दिल्ली चुनाव के परिणाम आने पर भाजपा को मिली जीत और आम आदमी पार्टी की करारी हार पर जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कह दिया कि ‘और लड़ो आपस में’। और यह बयान बिल्कुल सटीक बैठता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम पर जिसमें कुछ महीने पहले तक जब एनडी गठबंधन मजबूत स्थिति में चल रहा था जब आम आदमी पार्टी जीत की स्थिति में नजर आ रही थी। उसके बाद जो कछुआ आप सभी जानते है कि किस तरीके से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं ने एक दूसरे की धोती खोलना शुरू की। और इसका असर यह हुआ के दोनों एक दूसरे को नंगा करने के चक्कर में मतदाताओं से दूर होते चले गए।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम में बीजेपी को प्रचंड बहुमत प्राप्त हो गया। वहीं आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई, जो पिछले 10 साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज थी। वहीं कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं आ पाई। कांग्रेस का सूपड़ा जरूर साफ हो गया। इसके बावजूद कांग्रेस एक लड़ाई में जीत चुकी है और वह है शायद उसका आम आदमी पार्टी से बदला लेने का मन। क्योंकि जिस आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया था आज कांग्रेस उसी आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने की वजह बन चुकी है। 70 सीटों में से 14 सीटें ऐसी रही, जिन पर कांग्रेस के कारण ‘आप’ को हार का सामना करना पड़ा। और यदि दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा होता तो यह सभी सीटें हैं। आम आदमी पार्टी की झोल में जाती और आप की सरकार बनना निश्चित हो जाता।
यदि आप और कांग्रेस में गठबंधन होता तो दिल्ली में दोनों पार्टियों की गठबंधन की सीटें 37 हो सकती थीं, जो बहुमत से एक सीट ज्यादा है। दरअसल, 14 सीटें ऐसी रहीं, जिनमें आप की हार का अंतर कांग्रेस को मिले मतों से कम है। दिल्ली में लंबे समय से बीजेपी और कांग्रेस ही प्रतिस्पर्धी पार्टियां रहीं। कांग्रेस को एंटी बीजेपी और बीजेपी को एंटी कांग्रेस वोट मिलता रहा। लेकिन 2013 में आप के उद्भव के साथ ही कांग्रेस के वोटों पर आप का कब्जा हो गया।
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साल 2013 में आम आदमी पार्टी को 30 फीसदी मत मिले थे। साल 2020 में ये बढ़कर 54 प्रतिशत हो गए। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को सासल 2013 में 25 प्रतिशत मत मिले थे, जो 2020 में घटकर 4 प्रतिशत तक ही रह गए। बीजेपी के 35 फीसदी के करीब मत अभी भी बरकरार हैं। इस तरह कांग्रेस और आप अलग अलग लड़ने की वजह से नुकसान में रहे। इन चौदह सीटों के अलावा यदि दोनों पार्टियां और इंडिगठबंधन मिलकर चुनाव लड़ता तो इसका और भी अधिक प्रभाव। चुनाव रैलियों मतदाताओं पर पड़ता और हो सकता है कि आम आदमी पार्टी अन्य सभी पार्टियों और कांग्रेस के समर्थन से चालीस से पैंतालीस तक सीट जीतने में कामयाब होती।
लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पूर्व ही जिस तरीके से कांग्रेस के नेताओं ने आम आदमी पार्टी पर छींटा, कसी की और जिस तरह से आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कांग्रेस पर आरोप लगाए उससे दोनों के बीच में दूरियाँ बढ़ गईं। और कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की इस आपसी लड़ाई का सीधा फायदाभाजपा को हुआ। भाजपा के पास तमाम मुद्दे थे और साथ ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मैं खींचतान बढ़ी। तो भाजपा की नीतियां उनके वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो गई। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट जीतने में है। सफल नहीं हो सकी लेकिन कांग्रेस ने इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को हराने और भाजपा को जिताने में अहम भूमिका निभाई है।
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