्याति इतनी हो चुकी थी मेरे सपोर्टर्स की संख्या इतनी बढ़ चुकी थी कि जनता ने सरकार पर दबाव डाला और इसी के चलते अप्रैल 1930 को सरकार ने बॉम्बे और कलकत्ता रेडियो स्टेशन का संचालन अपने हाथों में लिया और एक नई संस्था इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज की स्थापना की। लेकिन सरकार को भी समझ में आ गया कि रेडियो का संचालन इतना आसान नहीं है। वित्तीय संकट को देखते हुए सरकार ने फिर से दस अक्टूबर 1930 को प्रसारण बंद कर दिया। तो देख रहे है ना आप। मतलब मेरे जिंदगी की शुरुआत किसी रोलर कोस्टर राइड से कम नहीं थी।
दिल्ली स्थित तत्कालीन रेडियो भवन
लेकिन मेरे प्रशंसकों द्वारा किय गया आंदोलन एक बार फिर सफल साबित हुआ और उन्होंने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया 23 नवंबर 1931 को सरकार ने अपने आदेश वापस लेते हुए फिर से मेरे प्रसारण की शुरुआत की। लेकिन इस बार सरकार ने अपनी आय बढाने के लिए रेडियो सेटों पर जो टैक्स दिया जाता था उसको दुगना कर दिया। जी हां टैक्स, टैक्स मतलब जो भी व्यक्ति रेडियो खरीदता था उसको एक लाइसेंस लेना होता था। और लाइसेंस के लिए उसको कुछ शुल्क देना होता था लेकिन अब मेरे अच्छे दिन आने वाले थे। जी हाँ टैक्स दुगुना होने के बावजूद भी बाहर से जितने भी रेडियो सेट आयात किए जा रहे थे दो साल के अंदर ही आयात किए जाने वाले सेटों की संख्या दुगुनी हो गई और लाइसेंस फीस के रूप में सरकार दुगना पैसा ले ही रही थी इस तरह से सरकार की आय में बेतहाशा इजाफा हुआ और रेडियो संचालन में वित्तीय संकट से जूझ रही सरकार अब रेडियो को फायदे का सौदा मानने लगी क्योंकि सरकार का राजस्व लगातार बढ रहा था।
सी राजगोपालाचारी के साथ लियोनेल फील्डन और एंड्रयू क्लो
रेडियो प्रसारण से सरकार को लगातार मुनाफा बढ़ रहा था। इसको देखते हुए अब सरकार ने भी सोच लिया कि रेडियो को एक बड़े रूप में ज्यादा से ज्यादा जनता तक ले जाना है और इसके लिए पहली बार दिल्ली में एक बड़े रेडियो स्टेशन की शुरुआत की गई और सरकार ने अपने उद्योग और श्रम विभाग के अंतर्गत एक अलग ही संस्थान इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस की स्थापना भी। की। और इस संस्थान का मुखिया बनाने के लिए बीबीसी जी हां जिनका रेडियो के क्षेत्र में पूरे दुनिया में डंका उस समय बचता था, वहाँ के विशेषज्ञ लियोनेल फील्डन को भारत में बुलाया गया और उनकी देखरेख में मेरा यानी रेडियो का अब स्वर्ण काल आने वाला था। उन्हें ही इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का पहला नियंत्रक बनाया गया। लियोनल फील्डन का तजुर्बा काम आया और भारत में रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में एक क्रांति की शुरुआत हुई लियोनल। फील्ड सरकार से ज्यादा धन आवंटित कराने के मामले में भी सफल हुए। और उन्होंने यह लंबा चौड़ा नाम इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को भी बदल कर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया और यह ऑल इंडिया रेडियो कितना सफल हुआ इसके कई पल इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखे गये हैं। यह नाम बदलना इतना आसान नहीं था क्योंकि आप समझ सकते हैं कि अंग्रेज वाइसराय उस समय इस बदलाव से राजी नहीं थे लेकिन लियोनेल फील्डन ने अपने तर्क शक्ति से उन्हें राजी कर लिया।
अब लिओनल फील्डन चाहते थे कि मेरा प्रसारण मतलब रेडियो की पहचान देश के हर कोने में पहुंचे। ज्यादा से ज्यादा लोग रेडियो सेवाओं का लाभ लें तो इसके लिए उन्होंने 1938 में शॉर्ट वेब सेवा की शुरुआत की इसके बाद 2 अप्रैल, 1938 को लखनऊ में और 16 जून 1938 को मद्रास में भी रेडियो का प्रसारण शुरू हुआ। इसी साल दिल्ली में भी एक्सटेंशन सर्विस डिवीजन शुरू कर दिया गया और लियोनल फील्डन एक मजबूत नीव बनाने में कामयाब रहे। इसके बाद ऑल इंडिया रेडियो का महानिदेशक जे ए बुखारी को बना दिया गया जो तब से लेकर विभाजन तक ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक रहे। और आजादी के बाद पाकिस्तान रेडियो के प्रमुख बने।
