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होली पर होलिका दहन का धार्मिक और पौराणिक महत्व, होलिका मुहुर्त व विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ होगी, लेकिन इस समय के दौरान भद्राकाल होने के कारण, ‘होलिका-दहन’ का आयोजन 13 मार्च को रात 11:27 बजे से किया जाएगा। पूर्णिमा का व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा।

हमारे देश में जब भी कोई त्यौहार मनाया जाता है उसके पीछे की वजह केवल मनोरंजन और खुशियां ही नहीं होता। यह अन्य कई कारणों से भी जुड़ा होता है। कई कारण धार्मिक होते हैं तो कहीं न कहीं आर्थिक संपन्नता भी कुछ त्योहारों से जुड़ी होती है। हर त्यौहार के मनाने के पीछे उसको मनाने की विधि के पीछे एक एक तार्किक व्यवस्था शुरू से बनी हुई है। अब होली आते ही आप सभी लोग। होली के उत्सव में व्यस्त हो जाएंगे लेकिन आप में से कुछ लोगों के मन में यह ख्याल जरूर आता होगा होली। क्यों मनाई जाती है मतलब कि आज होलिका दहन क्यों किया जाता है और होलिका दहन का सही विधि विधान क्या है। तो आइए हम आपको बताते हैं कि क्या है होलिका दहन का कारण ओह। क्या है इसकी सही विधि। 

होली का पर्व केवल रंगों और आनंद का उत्सव नहीं है, बल्कि यह धार्मिक, आस्थागत और आध्यात्मिक महत्व भी रखता है। होलिका दहन, जिसे ‘छोटी होली’ के नाम से भी जाना जाता है, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन अग्नि प्रज्वलित कर बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ होगी, लेकिन इस समय के दौरान भद्राकाल होने के कारण, ‘होलिका-दहन’ का आयोजन 13 मार्च को रात 11:27 बजे से किया जाएगा। पूर्णिमा का व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा।

होलिका दहन के पीछे एक बहुत ही महत्वपूर्ण पौराणिक कहानी है। होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद और उसके दुष्ट पिता राजा हिरण्यकशिपु से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था, जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था. हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन जब वह असफल रहा, तो उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती. उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की स्मृति में प्रतिवर्ष होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। 

जिस तरह से सनातन परंपरा में मनाए। जाने वाले कई कई त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देते हैं उसी तरह होली। का पर्व भी बुराई पर अच्छाई की जीत का ही एक संदेश लेकर आता है जिसमें होलिका के अंत और प्रहलाद के जीत का महत्व बताता है। साथ ही होली का त्यौहार एक सकारात्मक ऊर्जा के संचार का संदेश भी देता है क्योंकि जब जगह जगह अग्नि जलाई जाती हैं तो उस क्षेत्र के नकारात्मक ऊर्जा का नाश हो जाता है। होलिका त्यौहार सामाजिक समरसता और एकजुटता का संदेश भी देता है क्योंकि अन्य उत्सव की तरह ही इस उत्सव में भी हो एक दूसरे से मिलते जुलते हैं। और जिस तरह का मेलझोल होली के साथ जुड़ा हुआ है वह संभवतः दुनिया में किसी भी त्योहार में देखने को नहीं मिलता।

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