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सरकारी नम्बरों पर अवैध कालोनी को प्रशासन की मौन मंजूरी, यही है माननीयों का मायाजाल

ग्वालियर मध्य प्रदेश: शहर के बाहर किसी भी दिशा में निकल जाइये वहां आपको कॉलोनियों। का निर्माण होता नजर आ जाएगा भी गांव में फैली तमाम ऐसी कॉलोनियां नियम कायदों के अनुसार अवैध है। यहां अवैध कालोनियों का सबसे बड़ा खेल तो यह है की कृषि भूमि खरीदने के साथ-साथ सरकारी जमीन और पट्टे। की जमीन पर भी अवैध कालोनियां काटी जा रही हैं। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह सब प्रशासन की निगरानी में या प्रशासन की छत्र छाया में ही हो रहा है। क्योंकि जो अमला किसी गरीब का चबूतरा बनता देख आध मक्ता है। और नियम कायदों का महाकाव्य खोलकर रख देता है। वही अमला जब जब क्षेत्रों से निकलता है जहां अवैध कॉलोनियों का निर्माण हो रहा हो। तो वहाँ इनके आंखों में रतौंधी हो जाती हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। मतलब साफ है कि जो अवैध कॉलोनियां बन रही है खासकर सरकारी जमीन कि जो बंदर बाट हो रही है वह प्रशासन के मौन समर्थन से ही हो रही है।

कुछ समय पहले मुख्यमंत्री ने मंशा जाहिर की थी कि अवैध कॉलोनियों।को बनने से रोका जाएगा और जो बन चुकी हैं उन पर भी कार्रवाई होगी। उनकी मंशा अनुरूप ग्वालियर जिला प्रशासन ने भी अवैध कॉलोनियों की लंबी चौड़ी सूची बना रखी थी, सभी एसडीएम ने यह सूची ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान को सौंप दी। और जानकारी यह है कि अब काफी समय से यह सूची नगर निगम के आला अधिकारियों के टेबल पर धूल खा रही है। एक शिकायतकर्ता की जिद के चलते और तमाम अधिकारियों को फ़ोन करने के बाद जब। रायरू स्थित अवैध कॉलोनियों पर कार्यवाही नहीं हो रही थी। तो इस शिकायतकर्ता को राजस्व मंत्री करण सिंह बर्मा तक गुहार लगानी पड़ी थी और उसके चलते नगर निगम और प्रशासन का अमला दो दिन पहले रायरू स्थित अवैध कॉलोनियों के जंगल में पहुंचा था। वहाँ जिस तरीके से चुन कर और भेदभाव पूर्ण कार्रवाई की गई उसकी चर्चाएं वहाँ कॉलोनाइजर्स के बीच में और वहां के रहवासियों के बीच में चल रही हैं। वहां एक कॉलोनी पर कार्रवाई की गई जबकि उसी के करीब उसी तरह की दूसरी कॉलोनी पर कार्रवाई नहीं की गई। 

अब सवाल यह उठता है कि अवैध कॉलोनी बसाने वालों को प्रशासन संरक्षण? क्यों दे रहा है। क्योंकि कॉलोनी? तो खुलेआम बन रही है। कई बीघा जमीन पर बन रही हैं दिनदहाड़े वहां पर निर्माण कार्य होता है। कई क्षेत्रों से तो नगर निगम और प्रशासन के अधिकारियों का गुजरना भी होता है। ऐसा कैसे हो सकता है की अधिकारियों को पता न हो। और कुछ ही महीनों में पूरी कॉलोनी खड़ी हो जाए। सूत्रों से जानकारी मिली है कि कई अवैध कॉलोनियों। में उनके पार्टनर के रूप में कोई न कोई प्रशासनिक अधिकारी संलिप्त रहता है। शिकायतकर्ता अबोध तोमर के अनुसार पुरानी छावनी में। जो भी अवैध कॉलोनी बनती हैं उसमें वहाँ के पटवारी हिस्सेदारी होती है। इसी तरह की अवैध कॉलोनी देव रेजीडेंसी जो चरनोई की भूमि सर्वे नंबर 131/1 पर है, उसकी शिकायत लंबे समय से प्रशासन को की गई है इसके बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अबोध तोमर का सीधा आरोप है। पटवारी यहां की कॉलोनी में पार्टनर है। कई बड़े अधिकारियों की मिली भगत है।

अब आप समझिए की यह प्रशासनिक अधिकारी किन अवैध कालोनियों पर कार्रवाई करते हैं और किन अवैध कॉलोनी बनाने वालों को उपकृत करते हैं। तमाम भूमाफिया किसी न किसी विधायक माननीय मंत्री या रसूखदार नेता के रिश्तेदार या करीबी होते हैं। उन्का मुख्य व्यवसाय ही है। सरकारी जमीनों या अन्य जमीनों को घेर कर कॉलोनी बसाना होता है। उन्हीं के द्वारा की गई आय का उपयोग यह नेताजी अपने जीवन यापन से सहित चुनाव जीतने के जतन में लगाते हैं। तमाम ऐसी कालोनी अवैध रूप से सरकारी सर्वे। नंबर पर काटी जा रही हैं जिसमें कोई न कोई नेता साइलेंट पार्टनर के रूप में यह संरक्षक के रूप में संलिप्त है। और जहां माननीयों का दबाव हो। वहाँ प्रशासनिक अधिकारियों को नतमस्तक होना पड़ता। है और इस तरह बनाई जा रही है अवैध कॉलोनियों को मौन मंजूरी देनी होती है। इसके अलावा जो भू माफिया या कोलोनाइजर माननियों के करीबी नहीं होते हैं वह। किसी न किसी राजस्व अधिकारी को साइलेंट पार्टनर बना उनकी मौन मंजूरी प्राप्त कर लेते हैं। प्रशासन की मौन मंजूरी का सबसे बड़ा सबूत तो यह है कि जहां कहीं भी यह अवैध कॉलोनियाँ कट रही है उनके प्लॉट की रजिस्ट्री सरकार के ही जिला पंजीयक विभाग में हो रही है। यदि यदि यदि प्रशासन की मंशा अवैध कॉलोनियों को रोकना है तो यह आदेश अपने जिला पंजीयक कार्यालय को ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान क्यों नहीं देतीं कि केवल उन्हीं कॉलोनी में प्लॉट की रजिस्ट्री की जाए, जो सभी संबंधित विभागों से अनुमति प्राप्त करने के बाद काटी जा रही हैं और पूरी तरह से वैध हैं? सरकारी ज़मीनों को घेरकर या अन्य जगह पर अवैध कॉलोनी काटने का सिलसिला प्रशासन के मौन संरक्षण मायावी माननीयों  की माया के चलते यूं ही जारी रहेगा। इसका एक मात्र विकल्प यही है कि कॉलोनी काटना प्लौट देना पूरी तरह से सरकार के हाथ में हो इस व्यवसाय में निजीकरण को पूर्णतः बंद कर दिया जाए। 

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