मैं आपको एक और रोचक तथ्य बताता हूँ। अपने जीवन यात्रा के बारे में जैसा कि आप जानते हैं कि 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था और उस समय पर किसी भी तरह के प्रसारण रोक थी इसलिए सरकार ने सारे। के सारे लाइसेंसी रेडियो जब्त कर लिए थे ट्रांसमीटर भी जब्त कर लिए थे जैसा कि आप जानते हैं कि आज के समय पर चुनाव के समय पर सभी लाइसेंस हथियारों को प्रशासन के पास जमा करना होता है वही स्थिति पहले हुआ करती थी और लाइसेंस के साथ ही लोग मुझे अपने घर और दफ्तरों में रख सकते थे। बिना लाइसेंस के रखना एक अपराध था। तो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय तो सुभाष चन्द्र बॉस रेडियो का उपयोग कर नहीं सके क्योंकि ट्रांसमीटर जब्त थे फिर भी वह अपने आपस के संवाद के लिए तो निजी ट्रांसमीटर का उपयोग करते ही थे। लेकिन भारत की जनता को सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार 1941 में रेडियो से ही संबोधित किया था और उन्होंने इसके लिए रेडियो जर्मनी का उपयोग किया था। और उनका जो ऐतिहासिक नारा है तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा यह उन्होंने रेडियो जर्मनी के माध्यम से ही भारत की जनता को दिया था। इसके बाद तीन जून 1947 को भारत के वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन पंडित जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना ने भी भारत के विभाजन पर अपना वक्तव्य रेडियो के माध्यम से ही प्रसारित किया था। और अब आता है मेरे जीवन का सबसे ऐतिहासिक पल जिस दिन पूरे देश के दूरदराज का 1 1 व्यक्ति अपने कान रेडियो से लगाए बैठा था वह दिन था 14, 15 अगस्त की दरमियानी रात जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण “ट्राईस्ट विद डेस्टिनी”का प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से ही किया था। यह मेरे जीवन का वह पल है जिससे मैं कभी नहीं भूल सकता और ना ही मेरे भारत देश का कोई नागरिक इसे भुला पाया है। आज भी आप प्रसिद्ध भाषण सुनना चाहे तो ऑल इंडिया रेडियो के रिकॉर्ड रूम में यह भाषण अभी भी सुरक्षित है।
देश की आज़ादी के बाद मेरे जीवन में कुछ अच्छे पल थे तो कुछ बुरे पल। बुरे पल थे कि लाहौर रेडियो स्टेशन पाकिस्तान में चला गया लेकिन बाकी के काफी बडे स्टेशन जैसे बॉम्बे कोलकाता दिल्ली तिरुचि लखनऊ मद्रास भारत में थे और जब बाकी की रियासतों को भी सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत में जोड़ लिया। तो अन्य स्टेशन हैदराबाद औरंगाबाद बड़ौदा मैसूर त्रिवेंद्रम भी भारत में आए और ऑल इंडिया रेडियो का हिस्सा बने। और धीरे धीरे मेरी ख्याति बढती चली गई और अब समय था रेडियो पर लोग अंग्रेजी और हिंदी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी अपने कार्यक्रम और समाचार सुन सके। इसके लिए लखनऊ से हिंदी में और नागपुर में मराठी में समाचार बुलेटिन शुरू किए गए। 1953 में ही वार्ता का पहला राष्ट्रीय कार्यक्रम भी शुरू किया गया और 1955 आते आते कई संगीत कार्यक्रम भी रेडियो पर शुरू हो गए। इसी वर्ष सरदार पटेल मेमोरियल लेक्चरर और रेडियो न्यूज रील की शुरुआत भी हुई। पहली पंचवर्षीय योजना के अंत तक रेडियो स्टेशनों की संख्या बढ़कर छब्बीस हो चुकी थी। तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री डॉक्टर बीबी केसकर ने 1953 से 1961 तक रेडियो के माध्यम से शास्त्रीय संगीत को लोगों तक पहुंचाने में बहुत अमूल्य योगदान दिया।
