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संघ साम्प्रदायिक संगठन नहीं, सरकार को गलती सुधारने में लगे 50 साल: एमपी हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आरएसएस को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है। हाई कोर्ट का कहना है कि केंद्र सरकार को यह महसूस करने में लगभग 5 दशक लग गए कि। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रतिबंधित संगठनों की सूची में। रखा गया था। आपको बता दें कि लगभग 50 सालों से केंद्र सरकार के कर्मचारियों को आरएसएस। या आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों मैं शामिल होने की अनुमति नहीं थी। और अभी हाल ही में केंद्र सरकार के कर्मचारियों को इस पाबंदी से मुक्ति मिली है मतलब इस तरह के पाबंदी को हटा दिया गया है। इसी को लेकर एक याचिका की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की है। हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और गजेंद्र सिंह की युगल पीठ ने एक रिट याचिका का सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की यह याचिका केंद्रीय कर्मचारी रहे पुरुषोत्तम गुप्ता द्वारा लगाई गई थी।

पुरुषोत्तम गुप्ता ने याचिका में कहा था कि सेवा निवृत्त होने के बाद वह अपना बचा हुआ जीवन संघ कार्य में समर्पित करना चाहते हैं लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इस तरह की पाबंदी है कि केंद्रीय कर्मचारी संघ कार्यों में शामिल नहीं हो सकते इस वजह से वह ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों पर लगी यह पाबंदी हटा दी है।

आपको बता दें तीस नवंबर उन्नीस सौ छियासठ को तत्कालीन केंद्र सरकार ने आदेश निकालकर केन्द्रीय कर्मचारियों के संघ सहित संघ के अन्य अनुषांगिक संगठनों में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी थी। इस पाबंदी पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कि संघ को सांप्रदायिक संगठन मान कर उसकी गतिविधियों शाखाओं मैं शरीक होने पर रोक लगा दी गई है। हाईकोर्ट के फैसले में कहा है कि केंद्रीय गृह विभाग ने पिछले दिनों इस सर्कुलर में। संशोधन कर दिया इसके बावजूद हम विस्तृत आदेश जारी कर रहे हैं। केंद्र ने जो संशोधन किया है उसे कार्मिक विभाग और केंद्रीय गृह मंत्रालय कि ऑफिशियल वेबसाइट पर डाला जाए यही नहीं देश भर में जनसंपर्क विभाग के माध्यम से इसे प्रचारित भी किया जाए।

केंद्र सरकार द्वारा संघ में केंद्रीय कर्मचारियों के शामिल होने की पाबंदी तो हटा ली गई है लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट कि यह टिप्पणी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि हाई कोर्ट ने विस्तृत आदेश जारी करते हुए केंद्र सरकार द्वारा हटाई गई। रोक को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित और प्रसारित करने की बात भी कही है।

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