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कलेक्टर के हक का शिगूफा, ट्रांसफर पॉलिसी में “अनुमोदन नहीं सहमति” का नया खेल!

एक मई से मध्यप्रदेश में ट्रांसफर शुरू होने थे। और कैबिनेट के निर्णय के बाद अब इसकी पॉलिसी सामने आ चुकी है। और यह मध्य प्रदेश की नई ट्रांसफर पॉलिसी आने के बाद ही यह चर्चा होने लगी है क्या कलेक्टर के हक बरकरार रहने वाले हैं।

कई बार पिष्ठ पूर्व पूर्व आईएएस चर्चा करने पर यह बात निकलकर सामने आती है। के पहले आईएएस। के जो अधिकार हुआ करते थे अब उनका आनंद होता है। और वह बेड़ियों में जकड़कर रह जाते हैं। बिना माननियों के हस्तक्षेप के या इजाजत के वह कोई बड़ा निर्णय नहीं ले पाते हैं। एक मई से मध्यप्रदेश में ट्रांसफर शुरू होने थे। और कैबिनेट के निर्णय के बाद अब इसकी पॉलिसी सामने आ चुकी है। और यह मध्य प्रदेश की नई ट्रांसफर पॉलिसी आने के बाद ही यह चर्चा होने लगी है क्या कलेक्टर के हक बरकरार रहने वाले हैं। या आज भी वह केवल किसी न किसी माननीय के स्टांप की तरह म करने तक सीमित रहेंगे!

मध्यदेश की नई ट्रांसफर पॉलिसी को मंजूरी एक मई को मिली थी और मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव यादव के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने शनिवार को नई ट्रांसफर पॉलिसी जारी कर दी। इसमें तमाम तरह के बदलाव किए गए। जिले के अंदर होने वाले ट्रांसफर में कलेक्टर को मंत्रियों से अनुमोदन नहीं लेना होगा। सिर्फ सहमति लेना ही पर्याप्त होगा, लेकिन यह सहमति का क्लॉज भी क्यों जोड़ा गया है किसी निहित स्वार्थ में लिप्त माननीय यह सहमति देंगे या नहीं देंगे इस बात पर संशय है। ऐसा दावा किया जा रहा है के इस बदलाव से प्रक्रिया भी सरल होगी  कलेक्टरों के अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे। लेकिन सवाल यही है क्या कलेक्टरों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे?

आपको बता दें कि अप्रैल में ट्रांसफर पॉलिसी को जो प्रारूप कैबिनेट में रखा गया था उसमें यह बिन्दु था। कि जिलों के अंदर सभी तबादले प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से ही किए जाएँ। लेकिन उस समय जब इस बिंदु को लेकर चर्चाएँ होने लगीं और इस पर उच्च स्तर पर। चर्चा की गई तो यह शर्त बदल दी गई और अब यहाँ पर अनुमोदन की जगह सहमति शब्द का प्रयोग कर लिया गया। लेकिन क्या प्रभारी मंत्री का हस्तक्षेप किये बिना कलेक्टर किसी का ट्रांसफर कर पाएंगे। इसी भी कर्मचारी या अधिकारी का ट्रांसफर वास्तव में कलेक्टर के द्वारा ही होगा। या माननियों के हस्तक्षेप से ही होगा यह सवाल अभी भी ज्वलंत है। क्योंकि कुछ समय पूर्व की पटवारियों के अचानक ट्रांसफर होने की घटना और किसी क्षेत्र में है 2025 साल से जमे पटवारी। का ट्रांसफर न होने की घटना ने इस बात पर मुहर लगा दी है। की कलेक्टर बिना किसी माननीय हस्तक्षेप के शायद ट्रांसफर पर निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। अब देखना होगा कि नई पॉलिसी क्या वास्तव में कलेक्टर के हक को बरकरार रख पाती है?

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