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एमपी की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, उफनते नाले को पार कर अपने कान्हा को ले अस्पताल तो पहुँच गई, लेकिन???

शिवपुरी ग्वालियर मध्य प्रदेश: जन्माष्टमी पर जब कान्ह  का जन्म हुआ था। उस रात जो घटना कान्हा के साथ हुई वह सभी जानते हैं बारिश का मौसम था यमुना नदी उफान पर थी और कान्हा को को बचाने के लिए वासुदेव ने सर पर काना को रख उफनती नदी पार कराई। ऐसी ही एक हक़ीक़त शिवपुरी में आज कलयुग में सामने आई जब एक माँ अपने 11 महीने के बच्चे को बचाने के लिए बच्चे को सर  पर रख उफनते नाले को पार कर शिवपुरी जिले में अस्पताल पहुंची। लेकिन इस मां के काना की कहानी का अंत उतना सुखद नहीं रहा जितना सदियों पहले द्वापर युग में श्री कृष्ण के जन्म के समय वासुदेव के प्रयासों से रहा। इस माँ के कान्हा के भविष्य में तो? मौत लिखी थी और इस मौत का कारण है हमारे प्रदेश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था। 

जिला शिवपुरी के बेरखेड़ी गाँव में रहने वाले एक आदिवासी परिवार में माँ मनीषा और नाना बलबीर न। जाने कितनी तकलीफें उठा इस भयंकर बारिश के मौसम में अपने नौनिहाल को उल्टी दस्त। की बीमारी के इलाज के लिए शिवपुरी पहुँच थे। इस आदिवासी मां ने अपनी 11 महीने की बच्ची को बचाने के लिए हर कोशिश की। बच्ची को अस्पताल पहुंचाने के लिए सिर पर उठाकर उफनते नाले को पार किया। तीन सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाए, लेकिन उसे बचा नहीं सकी। रविवार रात बच्ची ने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। मौत के बाद उसे वहां से जाने को कह दिया गया। एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं करवाई गई। रोते-बिलखते परिवार को देख लोगों ने चंदा कर उसे कुछ रुपए दिए। इसके बाद वह मृत बेटी को चादर में लपेटे पहले पैदल, फिर ऑटो और बाद में बस से जैसे-तैसे रात 2 बजे शव लेकर अपने गांव पहुंची और फिर उसे दफनाया गया। इस घटना को देखकर हम यही कह सकते हैं की है कहना अब यदि तुझे जन्म लेना भी हो तो इस मध्यप्रदेश में तो कम से कम मत लेना क्योंकि यहां की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं तैयार बैठी हैं तुझे दर्दनाक मौत देने के लिए। 

यह शिवपुरी में स्वास्थ्य विभाग के लचर रवैये का आलम यह रहा कि इस माँ की 11 महीने की बच्ची की मौत के बाद भी सिस्टम की संवेदनाएं नहीं जागी। रात को लंबे इंतजार के बाद भी इस मां को अपने मृत बच्ची को ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नहीं मिली और जिस तरह यह मां। अपनी बच्ची को तकलीफों मैं पैदल पैदल। लेकर शहर तक पहुंची थी। वैसे ही उसे पैदल उल्टे पांव सब लेकर वापस जाना पड़ा। यहाँ धन्य हो कुछ मानवतावादी लोगों का जिन्होंने इस मां को कुछ आर्थिक सहायता दी जिससे इस मां को थोड़ी सी। राहत तो मिली होगी लेकिन जिस लचर स्वास्थ्य विभाग ने एक मां से उसके मासूम बच्ची को छीन लिया हो।उस मां की पीड़ा शायद वही जानती है। बच्ची की मौत से पहले इस मासूम की मां और नाना अस्पताल अस्पताल भटके। उन्हें इधर से उधर चक्कर कटाया गया। जब सरकारी अस्पताल में भी लेकर पहुंचे तो वहां बदइंतजामी के यह हालात थे कि केवल पर्चा बनवाने में ही एक घंटा लग गया। नाना पर्चा बनवाते रहे और 11 महीने की मासूम ने। मां की गोद में ही रोते रोते दम तोड़ दिया। और इस तरह मध्य प्रदेश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने इस साल की जन्माष्टमी को कलंकित कर दिया। 

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