अब तक लोग इस कदर मेरे दीवाने हो चुके थे कि तमाम ऐसे क्षेत्र यहां मेरी पहुंच नहीं थी वहां तक भी लोग रेडियो की मांग करने लगे थे और इसे देखते हुए सरकार ने दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रसारण का बजट पहली योजना के मुकाबले बढ़ाकर चार गुना कर दिया जिससे नए रेडियो स्टेशन और प्रसारण के नए संसाधन जुटाए जा सके। 1957 में ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर आकाशवाणी कर दिया गया और यह विभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने लगा। स्वतंत्र भारत में जहाँ केवल छह रेडियो स्टेशन थे नब्बे के दशक आते आते पूरे देश में रेडियो नेटवर्क फैल चुका था और 146 स्टेशन बन चुके थे और रेडियो पर अंग्रेजी हिंदी के साथ तमाम क्षेत्रीय भाषाओं में भी कार्यक्रम प्रसारित होने लगे थे। 1967 में पहली बार वाणिज्यिक रेडियो सेवाएं शुरू की गई विविध। भारतीय और वाणिज्यिक सेवा द्वारा यह शुरुआत की गई थी। विविध भारती को आज तक ऑल इंडिया रेडियो की सर्वश्रेष्ठ सेवा माना जाता है।
इसके बाद मेरे जीवन में एक और क्रांति 1994 के बाद आई जब आकाशवाणी ने एफएम की शुरुआत की आकाशवाणी के एफएम रेनबो के तहत 18 स्टूडियो संचालित किए गए। एफएम पर मनोरंजन के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते थे। इसका मतलब ऑल इंडिया रेडियो अब एनालॉग से डिजिटल तकनीक की तरफ स्विच कर रहा था। तकनीक का यह परिवर्तन क्रांतिकारी रहा और लोगों को बेहतर गुणवत्ता और बेहतर आवाज में कार्यक्रम मिलने लगे। 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया रेडियो तरंगों पर सरकार का अधिकार नहीं है और 2002 में एनडीए सरकार ने शिक्षण संस्थानों को रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दे। दी। इसके बाद 2006 में यूपीए सरकार ने निजी संस्थानों को रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति दी लेकिन इन सभी निजी रेडियो स्टेशनों पर केवल मनोरंजन के कार्यक्रम ही चल सकते थे। इन पर समाचार या समसामयिक विषयों पर चर्चा पर रोक थी। और फिर एनडीए की सरकार आने पर भी 2014 में नरेंद्र मोदी जिन्हें रेडियो के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए मन की बात कार्यक्रम की शुरुआत की जो आज भी निरंतर जारी है।
तो यह है मेरी उतार चढाव से भरी हुई जीवन यात्रा जिसमें मैंने कई स्वर्णिम पल भी देखें कई ऐसे वर्ष भी रहे जहाँ पूरे सूचना प्रसारण क्षेत्र में मेरा एकाधिकार रहा तो अब कभी ऐसे पल भी आए जब। लोगों ने मेरी जगह पर दूसरे संसाधनों को श्रेष्ठ माना। मैंने वह दिन भी देखे हैं जब एक छोटे से डब्बे। से किसी की सैकड़ों किलोमीटर दूर की आवाज़ को सुनकर। लोग विस्मय में पड़ जाते थे। मैंने वह दिन भी देखे हैं जब दूरदराज के क्षेत्रों में कोई प्रसारण का साधन नहीं पहुंच पाता था लोग मुझे सुनने के लिए इकट्ठे होकर एक जगह इंतजार करते थे। और बीच में मैंने वह पल भी देखे हैं जब मेरे अस्तित्व पर पूरी तरह से खतरा मंडराने लगा था लेकिन सरकार द्वारा एफएम के क्षेत्र में उदारीकरण के माध्यम से निजी क्षेत्रों को भी एफएम संचालन का मौका देने से आज मेरा अस्तित्व बचा हुआ है। आज भी कई युवा तमाम एफएम पर मनोरंजन कार्यक्रम के माध्यम से मेरा अस्तित्व बचाए हुए हैं। तो यह है मेरी पूरी यात्रा जहां क्लब, क्लब से आईबीसी, आईबीसी से आईएसबीएस और आईएसबीएससे ऑल इंडिया रेडियो ऑल इंडिया, रेडियो से आकाशवाणी और आकाशवाणी से अब एफएम!
“23 जुलाई, 1927 को आईबीसी द्वारा बॉम्बे और कोलकाता में जो। रेडियो कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी। उसी की याद में आज भी हम 23 जुलाई को प्रसारण दिवस के रूप में मनाते हैं।”