ग्वालियर, मध्य प्रदेश: कभी चौका-चूल्हे और मजदूरी तक सीमित रहीं साधारण ग्रहणी एलिजाबेथ अब गाँव की अन्य महिलाओं के लिये आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई हैं। नीली कमाई (मत्स्य पालन) से उनके परिवार के जीवन स्तर में बड़ा बदलाव आया है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने उन्हें बड़ा सहारा दिया है।
यह सच्ची कहानी है ग्वालियर जिले के घाटीगाँव विकासखंड के ग्राम दौरार निवासी एलिजाबेथ की। एलिजाबेथ अपने सास-ससुर, पति एवं दो बच्चों के साथ गाँव में रहती हैं। वे बताती हैं कि पहले साधारण मजदूरी से घर का गुजारा चलता था। घर के सभी लोगों के लिये भोजन पकाते-पकाते हम थक जाते थे पर मजबूरन काम पर जाना पड़ता था। पर अब हमारे परिवार के दिन फिर गए हैं।
एलिजाबेथ बताती हैं कि सरकार द्वारा लगभग पाँच साल पहले स्व-सहायता समूह के माध्यम से मुझे लगभग 2.759 हैक्टेयर के तालाब का पट्टा मत्स्य पालन के लिये दिया गया था। साथ ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 60 प्रतिशत अनुदान पर आइस बॉक्स के साथ एक मोटर साइकिल भी मिली है। इस मोटर साइकिल पर अपने पति के साथ बैठकर हम आसपास के गाँवों में मछली व मत्स्य बीज बेचने जाते हैं। गाँव में कम कीमत पर मछली बिकने के बाबजूद मुझे औसतन ढ़ाई लाख रूपए की आमदनी हर साल हो जाती है। एलिजाबेथ नियमित रूप से अपनी ग्राम पंचायत के खाते में तालाब के पट्टे की शुल्क राशि 828 रूपए हर साल जमा करती हैं।

अपने व्यवसाय में आने वाली छोटी-मोटी कठिनाई को एलिजाबेथ तब भूल जाती हैं जब मछली बेचने के बाद हुई नीली कमाई से अपने बच्चों के लिये टॉफियां खरीदकर मोटर साइकिल से फर्राटा भरते हुए घर पहुँचती हैं। एलिजाबेथ अपनी खुशी का इज़हार करते हुए कहती हैं कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लगभग हर योजना में महिला सशक्तिकरण को केन्द्र में रखा है। जाहिर है हम जैसी जरूरतमंद महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही हैं।
